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"मनि मानिक मुकुता छबि जैसी, अहि गिरि गज सिर सोह न तैसी",
नृप किरीट तरुनी तनु पाई, लहहिं सकल सोभा अधिकाई"
भावार्थ:- मणि, माणिक और मोती की जैसी सुंदर छबि है, वह साँप, पर्वत और हाथी के मस्तक पर वैसी शोभा नहीं पाती। राजा के मुकुट और नवयुवती स्त्री के शरीर को पाकर ही ये सब अधिक शोभा को प्राप्त होते हैं!
सियापति श्री रामचंद्र की जय
उमापति महादेव की जय
पवनसुत हनुमान की जय
मृत्युलोक वासियों को राम राम

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