शारदीय नवरात्र में शक्ति-साधना पर्व (अंक - एक)
हिंदुओं के आश्विन मास का शुक्ल-पक्ष भक्तिमूलक एवं शक्तिवर्धक पर्व है।
योगवाशिष्ठ में ब्रह्म को सर्वशक्तिमय कहा गया है -
" सर्वशक्तिपरं ब्रह्म। "
ब्रह्म की वह शक्ति चेतन-शरीर में चित्त-शक्ति के रूप में, वायु में स्पंदन-शक्ति के रूप में , पत्थर में जड़-शक्ति के रूप में, जल में द्रव-शक्ति के रूप में, अग्नि में तेज-शक्ति के रूप में, आकाश में शब्द-शक्ति के रूप में, सृष्टि में सृजन-शक्ति के रूपादि में रहती है और कल्प के अंत में सब शक्तियां उसी में समाहित हो जाती हैं।
एक और सारी सृष्टि भगवान की अनंत शक्ति का चमत्कार है , तो दूसरी ओर मानव में भी वही परमात्म-शक्ति है , जिस शक्ति का प्रयोग करके मनुष्य परमात्मा तक को प्राप्त कर लेता है। इसलिए सनातन हिंदू समाज सदैव से शक्ति का उपासक रहा है।
हमारे शास्त्र केवल यह नहीं कहते -
" यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:। "
जहां नारी की पूजा होती है , वहां देवता निवास करते हैं।
बल्कि इससे बढ़कर इसकी उद्घोषणा करते हैं -
" जगदम्बामयं पश्य स्त्रीमात्रं विशेषत:। "
अर्थात् विश्व की समस्त स्त्रियां जगदंबा (भगवती) का स्वरूप ही तो हैं।अतः इन्हें देवी की दृष्टि से देखना चाहिए।
शक्ति के रूप में ईश्वर के नारी-रूप की कल्पना हिंदू संस्कृति की विशेषता रही है। भारतीय वैदिक चिंतन के अनुसार मां आदिशक्ति के बिना " शिव " भी " शव " में परिणत हो जाता है। शक्ति यानी भय-मुक्ति। नवरात्र में शक्ति की आराधना की जाती है।
मानव में बहुत ही सामान्य एवं विशेष शक्तियां होती हैं , जैसे - बोलने की शक्ति , देखने की शक्ति , सुनने की शक्ति , चलने की शक्ति , भोजन पचाने की शक्ति आदि। ये शक्तियां अलग-अलग दिखती तो हैं , पर मूलतः एक ही शक्ति होती है। इसी कारण अनेक शक्तियों के रहते हुए भी मनुष्य को ' अनेक ' नहीं " एक " ही माना जाता है। इसी प्रकार मां दुर्गा के कई विविध रूप हैं , परन्तु आदि-शक्ति जगदम्बा (जगत्+अम्बा) तो एक ही है।
शक्ति-साधक प्रतिपदा से नवमी तक मां शक्ति - नव दुर्गा के नौ रूपों क्रमशः शैलपुत्री , ब्रह्मचारिणी , चंद्रघंटा , कूष्मांडा , स्कंदमाता , कात्यायनी , कालरात्रि , महागौरी एवं सिद्धिदात्री की पूजा-आराधना करते हैं।
प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चंद्रघंटेति कूष्मांडेति चतुर्थकम्।।
पंचमं स्कंदमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम्।।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:।
मां भगवती के इन नौ रूपों के नौ दिनों में पूजन के कारण ही इस अवधि को नवरात्र काल कहा जाता है।
मिथिलेश ओझा की ओर से सभी शक्ति-उपासकों को नमन एवं वंदन।