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अति दीन मलीन दुखी नितहीं।
जिन्ह के पद पंकज प्रीति नहीं ।।

भावार्थ:- हे रघुनाथ जी ! जिन्हें आपके चरणकमलों में प्रीति नहीं है वे नित्य ही अत्यंत दीन, मलिन (उदास) और दुःखी रहते हैं ॥

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