आज भाई सागर तोमर जी ने लिखा कि भारत के तथाकथित साहित्यकार दुनिया भर के कवियों की कविताओं का हिन्दी अनुवाद करते हैं, किन्तु यहूदी कवियों को हिन्दी के पाठको तक पहुंचाने से डरते हैं क्योंकि इससे उन्हें तथाकथित साहित्य के सौदागरों की नाराजगी का खतरा है। तो इसकी चिन्ता किए बगैर प्रस्तुत है इजरायल के सर्वाधिक महत्वपूर्ण कवियों में से एक येहूदा एमीची की कविता का हिब्रू से अंग्रेज़ी से होते हुए हिन्दी अनुवाद। एमीची का जन्म सन 1924 में जर्मनी में हुआ था। मृत्यु 22 सितंबर, 2000 को येरूसलम में हुई। अनुवादक रॉबर्ट ऑल्टर ने उन्हें किंग डेविड के बाद हिब्रू का सर्वश्रेष्ठ कवि माना है। प्रस्तुत है उनकी कविता इजरायल देश में यहूदी का अंश~~
हमें यह भी याद नहीं रहा
कि हम कहाँ से आए थे।
वनवास के दौरान हमारे यहूदी नाम भी हमसे मिट गए थे।
हमारे फल फूल, अपने पुराने शहर, धातुएं और शूरवीर
सबके सब पत्थर बन गए।
गुलाबों और मसालों की खुशबू उड़ चुकी थी।
ढेर सारा लाल हस्तशिल्प दुनिया से बरसों पहले जा चुका था और उन्हें बनाने वाले हाथ भी।
खतने ने हमारे साथ वैसा ही व्यवहार किया
जैसा कि बाइबल की कहानी में जैकब के पुत्रों और शेकेम के साथ हुआ था।
ताकि हम जीवन भर दुःख झेलते रहें।
आज हम क्या कर रहे हैं?
इसी दुःख के बोझ को लेकर वापस आ रहे हैं।
हमारी इच्छाएं दलदल में दफ़न होकर सूख चुकी हैं,
रेगिस्तान हमारे लिए ही सूख चुका है जबकि हमारी संतानें बेहद खूबसूरत हैं।
समन्दर के रास्तों में डूबे जहाजों के मलबे भी धरती तक पहुंच गए और हवाएं भी
पर हमारी नौकाओं के पाल समन्दर में ही लहरों से टकराते रहे।
हम क्या कर रहे हैं?
इस अँधेरी भूमि में इसके साथ
पीली परछाइयाँ जो आँखों को छेदती हैं?
(समय-समय पर कोई न कोई कहता है, चालीस के बाद भी या पचास वर्ष के बाद यही कि सूरज मुझे मार रहा है।
अंग्रेज़ी अनुवाद चाना बलोच
हिन्दी अनुवाद प्रो. पुनीत बिसारिया