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जो खाया होगा उसी को मालूम होगा🥰

ये फ़ोटो तब की है जब लोगों से पूछ कर रोटियां नही बनाई जाती थीं कि तुम कितनी खाओगे? खाना हमेशा इतना बनता था कि मेहमान क़भी भी आते थे तो उनको इंतज़ार न करना पड़े। क्योंकि तब लोग फ़ोन करके नही आते थे.
मेहमानों के आने पर खुशी होती थी।
हम शाम को जैसे ही स्कूल से आते थे तो पेट में चूहे कूदते रहते थे. अम्मा एक कट्टू घी और शक्कर की एक घी और अचार की देती थीं। न पोहे पता थे न स्नेक्स। अगली सुबह भी दो रोटियां चाय के साथ ही खाते थे।
पता नही कहाँ गई वो सौंधी रोटियां और कहां चला गया खूबसूरत बचपन 🌹🌹

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