हरियाणा ने एक बात समझा दी है... सरकार चलाना एक काम है, और चुनाव जीतना एक और काम है.
भाजपा का बड़े से बड़ा समर्थक भी मानता है कि भाजपा ने दस साल हरियाणा में बड़ी ही चुटियामैतिक सरकार चलाई है. मैं गया नहीं हरियाणा, आप ही लोगों की कही सुनाई बोल रहा हूं... पर चुनाव आया, जोर लगाया और सब पलट गया.
उधर भाजपा का बड़े से बड़ा आलोचक अंदर ही अंदर स्वीकार करेगा, मोदी की 2014-19 की केंद्र सरकार में ऐसी कोई खामी नहीं थी कि ना जीते. पर ओवरकॉन्फिडेंस में रह गए, जोर नहीं लगाया, एक दूसरे की खोदने में लगे रहे और बैसाखियों पर आ गए. जबकि यही सरकार रहनी थी, यही मोदी रहने थे और उनका यही विकास रहना था जिसकी इतनी फजीहत हो रही है, अगर चुनाव में जोर लगाए होते जैसा '14 और '19 में लगाया था तो 350+ कहीं नहीं जाना था.
हरियाणा के चुनावों ने राहत दी है. अब डीप स्टेट को अपना बैकअप प्लान खोजना होगा, तब तक यूएस में उम्मीद है कि ट्रंप की वापसी हो जायेगी और उधर से प्रेशर थोड़ा कम हो जायेगा. हरियाणा का रिजल्ट कुछ ऐसा लगा जैसे श्रीजेश ने आखिरी मिनट में पेनाल्टी कॉर्नर रोक लिया. कुछ हजार वोट इधर से उधर होते तो कहानी कुछ और ही होती.
पर चुनाव और राजनीतिक दलों की सीमित भूमिका होती है. वे एक जमीन देते हैं, उसपर खेती हमें खुद करनी होती है. जो समाज का काम है वह पॉलिटिकल पार्टियां नहीं कर देती. मैं अगर भाजपा पर एहसान करने के लिए भाजपा को वोट देता हूं तो मैं नाराज हो सकता हूं, घर बैठ सकता हूं या कांग्रेस को भी वोट कर सकता हूं. पर मुझे पता है कि मैं अपनी गरज से भाजपा को वोट देता हूं क्योंकि मुझे कांग्रेस का टाइम याद है और कांग्रेस वापस आयेगी तो क्या करेगी इसकी भी समझ है. उसके आगे जो करना है वह हमें खुद ही करना है, भाजपा नहीं करने वाली ... और वह हम भाजपा के रहते कर सकते हैं, कांग्रेस नहीं करने देगी।
जय भाजपा तय भाजपा 🥰