Discover postsExplore captivating content and diverse perspectives on our Discover page. Uncover fresh ideas and engage in meaningful conversations
* कैकेयी मंथरा संवाद
* सादर पुनि पुनि पूँछति ओही।
* सबरी गान मृगी जनु मोही॥
तसि मति फिरी अहइ जसि भाबी।
रहसी चेरि घात जनु फाबी॥
भावार्थ:-बार-बार रानी उससे आदर के साथ पूछ रही है, मानो भीलनी के गान से हिरनी मोहित हो गई हो। जैसी भावी (होनहार) है, वैसी ही बुद्धि भी फिर गई। दासी अपना दाँव लगा जानकर हर्षित हुई॥
* तुम्ह पूँछहु मैं कहत डेराउँ।
* धरेहु मोर घरफोरी नाऊँ॥
सजि प्रतीति बहुबिधि गढ़ि छोली।
अवध साढ़साती तब बोली॥
भावार्थ:-तुम पूछती हो, किन्तु मैं कहते डरती हूँ, क्योंकि तुमने पहले ही मेरा नाम घरफोड़ी रख दिया है। बहुत तरह से गढ़-छोलकर, खूब विश्वास जमाकर, तब वह अयोध्या की साढ़ साती (शनि की साढ़े साती वर्ष की दशा रूपी मंथरा) बोली-॥
जय श्री राम
* कैकेयी मंथरा संवाद
* सादर पुनि पुनि पूँछति ओही।
* सबरी गान मृगी जनु मोही॥
तसि मति फिरी अहइ जसि भाबी।
रहसी चेरि घात जनु फाबी॥
भावार्थ:-बार-बार रानी उससे आदर के साथ पूछ रही है, मानो भीलनी के गान से हिरनी मोहित हो गई हो। जैसी भावी (होनहार) है, वैसी ही बुद्धि भी फिर गई। दासी अपना दाँव लगा जानकर हर्षित हुई॥
* तुम्ह पूँछहु मैं कहत डेराउँ।
* धरेहु मोर घरफोरी नाऊँ॥
सजि प्रतीति बहुबिधि गढ़ि छोली।
अवध साढ़साती तब बोली॥
भावार्थ:-तुम पूछती हो, किन्तु मैं कहते डरती हूँ, क्योंकि तुमने पहले ही मेरा नाम घरफोड़ी रख दिया है। बहुत तरह से गढ़-छोलकर, खूब विश्वास जमाकर, तब वह अयोध्या की साढ़ साती (शनि की साढ़े साती वर्ष की दशा रूपी मंथरा) बोली-॥
जय श्री राम
* कैकेयी मंथरा संवाद
* सादर पुनि पुनि पूँछति ओही।
* सबरी गान मृगी जनु मोही॥
तसि मति फिरी अहइ जसि भाबी।
रहसी चेरि घात जनु फाबी॥
भावार्थ:-बार-बार रानी उससे आदर के साथ पूछ रही है, मानो भीलनी के गान से हिरनी मोहित हो गई हो। जैसी भावी (होनहार) है, वैसी ही बुद्धि भी फिर गई। दासी अपना दाँव लगा जानकर हर्षित हुई॥
* तुम्ह पूँछहु मैं कहत डेराउँ।
* धरेहु मोर घरफोरी नाऊँ॥
सजि प्रतीति बहुबिधि गढ़ि छोली।
अवध साढ़साती तब बोली॥
भावार्थ:-तुम पूछती हो, किन्तु मैं कहते डरती हूँ, क्योंकि तुमने पहले ही मेरा नाम घरफोड़ी रख दिया है। बहुत तरह से गढ़-छोलकर, खूब विश्वास जमाकर, तब वह अयोध्या की साढ़ साती (शनि की साढ़े साती वर्ष की दशा रूपी मंथरा) बोली-॥
जय श्री राम