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जो उच्च पद पर हो,
जिसकी आज्ञा से ही सब कुछ होता है।
उनके अंदर दो आवश्यक गुण होने चाहिये।
प्रथम वह ऐसे लोगों को चुने जिनकी शक्ति और निष्ठा संदेह से परे हो।
दूसरा यह कि ऐसे निष्ठावान लोगों को परिस्थितियों के आधार पर निर्णय लेने की स्वंतत्रता देनी चाहिये।
यदि बात नेतृत्व करने की हो तो मर्यादापुरुषोत्तम भगवान राम से अच्छा उदाहरण कोई दूसरा नहीं है। जिन्होंने अप्रशिक्षित, असहाय वनवासी लोगों लेकर सागर में सेतु बना दिया, ईश्वर के समान शक्तिशाली रावण को नष्ट कर दिया।
प्रसंग यह है कि हनुमानजी को लंका भेजा गया। भगवती का पता लगाने के लिये। हनुमानजी कि निष्ठा और श्रद्धा जो राम के प्रति है वह तो लिखा भी नहीं जा सकता है। लेकिन यह सत्य है कि वह गये तो जगतजननी का पता लगाने ही है।
वहाँ परिस्थितियों कुछ ऐसी बनी कि लंका कि राजधानी को उनको फूंकना पड़ गया। वैभवशाली शहर राख में मिल गये।
यदि आप भगवान राम के आदर्शों, जीवनमूल्यों कि बात करें तो यह घटना उसके लगभग विरुद्ध लगती है। वह रावण हो या कोई और उनकी यह नीति थी कि युद्ध मे भी जीवन मूल्यों की रक्षा होनी चाहिये।
लेकिन जब हनुमानजी लंका से लौटते हैं। जगतजननी का पता बताते हैं। तो भगवान उन्हें हृदय से लगा लेते हैं।
तुम मम प्रिय भरतय सम भाई।
एक बार भी यह नहीं पूछते हैं कि हे तात लंका क्यों जला दिया। उन्हें यह विश्वास है कि हनुमानजी ने जो निर्णय लिया होगा वह ठीक ही होगा। जो नीतिवान, बुद्धिमान, निष्ठावान है। यदि वह मेरे ही बनाये जीवनमूल्यों को तोड़ रहा है तो परिस्थितियां विकट , विशिष्ट होंगीं। एक कहावत लोकप्रिय है कि पूँछ में आग लगाओगे तो लंका जलेगी ही।
इसकी पूरी संभावना है कि आप इस विश्लेषण से सहमत न हो। भगवान राम के प्रति जो सबकी श्रद्धा है, वह अतिसवेदनशील है, वह ईश्वर के साथ सबकी आत्मा भी है।
लेकिन मैं उनके नेतृत्व के प्रति बहुत आकर्षित रहता हूँ। यह जिज्ञासा सदैव रहती है। कैसे वह अकेले वन में जाकर इतने बड़े बड़े महान कार्य कर रहें हैं।।

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