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That's #sanatanadharma. We had flying machine 5000s of years ago even before 50 generation of write brothers were born
190 km का एक रेलवे लाइन जो आजाद भारत में होते हुए भी अभी तक एक ब्रिटिश कम्पनी के स्वामित्व में है , ऋषि सुनक चाहे तो भारत को लौटा सकते हैं।
शकुंतला रेलवे, महाराष्ट्र के अमरावती में 190 किलोमीटर की एक रेलवे लाइन है. इस पर चलने वाली शकुंतला एक्सप्रेस पैसेंजर गाड़ी है. जो अमरावती अचलपुर होकर चलती है. और यवतमाल से मुर्तजापुर की दूरी करीब चार घंटे में तय करती है.
ये लाइन भी इंडिया में तब बनी जब बाकी रेलवे का जाल बिछ रहा था. यानी अंग्रेजों के जमाने में. साल 1910 था. ब्रिटिश कंपनी किलिक निक्सन ने इसे बनाया था. उसके बाद सन 1951 में जब पूरे देश की रेल सरकारी हो गई. माने केंद्र सरकार के अंडर में भारतीय रेल बन गई. तो पता नहीं किस वजह से ये 190 किलोमीटर का ट्रैक छूट गया. इसकी वजह का पता आज तक नहीं चला है.
जब ये लाइन बनी थी तो वो इलाका कॉटन का अड्डा था. वहां के खेतों से कपास इसी ट्रैक पर मालगाड़ियों में लदकर मुंबई पोर्ट पहुंचती थी. वहां से ब्रिटेन वाले लपक लेते थे. आजादी के बाद ये ट्रैक सवारी ढोने के काम आने लगा. आज ये आलम है कि वहां की गरीब मजदूर जनता के हाथ पै कट जाएं. अगर ये ट्रेन बंद हो जाए. बाई रोड जाना पड़े तो किराया 5-6 गुना ज्यादा देना पड़े.
लेकिन एक लोचा ये है कि वो नामुराद ब्रिटिश कंपनी न मरे न पीछा छोड़े. ससुरी एक करोड़ से ज्यादा रुपए वसूल करती है किराया. वो भी सरकार इतने साल से देती आ रही है. पिछले कुछ साल से सरकार ये कर रही है कि किराए का पैसा मेंटीनेंस में काट देती है.
इस ट्रैक और ट्रेन का ये हाल ये है कि यहां पहुंचने पर धांय से सौ साल पीछे चले जाओगे. लगेगा कि कोई फिल्म देख रहे हो अंग्रेजों के जमाने की. काहे कि सरकार तो किराया देती है. वो कोई काम कराती नहीं ट्रैक पर. और उस कंपनी को क्या गरज पड़ी है जो कराए.. नतीजा सिग्नल से लेकर इंजन, पटरी, इन्फॉर्मेशन सिस्टम सब अंग्रेजों के जमाने का है.
मोदी सरकार आने के बाद 2016 में इस रेलवे लाइन के पैरलर में एक रेलवे लाइन बिछाई गई है जिसपर भारत की रेल चलती है।