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आज के नवभारत टाइम्स के सन्डे एडिशन में आपकी मित्र का लेख छपा है। यूँकि, कभी-कभी हम भी अख़बार में छपते हैं😊
सच कहूँ तो मैं अपनी ओर से कभी किसी अख़बार/पत्रिका को अपना कोई लेख भेजती ही नहीं। इसका कारण है कि मुझे पता ही नहीं कि अपना लेख पत्रिका या अख़बार तक भेजने का प्रोसीजर क्या है। ऐसे में जब कोई मित्र आगे बढकर कहता है कि मैं आपका लेख छापना चाहता हूँ, तो मैं उन मित्र के प्रति कृतज्ञता से भर उठती हूँ।
आज के लेख की अधिक ख़ुशी इसलिए है क्योंकि मेरे मायके में पडोस में रहने वाले एक भाई ने मुझे इस लेख की फोटो खींचकर watsapp की। कितना अच्छा लगता है जब आपके रीयल लाइफ के लोग अख़बार पढ़ते हुए पहचान लेते हैं कि ये तो इनका लिखा हुआ है। भाई की watsapp चैट का फोटो कमेंट बॉक्स में देखा जा सकता है।
फिर अभी-अभी नजर पड़ी मेसेज बॉक्स पर, जहाँ सम्पादक मोहदय ने लेख की कॉपी भेजी हुई थी। उसके बाद दिखा मेरी वॉल पर पिन किये हुए लेख पर एक सुधि पाठिका जी ने इस लेख की फोटो कमेन्ट बॉक्स में लगाई हुई है। सोच सकते हैं कि ये सब देख कर मुझे कैसा लग रहा होगा☺️
दोस्तों, २०१७ में पहली बार हिंदी टाइपराइटर डाउनलोड करके हिंदी में लिखने की शुरुआत करने वाली आपकी यह मित्र आज कितनी आगे आ पहुंची है। ये सब आपके प्रोत्साहन व विश्वास का ही परिणाम है❤️
बात बस इतनी सी है, रेस के घोड़े की भांति आँखों के दोनों ओर फ्लैप लगाकर दौड़ लगा दीजिये। जैसे रेस के घोड़े को आसपास का नहीं दिखता, वैसे ही आसपास की सभी नकारात्मकताओं की ओर से ऑंखें बंद करके अपनी मनपसन्द फील्ड में दौड़ते चले जाइये। एक दिन आसमान को चीरकर उस परमात्मा तक अवश्य पहुँच जायेंगे, ये मेरा पक्का विश्वास है।

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