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विषय और इंद्रियों के संबंध में उत्पन्न जो भोग हैं, वह सब अविद्याजन्य होने के कारण, केवल, दुख के ही कारण हैं, क्योंकि आध्यात्मिक आदि तीनों प्रकार के ताप, उस अविद्या के ही कारण, होते हुए देखे जाते हैं।
विषय भोग केवल दुख के ही कारण है, केवल इतना ही नहीं, बल्कि वह आदि और अंत वाले भी होते हैं।
विषय और इंद्रियों का 'संयोग' होना, भोगों का 'आदि' कहलाएगा और 'वियोग' होना ही 'अंत' है, इसलिए वे सांसारिक सुख, आदि और अंत वाले हैं, अर्थात् नश्वर हैं। केवल बीच के ही समय में ही, सच से दिखलाई देते हैं (होते नहीं हैं)।
इसलिए, हे कौन्तेय! परमार्थ तत्व को जानने वाला विवेकशील बुद्धिमान पुरुष, उन भोगों में, नहीं रमा करता। उन सांसारिक विषयों में तो केवल उन्हीं पुरुषों की प्रीति देखी जाती है, जो अत्यंत मूढ़ है।

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