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वह सूर्य ग्रहण के दौरान पैदा हुई थी, और जन्म के समय उसका सिर असामान्य रूप से छोटा था, साथ ही होंठ और नाक भी थोड़े अलग थे। गांव के लोग उसे चिढ़ाते थे, उसे "पिची" (पागल) और "कोठी" (बंदर) कहकर ताने मारते थे। वह घर आकर रोने लगती थी, उनके क्रूर शब्दों से टूट जाती थी। वह तो बस एक बच्ची थी, और हम उसे समझाने की पूरी कोशिश करते थे, लेकिन उसका दुख देखकर हमारा दिल टूट जाता था। लोग यहां तक कहने लगे थे कि हमें उसे अनाथालय भेज देना चाहिए। लेकिन आज, जब हम उसे दूर देश में पैरालंपिक में मेडल जीतते हुए देखते हैं, तो यह साबित होता है कि वह वास्तव में एक खास लड़की है... यह कहानी है दीप्ति जीवनजी की, जिसे उनकी मां जीवनजी ने साझा किया।
पेरिस पैरालिंपिक 2024 ने दुनिया को दिखा दिया है कि अगर मजबूत इच्छाशक्ति हो, तो कुछ भी हासिल किया जा सकता है। तमाम चुनौतियों के बावजूद, एथलीटों ने सफलता की ऊंचाइयों को छुआ है। दीप्ति जीवनजी उन प्रेरणादायी एथलीटों में से एक हैं, जिनका सफर चुनौतियों से भरा रहा, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी। पेरिस पैरालिंपिक 2024 में, दीप्ति जीवनजी ने महिलाओं की 400 मीटर T20 स्पर्धा में कांस्य पदक जीतकर भारत के लिए 16वां पदक हासिल किया। इस पैरा-एथलीट ने यह दौड़ 55.82 सेकंड में पूरी की।
इससे पहले, दीप्ति ने जापान के कोबे में विश्व एथलेटिक्स पैरा चैंपियनशिप में भारत के लिए पहला स्वर्ण पदक जीता था। वह आंध्र प्रदेश के वारंगल जिले के कल्लेडा गांव की रहने वाली हैं। उनके माता-पिता, जीवनजी यादगिरी और जीवनजी धनलक्ष्मी, ने याद किया कि कैसे उनकी बेटी को बड़े होने के दौरान ताने सहने पड़े। इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, दीप्ति बौद्धिक विकलांगता के साथ पैदा हुई थीं, और उनका सफलता तक का सफर बेहद असाधारण रहा है।

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