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इस समय विश्व कूटनीति के क्षेत्र में सबसे योग्य डिप्लोमेट भारत के #विदेशमंत्री_जयशंकर जी हैं। अपनी पुस्तक के विमोचन पर उन्होंने कहा, "मैं मानता हूँ कि संसार में अब तक सबसे अच्छे डिप्लोमेट हनुमानजी थे।"

इसका थोड़ा सा विश्लेषण मैं करना चाहता हूँ।

यह कितना आश्चर्यजनक लगता है। हम जिन्हें अभी तक #भक्त और अतुलित बलधामं ही समझतें हैं। वह सबसे बड़े डिप्लोमेट भी हैं।

महावीर हनुमानजी का लंका में मेघनाद द्वारा जंजीरों में बंधना कोई सामान्य घटना नहीं है। उनके किसी भक्त के लिये यह बहुत दुखद घटना है। लेकिन #डिप्लोमेसी की दृष्टि से यह सुनियोजित घटनाक्रम है। वह अपने प्रभु के भक्त भी हैं, और दूत भी हैं।
जो दूत होता है, मंत्री होता है, सचिव होता है या मैनेजर होता है, वह अपने शासक, व्यवस्थापक, बॉस की इच्छा और उद्देश्य को जानता है। यही उसकी सबसे बड़ी प्रतिभा है।

रावण और उसकी लंका को जानने के लिये, तथा अपने बलाबल का आभास देने के लिये जंजीरों में बंधकर रावण की राज्यसभा में उपस्थित होते हैं।

यहाँ हनुमानजी बाँधकर लाये गये हैं।
वही हनुमानजी है जो अभी अभी समुद्र लाँघकर आये हैं। जो चाह ले तो ग्रहों को गति रोक सकते हैं। वह रावण के सामने उपस्थित है। समस्त शक्तियों, निष्ठा, भक्ति के बाद भी वह एक दूत कि मर्यादा को नहीं भूलते है।

वह कहते हैं,
प्रभु की आज्ञा नहीं है।
नहीं तो हे रावण! मैं तेरे कुल सहित लंका का नाश करके जगत जननी सीता को ले जाता।
हनुमानजी ऐसा कर भी देते तो उनके प्रभु का उनसे इतना स्नेह है कि कुछ न कहते।
लेकिन जो प्रभु को करना है, वह तो वही करेंगे।

हनुमानजी बहुत बड़ी शिक्षा दे रहे हैं। एक दूत को, डिप्लोमेट को या सभी को अपने पद और उसकी सीमाओं के अंदर ही अपना श्रेष्ठ कार्य करना चाहिये।

यदि रावण तनिक भी बुद्धिमान, अहंकार मुक्त और विन्रम होता तो हनुमानजी के बल, पराक्रम और संदेश को समझ जाता। जिनके दूत अभेद्य लंका के महलों को भष्म कर सकते हैं। उनके बलाबल को समझना इतना भी कठिन नहीं था।
लेकिन अहंकार के वृक्ष पर विनाश के फल ही लगते हैं।।

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