मुम्बई के भिवांडी के एक मध्यम वर्गीय परिवार में भारती सुमेरिया का जन्म हुआ था। उनके रूढ़िवादी पिता ने उन्हें दसवीं के बाद पढ़ाने से इंकार कर दिया और उनकी शादी कर दी ताकि वह ख़ुशी से अपना जीवन गुजार सके। उनके पिता थोड़ा-थोड़ा यह जानते थे कि जिसे उन्होंने अपनी बेटी के लिए चुना है वह व्यक्ति उनके लिए एक बुरा सपना बन सकता है।
शादी के बाद जल्द ही भारती ने एक लड़की को जन्म दिया और कुछ सालों बाद उनके दो जुड़वे बेटे हुए। पति बेरोज़गार थे और अपने पिता की पूरी प्रॉपर्टी घर का किराया देने में ही गवा रहे थे। उनके पति संजय, भारती को बिना बात ही पीटा करते थे और जैसे-जैसे समय बीतता गया उनका वहशीपन बढ़ता ही चला गया। यह हर रोज होने वाली घटना बन गई और इसके चलते उन्हें कई बार हॉस्पिटल में एडमिट होना पड़ता।
भारती अपनी इस डरावनी जिंदगी से पलायन कर अपने माता-पिता के घर चली आयीं। वह जानतीं थीं कि उन्हें वापस अपने पति के पास ही जाना पड़ेगा। उनका हर एक पल अपने पति के डर के साये में बीतता था। एक महीने तक वह घर से बाहर भी नहीं निकली थी और उनकी लोगों के साथ बिलकुल भी बातचीत नहीं थी।
यह एक ऐसा समय था जब वह पूरे अँधेरे में थी, उनके बच्चे ही उनकी आशा के किरण थे। उनके बच्चे हमेशा उनका हौसला बढ़ाते कुछ नया सीखने को, लोकल कॉम्पिटिशन में भाग लेने को और अपने डिप्रेशन के दायरे से बाहर निकलने के लिए कहते थेl भारती के भाई ने बच्चों के ख़ातिर उन्हें नौकरी करने को कहा।
पति की ज्यादतियां अभी भी ख़त्म नहीं हुई थी। उनके पति घर में और लोगों के सामने भी भारती को मारते थे। केनफ़ोलिओ़ज को बताते हुए भारती कहती हैं कि “पुलिस के पास जाने पर उनसे भी मदद नहीं मिलती थी क्योंकि मेरे पति की पहचान पुलिस डिपार्टमेंट के लोगों से थी”।
तीन-चार साल बाद भारती ने एक कदम आगे बढ़ाया और पीईटी नामक एक फैक्ट्री खोली जिसमे प्लास्टिक बॉटल्स बनाया जाता है। अपने ग्राहकों के संतोष के लिए वह खुद ही सामान की गुणवत्ता की जाँच करती थी। इन सब से उन्हें प्रतिष्ठा मिली और जल्द ही सिप्ला, बिसलेरी जैसे बड़े ब्रांड से भी आर्डर मिलने लगे।
तीन साल बाद 2014 में उनके पति संजय ने फिर से उनपर हाथ उठाया। इस समय उनके पति ने फैक्ट्री के कर्मचारियों के सामने ही भारती को मारना शुरू कर दिया। यह उनके बच्चों के सहन शक्ति से बाहर था और बच्चों ने अपने पिता से कह दिया कि वह वापस कभी लौटकर न आये। आज भारती ने अपना बिज़नेस बढ़ाकर चार फैक्ट्री में तब्दील कर दिया है जिसका वार्षिक टर्न-ओवर लगभग चार करोड़ है। इस तरह भारती ने घुप अँधेरे जीवन में भी एक रौशनी का झरोखा सा खोल दिया और स्वयं और अपने बच्चों का जीवन खुशियों से भर दिया।