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"चरन कमल बंदउँ तिन्ह केरे, पुरवहुँ सकल मनोरथ मेरे,
"कलि के कबिन्ह करउँ परनामा, जिन्ह बरने रघुपति गुन ग्रामा"
भावार्थ:- मैं उन सब (श्रेष्ठ कवियों) के चरणकमलों में प्रणाम करता हूँ, वे मेरे सब मनोरथों को पूरा करें। कलियुग के भी उन कवियों को मैं प्रणाम करता हूँ, जिन्होंने श्री रघुनाथजी के गुण समूहों का वर्णन किया है!
सियापति श्री रामचंद्र की जय
उमापति महादेव की जय
पवनसुत हनुमान की जय
मृत्युलोक वासियों को राम राम जी

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