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मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंज़िल मगर
लोग साथ आते गए और कारवाँ बनता गया...🔥📚
मेरठ के सूरजकुण्ड पार्क में आचार्य जी के योद्धाओं ने पुरे जोश के साथ "पाओ और गाओ" 🎯 लक्ष्य के तहत मेरठ का 7th बुक स्टॉल लगाया, जिसमें आचार्य जी की ललकार को नन्हें योद्धा से लेकर युवाओं एवं वरिष्ठ जनों ने भी सराहा! जब आचार्य जी की तारीफ़ किसी के मुख से सुनने को मिल जाए तो लगता है कि बदलाव तो आ रहा है लेकिन अभी भी मंजिल बहुत दूर है पर जाना भी ज़रूर है और वहाँ तक जाने के लिए जागना और जगाना दोनों ही आवश्यक है...❣️♾️
बाँध लेंगे क्या तुझे यह मोम के बंधन सजीले?
पंथ की बाधा बनेंगे तितलियों के पर रंगीले?
विश्व का क्रंदन भुला देगी मधुप की मधुर गुनगुन,
क्या डुबो देंगे तुझे यह फूल दे दल ओस गीले?
तू न अपनी छाँह को अपने लिये कारा बनाना!
जाग तुझको दूर जाना! 👣✨
Posted by राम शर्मा on Gita Community Feed.

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