हले मै समझता था मेरी बुग्गू बहोत निर्दयी और घमंडी है पर एक घटना ने मेरे बिचार पूरी तरह बदल दिए
हुआ कुछ यूं कि एक दिन मैने बुग्गू से कहा कि चलो मूवी देखने चलते हैं ,वही ईलू ईलू भी कर लेंगे
बुग्गू ने कहा नहीं आज नहीं,
फिर किसी दिन चलेंगे, आज मुझे पढाई करना है
मैं चला गया
आधे घंटे बाद मुझे याद आया कि बुग्गु बहोत आलसी है, पढाई के चक्कर में वो खाना भी नहीं बनाएगी तो मैं खाना पैक कराके उसे देने उसके रूम पर चला गया
दरवाजे को पुश किया तो दरवाजा बंद था
डोरवेल नहीं है तो दरवाजा खटखटाया पर कोई जबाब नहीं मिला
मुझे लगा कही सो तो नहीं ग्ई
फिर मै घूम कर पीछे के रास्ते से दीवार पर चढ़कर उसके रूम में पहुंच गया
वहा मैने देखा एक लड़का जो उसका हम उम्र था वो बेड पर लेटा हुआ था
बुग्गू उसके पेट पर बैठ कर उसके होठो पर अपने होठ चिपकाए हुई थी
उस लड़के की आंखे बंद थी और सांस तेज चल रही थी
ये देखकर मै भडक गया और बुग्गु को उल्टा सीधा सुनाने लगा
वो रूआंसी होकर बोली -- आप तो हमेशा शक ही
करते रहते हैं, ये मेरा दोस्त है जो साथ में पढाई करने आया था
मैथ बनाते समय इसकी धड़कन रूक गई इसलिए इसको ब्रीथ दे रही थी, बर्ना इसकी मृत्यु भी हो सकती थी
मुझे बहोत पछतावा हुआ कि किसी की जान बचाने के लिए ये लड़की कितना संघर्ष कर रही है और मै खामखा शक कर रहा था
मैने उसको सौरी बोला और उस लड़के को भी समझाया कि मैथ इतना कठिन लगता है तो मैथ छोडकर अन्य विषयों पर कांसीट्रेट करो
ये तो तुम्हारा भाग्य अच्छा है कि तुम यहां हो, कही और होते तो कुछ भी हो सकता था
फिर मै खाना देकर वापस चला आया
मन में पछतावा भी था कि बेकार में शक किया, साथ में गर्व का भाव भी था कि मेरी बुग्गू कितनी दयालु, सहृदय और मानवतावादी है
ये टेंगई प्रसाद की दर्द भरी किहानी जबकि घासी राम जी की कलमकारी होतीश 😜