कल अहसास हुआ कि जशपुर वाक़ई दिल्ली से बहुत दूर जंगलों में है, जब कल मुझे प्रकाशक द्वारा 'सूचना' मिली कि 'मैं से माँ तक' का पाँचवा संस्करण अप्रैल में आ गया था, लेकिन प्रकाशक मुझे सूचित नहीं कर पाए। अगले चुनाव में मैं सरकार के आगे अनशन करूँगी कि जशपुर में फ्लाइट नहीं तो ट्रेन रूट ही चलवा दें ताकि किताबें ना सही, "सूचनाएँ" तो कम से कम समय पर पहुँच जाएँ।
ख़ैर, पाँच संस्करण वाली अब यह मेरी दूसरी किताब बन गई है। इसके आगे अभी 'ऐसी वैसी औरत' है जिसके 'सात' संस्करण आ चुके हैं। अन्य चार में से 3 के भी दो संस्करण हो गए हैं। पाठकों के इस प्रेम के प्रति आभार शब्दों में ज्ञापित नहीं कर सकती, फिर भी दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया, आप हमें पढ़ते हैं तो हम हैं। ❤️