याद बचपन की
नक्श उभरता आँखों में
झांकता हुआ बचपन
बहते हुए अक्स से
किस्सा सुनाता हुआ
वो कंचो का खेल पुराना
माँ के हाथो का खाना
तलाब किनारे का मंदिर
और पहाड़ पे बजरंग बली
टेडी मेडी गलियों से
दौड़ता हुआ बचपन
बारिश की फुहारों पे
चलती हुई कागज की नाव
निम्बू रस वाली फांक से की हुई लड़ाई
और फिर मिले बिना किसी मोलभाव
कोई मंदिर नहीं कोई मस्जिद नहीं
बस दिलो का मेल
शाम होते ही जमा छुपा छुपी का खेल
रतजगा करते चौपाल पे
और होली पे उड़ते गुलाल
है कोई अत्त्लिकाएं नहीं पर
बस खुशियों भरी आवाज
खुला खुला सारा जहाँ
और अपना सा लगता आसमान
आज जब घर के दुसरे माले
से आसमान को निहारता हूँ
तो अहसास होता है
जैसे जैसे हम बड़े हुए
अपनी दुनिया छोटी हो गयी है