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देखते ही देखते ताश के पते की तरह समेज गाँव बाढ़ का ग्रास बन गया , किसी को क्या पता था कुदरत हमारे साथ कुछ ऐसा कर रहा है इंसान कितना कुछ सोचता और करता है जीते जी , और कुदरत को कुछ और ही मंज़ूर था , इंसान अपने स्वार्थ के लिए ना जाने कितनों को दुखी करता खुद को ही शक्तिशाली समझता है , लेकिन खुदा को कुछ और ही मंज़ूर होता है जो करना होता है एक पल में सब मिट्टी में मिला देता है ये सब मानव के लिए एक सबक़ है ।
तीर्थ स्थानों को अगर तीर्थ स्थान ही रहने दिया जाए उन्हें व्यापार का अड्डा न बनाया जाए न ही छेड़-छाड की जाए तो ऐसा मंजर देखने को शायद ही न मिले ,इंसान ने अपनी ज़रूरतों के लिए तीर्थ स्थानों को भी नहीं छोड़ा और लोग दर्शन करने नहीं मौज मस्ती करने जाते अगर कोई श्रद्धाभाव से जाए तो शायद भोलेनाथ भी इतने क्रोधित न होते भोलेनाथ शांति चाहते न की ऐसे शोर शराबा और गंदगी , तभी भोलेनाथ ने इतने ऊँचे पर्वत पर अपना स्थान चुना जहां कोई इतने आसानी से न पहुँच सके जो पहुँचे अपनी तपस्या और लगन से भोलेनाथ तक पहुँचे आजकल लोगों ने तीर्थ स्थानों को व्यापार और मोज मस्ती का अड्डा बना लिया ये सब तो होना ही है , बस भोलेनाथ अब रहम कर ऐसे किसी मासूम के साथ ऐसा मत कर माफ़ कर दे महादेव ग़लतियाँ कुछ एक करते और भुगताना सबको पड़ता हैं , जय भोलेनाथ जय हो शम्भु रक्षा कर अब 🌹🙏🌹
बबिता कुमारी की कहानी एक असाधारण प्रेरणा का स्रोत है, जो भारतीय कुश्ती में उनके महत्वपूर्ण योगदान को दर्शाती है। 😊 हरियाणा के छोटे से गाँव बलाली में जन्मी, बबिता ने अपने पिता महावीर सिंह फोगाट के मार्गदर्शन में कुश्ती के गुर सीखे। 🏋️♀️ महावीर फोगाट ने अपने बच्चों को कुश्ती में प्रशिक्षित करने का सपना देखा था, और बबिता ने इस सपने को साकार करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। 💪
बबिता कुमारी ने अपनी मेहनत और दृढ़ संकल्प के बल पर 2010 में दिल्ली में आयोजित कॉमनवेल्थ गेम्स में सिल्वर मेडल जीतकर पहली बार अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपनी पहचान बनाई। 🥈 यह उनकी पहली बड़ी उपलब्धि थी, जिसने उन्हें भारतीय कुश्ती में एक उभरते हुए सितारे के रूप में स्थापित किया। 🌟 इसके बाद, 2014 में ग्लासगो में आयोजित कॉमनवेल्थ गेम्स में बबिता ने गोल्ड मेडल जीतकर सभी को चौंका दिया। 🥇 इस जीत ने उन्हें राष्ट्रीय हीरो बना दिया और भारतीय खेल जगत में उनकी प्रतिष्ठा को और मजबूत किया। 🎉
ये हैं हिमाचल की उड़नपरी बक्शो देवी, जिन्होंने ऊना जिले के इंदिरा स्टेडियम में 5000 मीटर की रेस में नंगे पांव दौड़कर स्वर्ण पदक जीता है। 🏅 उनके संघर्ष और दृढ़ संकल्प की कहानी बेहद प्रेरणादायक है। बक्शो देवी ने पेट में पथरी के दर्द को बार-बार सहते हुए दौड़ने का साहस दिखाया और घोर गरीबी और पिता के साए के बिना अपनी अद्भुत दौड़ से सभी की आंखें नम कर दीं। 😢💪
बक्शो देवी का सफर आसान नहीं था। उनकी मां ने भी संघर्षों का सामना करते हुए उन्हें बड़ा किया और उनके सपनों को पूरा करने के लिए हर संभव प्रयास किया। बक्शो देवी ने साबित कर दिया कि सच्ची मेहनत और दृढ़ संकल्प से किसी भी मुश्किल को पार किया जा सकता है। 🌟
उनकी यह उपलब्धि न केवल उनके लिए, बल्कि पूरे हिमाचल प्रदेश के लिए गर्व का विषय है। बक्शो देवी ने अपने साहस और अदम्य आत्मविश्वास से यह दिखा दिया कि संघर्ष के बावजूद, सपनों को पूरा किया जा सकता है। उनकी कहानी सभी के लिए प्रेरणा का स्रोत है। 🚀🌈
बक्शो देवी की अद्वितीय सफलता को सलाम! 🙌🌹