नब्बे के दशक में किसी भी महिला के लिए कृषि क्षेत्र में किसी भी ऑटोमोबाइल कंपनी को संभालना एक बड़ी बात थी. मगर यह मल्लिका के लिए बहुत ही सामान्य बात रही थी. इस पद को संभालते वक्त उनके पिता ने उन्हें पूर्ण स्वतंत्रता के साथ निर्णय लेने के लिए कहा.
तब मल्लिका का जवाब था- ”कारोबार कुछ भी हो, सबकी एक ही जरूरी और न्यूनतम जरूरत होती है. इसी विश्वास के साथ मैंने टैफे में शुरुआत की.”
फोर्ब्स की सूची में 50वें स्थान पर
साल 2012 में, व्यापार पत्रिका फोर्ब्स ने मल्लिका को एशिया की 50 सबसे शक्तिशाली व्यापारिक महिलाओं में नामित किया. मल्लिका का नाम 2021 में फॉर्च्यून की टॉप 100 ताकतवर महिलाओं में भी शामिल हो गया है.
85 करोड़ से 160 करोड़ अमेरिकी डॉलर में बदला
मल्लिका साल 1986 में 27 साल की उम्र में जब टैफे से जुड़ीं, तो कंपनी का सालाना टर्नओवर लगभग 85 करोड़ रुपये था. लेकिन मल्लिका ने अपनी कड़ी मेहनत और अपने पिता और टैफे टीम के मार्गदर्शन से कंपनी के टर्नओवर को लगभग 160 करोड़ अमेरिकी डॉलर तक बढ़ा दिया है.
जब मल्लिका टैफे में शामिल हुईं, तो उसमें केवल बुनियादी कृषि उपकरण बनाए जाते थे. मल्लिका ने एक ही प्रकार के उपकरण की सीमा समस्या को समझा और उसमें विविधता लाने का फैसला किया.
कड़ी मेहनत से बन गई ट्रैक्टर क्वीन
जब मल्लिका कंपनी में शामिल हुईं, तब टैफे को एक सामान्य दक्षिणी कंपनी के रूप में मान्यता मिली हुई थी और इसे अपने ही राज्य में कुछ पहचान मिली हुई थी. मगर मल्लिका ने अपनी कड़ी मेहनत के दम पर इसे पूरे भारत में पहचान दिलाई. और हाई टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर ट्रैक्टर क्वीन बनीं.
मल्लिका भारतीय किसानों के बारे में कहती हैं, “भारतीय किसान बहुत बुद्धिमान और मांग करने वाले होते हैं. वे अपना पैसा समझदारी से खर्च करते हैं.
ऐसे में हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौती यह थी कि ट्रैक्टर की पुरानी तकनीक, मॉडल और डिजाइन को बदला जाए मगर उसकी कीमत नहीं बढ़ाई जाए.”