जब यह तय हो गया कि अब युद्ध होगा ही और अर्जुन माधव को मांग लिये, दुर्योधन नारायणी सेना ले लिया।
शकुनी को दुर्योधन कि मूर्खता पर बड़ा क्षोभ हुआ। वह रात्रिभर सोया नही।
इधर पांडव बड़े प्रसन्न थे कि जब भगवान ही साथ हैं तो युद्ध में विजय तो अब पक्की ही है।
भगवान अर्जुन को अपने महल में आने का संदेश भेजे। अर्जुन बड़े प्रसन्न हुये कि अब भगवान यही कहेंगें तुम लोग बहुत दुख भोगे अब आराम करो बाकी मैं देख लूँगा।
अर्जुन पहुँचे चरण वंदना किये।
भगवान उनसे बोले पार्थ यह कोई सामान्य युद्ध नहीं है।
पहले इंद्र कि फिर महादेव कि आराधना करके उन्हें प्रसन्न करो।
यह तो युद्ध से भी कठिन कार्य है। महादेव को प्रसन्न होंगें या नहीं यह भी एक प्रश्न है।
भगवान बोले तुम्हारे साथ धर्म है। और मैं भी तुम्हारे साथ हूँ। आदिदेव महादेव अवश्य प्रसन्न होंगें। तपस्या कठिन होगी लेकिन उनके आशीर्वाद के बिना तो युद्ध नहीं जीता सकता है। समस्त दिव्यास्त्रों के वह रचयिता हैं। वह तभी तुम्हें प्राप्त होंगें।
अर्जुन ने कठिन तपस्या किया। महादेव प्रकट हुये। अर्जुन को आशीर्वाद के रूप में ब्रह्मास्त्र दिया।
यह प्रसंग इसलिये यहां कहे हैं। इससे दो अर्थ निकलते हैं।
ईश्वर साथ हैं, फिर भी कठिन से कठिन कर्म के लिये प्रेरित कर रहें हैं।
दूसरी बात यह है कि वह शिक्षा दे रहें हैं। आसन्न परिस्थितियों के लिये उसी स्तर कि तैयारी पहले से होनी चाहिये।
बैठे भोजन देय मुरारी वाली कहावत बिल्कुल ही निरर्थक है।।