ब्रिटिशों ने हमें एक विभाजित और टुकड़ों में बंटा भारत दिया था, जो सैकड़ों राजनीतिक द्वीपों में बिखरा हुआ था।
1947 में भारत को स्वतंत्रता तो मिली, परंतु यह स्वतंत्रता पूरी तरह से अखंड भारत के रूप में नहीं मिली थी। ब्रिटिश शासन ने हमारे देश को न केवल दो देशों में विभाजित किया, बल्कि भारत के भीतर सैकड़ों रियासतों, रजवाड़ों और छोटे-छोटे राज्यों के रूप में बिखेर दिया। इस विभाजन के चलते भारत के सामने एक बड़ी चुनौती थी - कैसे इन सैकड़ों रियासतों को एक संगठित भारत में जोड़ा जाए।
सरदार पटेल का अद्वितीय प्रयास: 553 रियासतों का एकीकरण
इस ऐतिहासिक परिस्थिति में सरदार वल्लभभाई पटेल का नेतृत्व सामने आया। पटेल ने कूटनीति, दृढ़ता, और अनवरत प्रयास से लगभग 553 रियासतों को शांतिपूर्ण तरीके से भारत में मिलाया। केवल तीन साल के अंदर, उन्होंने भारत के अधिकांश हिस्सों को एकता के सूत्र में पिरो दिया। यह कार्य केवल बातचीत, राजनैतिक सहमति और दूरदर्शिता के बल पर हुआ, और इसका सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह था कि इसके दौरान कोई रक्तपात नहीं हुआ।
पटेल के इस प्रयास ने देश को एक नई ताकत दी, जिससे वह न केवल भूगोल के स्तर पर, बल्कि मानसिकता के स्तर पर भी एकजुट हो पाया। आज जिस भारत को हम एक संप्रभु और स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में देखते हैं, उसका एक बड़ा श्रेय सरदार पटेल को जाता है।
नेहरू का कश्मीर विवाद: एक अनसुलझी समस्या
वहीं दूसरी ओर, जवाहरलाल नेहरू को जम्मू और कश्मीर का प्रभार सौंपा गया था। और नेहरू के नेतृत्व में कश्मीर की स्थिति काफी जटिल हो गई और आज तक भी वह एक अनसुलझी समस्या बनी हुई है। कश्मीर मुद्दे पर नेहरू की निर्णयात्मकता और कुछ विवादास्पद कदमों के कारण देश को एक लंबे समय तक इस विवाद से जूझना पड़ा।
नेहरू की कश्मीर नीति का असर आज भी देखा जा सकता है। एक ओर जहाँ पटेल के प्रयासों से भारत संगठित और सशक्त हुआ, वहीं दूसरी ओर नेहरू के कुछ निर्णयों ने कश्मीर को एक संवेदनशील राज्य बना दिया है I