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"मंजिल उन्हीं को मिलती है जिनके सपनों में जान होती है, पंख से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है!" ये पंक्तियां वाकई में उन लोगों के लिए लिखी गई हैं, जिन्होंने अपनी मेहनत और लगन से असंभव को संभव बना दिखाया है। ऐसी ही एक मिसाल हैं शीला शर्मा, जिनकी कहानी उनके अटूट हौसले की गवाही देती है। 💫
शीला की जिंदगी में एक बड़ा तूफान तब आया जब एक रेल हादसे में उन्होंने अपने दोनों हाथ खो दिए और साथ ही अपने पैर की तीन अंगुलियां भी। इस हादसे में उनकी मां भी चली गईं। इतने बड़े नुकसान के बाद भी शीला ने हार मानने के बजाय अपनी जिंदगी को एक नई दिशा देने का फैसला किया। एक छोटी-सी बच्ची के लिए बिना हाथों के और बिना मां के जीना बहुत कठिन था, लेकिन शीला ने अपनी कमजोरी को ताकत बना लिया। 🌈
गोरखपुर के एक मध्यमवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखने वाली शीला आज लखनऊ जैसे महानगर में अपनी पहचान बना चुकी हैं। वे एक कुशल पेंटर हैं और सबसे खास बात यह है कि वे अपने पैरों से पेंटिंग बनाती हैं। उनकी कला इतनी उत्कृष्ट है कि लोग उनके हुनर को देखकर चकित रह जाते हैं। हाथों से पेंटिंग न कर पाने के बावजूद भी वे अपनी पेंटिंग्स में जीवन के सभी रंग भर देती हैं। 🎨
जैसे-जैसे शीला बड़ी होती गईं, उनका आत्मविश्वास भी बढ़ता गया। उन्होंने लखनऊ यूनिवर्सिटी से आर्ट्स में स्नातक किया और अपने पैरों से पेंटिंग बनाना शुरू कर दिया। वे पेंटिंग करते समय अपने पैरों और मुंह दोनों का उपयोग करती हैं। कुछ समय के लिए वे दिल्ली में भी रहीं, जहां के माहौल और कलाकारों ने उनके हौसलों को और प्रेरित किया। हालांकि, उनका दिल अपने शहर लखनऊ में ही बसता था, और वे वहां वापस लौट आईं। 💖
लखनऊ लौटने के बाद शीला की मुलाकात सुधीर से हुई और उन्होंने शादी कर ली। शादी के बाद भी उन्होंने अपने रंगों को नहीं छोड़ा। सुधीर ने उनका पूरा समर्थन किया, जिससे उनकी कला और भी निखर गई। शीला ने अपने परिवार और कला दोनों को बखूबी संभाला। उन्होंने न केवल किचन में अपने कर्तव्यों को निभाया, बल्कि अपने पेंटिंग्स में भी जान डाल दी। 🎨👩‍🎨
शीला अपनी कला की प्रदर्शनी लखनऊ, दिल्ली, मुंबई, और बैंगलोर जैसे महानगरों में लगा चुकी हैं। उनकी मेहनत और लगन ने उन्हें कई पुरस्कार भी दिलाए हैं। उनके परिचित उन्हें 'फुट पेंटर' के नाम से जानते हैं। शीला को प्राकृतिक दृश्य और महिलाओं की पेंटिंग बनाना बेहद पसंद है। 🌿👩‍🎨
शीला का सपना है कि वे उन बच्चों को पेंटिंग सिखाएं जो किसी हादसे में अपने हाथ या पैर खो चुके हैं। लेकिन वे इसे किसी एनजीओ या पैसों के लिए नहीं करना चाहतीं। उनका मानना है कि कुछ भी असंभव नहीं है। हर काम किया जा सकता है, बस जरूरत है हौसले और सकारात्मक सोच की। शायद इसलिए कहा जाता है कि कला शरीर के अंगों की मोहताज नहीं होती, उसे बस जुनून और धुन की जरूरत होती है। 💪🎨

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