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हलधर नाग ओडिशा के एक प्रतिष्ठित कवि और लेखक हैं, जिन्हें उनकी साहित्यिक सेवाओं के लिए 2016 में पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उनकी कविताएँ और रचनाएँ ओडिशा की लोक संस्कृति, परंपरा, और जीवन के संघर्षों का गहन चित्रण करती हैं। उनकी सादगी और साहित्य के प्रति गहरी प्रतिबद्धता उन्हें एक अनूठी पहचान देती है।
हलधर नाग का जन्म 1950 में ओडिशा के बारगढ़ जिले के घेंस गांव में हुआ था। उनका जीवन शुरू से ही संघर्षों से भरा रहा। गरीबी के कारण उन्होंने औपचारिक शिक्षा केवल तीसरी कक्षा तक ही प्राप्त की, लेकिन उन्होंने जीवन की पाठशाला में जो कुछ सीखा, उसे उन्होंने अपनी कविताओं और लेखन में व्यक्त किया। हलधर नाग ने अपने जीवन के शुरुआती दिनों में एक छोटे से दुकान में काम किया और फिर ग्रामीण स्कूल में कुक के रूप में कार्य किया। यहीं से उनके साहित्यिक जीवन की शुरुआत हुई।
उनकी कविताएँ ओडिशा के आम लोगों के जीवन को गहराई से दर्शाती हैं। हलधर नाग को कुसल कवि के नाम से भी जाना जाता है, जोकि उनकी लोकप्रिय कविता "धोधो बारगाछ" के कारण उन्हें मिला है। उनकी कविताओं में ओडिशा की समृद्ध संस्कृति, समाज और लोक कथाओं का विशेष महत्व है। उनकी भाषा सरल और सटीक होती है, जो सीधे दिल को छूती है। उनके द्वारा लिखी गई कविताएँ और गीत पूरे ओडिशा में लोकप्रिय हैं।
जब उन्हें पद्मश्री पुरस्कार के लिए चुना गया, तो उनकी सादगी का एक और उदाहरण सामने आया। उन्होंने अधिकारियों से कहा, "साहब, मेरे पास दिल्ली जाने के लिए पैसे नहीं हैं, कृपया पुरस्कार डाक से भेज दीजिए।" यह बयान उनकी विनम्रता और सादगी का प्रतीक है। हलधर नाग जैसे व्यक्तित्व उन महान आत्माओं में से हैं, जो अपनी सादगी और संकल्प के साथ समाज को एक नई दिशा दिखाते हैं।
आज भी, हलधर नाग अपनी सादगी और जीवनशैली के लिए जाने जाते हैं। वे अपने गांव में रहते हैं, सामान्य जीवन जीते हैं और लोगों के बीच अपनी कविताओं के माध्यम से अपनी बात पहुंचाते हैं। उनकी यह सरलता और गहराई उन्हें एक विशेष कवि और व्यक्तित्व बनाती है, जिनकी रचनाएँ और जीवन सदा प्रेरणा के स्रोत बने रहेंगे।

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