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जय सूर्यदेव।
सूर्य देव के इन मंत्रों का जाप करने से मिलता है मनचाहा वरदान...
हिंदू धर्म में सूर्य की आराधना का विशेष महत्व है। सूर्य देव एक ऐसे देवता हैं जो नियमित रूप से भक्तों को दर्शन देते हैं। मान्यता है कि सूर्य देव को प्रसन्न करने के लिए किसी बड़े अनुष्ठान या ख़ास पूजा की ज़रुरत नहीं पड़ती है। सिर्फ़ एक लोटा जल और सूर्य देव के मंत्रों के जाप से ही उनका आशीर्वाद पाया जा सकता है।
मान्यता है कि अगर किसी व्यक्ति की कुंडली में सूर्य देव मज़बूत हैं, तो उन्हें शुभ फल प्रदान करते हैं। समाज में यश और सम्मान की प्राप्ति होती है और साथ ही पिता का आशीर्वाद प्राप्त होता है। मान्यता है कि सूर्य देव के इन 12 मंत्रों का जाप करने से मनचाहा आशीर्वाद मिलता है।
1. ॐ हृां मित्राय नम: सूर्य देव के इस पहले मंत्र के उच्चारण से अच्छी सेहत और कार्य करने की क्षमता का वरदान मिलता है। वहीं, कहते हैं कि सूर्य देवता की कृपा से हृदय की शक्ति बढ़ती है।
2. ॐ हृीं रवये नम: सूर्य देव के सामने खड़े होकर इस मंत्र का जाप करने से क्षय व्याधि दूर होती है। शरीर में रक्त का संचार ठीक रहता है और सांस आदि से जुड़े रोग दूर होते हैं।
3. ॐ हूं सूर्याय नम: सूर्य देव के इस मंत्र जाप से मानसिक शांति मिलती है। साथ ही ज्ञान में वृद्धि होती है।
4. ॐ ह्रां भानवे नम: इस मंत्र को जपने से धातु पुष्टि उत्पन्न होती है। मूत्राशय से जुड़ी बीमारियों का शमन होता है और शरीर में ओजस नामक तत्व का विकास होता है।
5. ॐ हृों खगाय नम: इस मंत्र को जपने से बुद्धि का विकास होता है और शरीर का बल बढ़ता है। इतना ही नहीं, मलाशय से संबंधित बीमारियां भी दूर होती हैं।
6. ॐ हृ: पूषणे नम: ज्योतिष के अनुसार इस मंत्र से मनुष्य का बल और धैर्य, दोनों बढ़ते हैं। सूर्य भगवान की कृपा से मनुष्य का मन धार्मिक विषयों में लगता है।
7. ॐ ह्रां हिरण्यगर्भाय नमः सूर्य देव के इस मंत्र का जाप करने से व्यक्ति को अनेक विषयों का ज्ञान प्राप्त होता है। यह मंत्र छात्रों के लिए विशेष लाभदायक है। इस मंत्र का जाप करने से शारीरिक, बौद्धिक एवं मानसिक शक्तियां विकसित होती हैं।
8. ॐ मरीचये नमः इससे मनुष्य को रोग आदि नहीं सताते। स्वास्थ्य उत्तम और शरीर की कान्ति बनी रहती है।
9. ॐ आदित्याय नमः इस मंत्र से दूसरे व्यक्तियों पर मनुष्य का प्रभाव बढ़ता है। बुद्धि प्रखर होती है और आर्थिक उन्नति होती है।
10. ॐ सवित्रे नमः इससे मनुष्य का यश बढ़ता है। सूर्य देव की कृपा प्राप्त होती है और उसका बौद्धिक विकास होता है। इतना ही नहीं, उसकी कल्पना शक्ति बढ़ती है।
11. ॐ अर्काय नमः सूर्य के इस मंत्र जाप से मन दृढ़ होता है। जीवन की सभी समस्याएं दूर होती हैं। वेदों और विभिन्न शास्त्रों के रहस्यों को जानने के लिए यह मंत्र बहुत लाभदायक है।
12. ॐ भास्कराय नमः इस से शरीर में वाह्य और आन्तरिक स्वच्छता उत्पन्न होती है। शरीर कांतिमय होता है और उसका मन प्रसन्न रहता है।
रविवार के दिन भगवान सूर्य की कृपा पाने के लिए उन्हें नियमित रूप से अर्घ्य देकर इनमें से किसी एक मंत्र का जाप करें। इससे आपको सुख, समृद्धि और अच्छी सेहत का वरदान मिल सकता है।
जय सूर्यदेव, जय श्री राम, जय गोविंदा, जय श्री कृष्ण🙏🚩
नैंसी पटेल का दुपट्टा खींचने वाले शाहबाज और अरबाज के अब्बूजान का कहना है कि उनके 10 बेटे हैं। एक दो जेल चला भी गया तो क्या होगा। भारत में मुस्लिम आबादी कम बताई जाती है और हिंदू आबादी अधिक। ये देश बहुत बड़े संकट की ओर बढ़ रहा है। ये लोग सारे आर्थिक विकास पर कब्जा कर लेंगे या उसे नष्ट कर देंगे।
महाराज दशरथ का जन्म एक बहुत ही अद्भुत घटना है।
पौराणिक धर्म ग्रंथों के आधार पर बताया जाता है कि एक बार राजा अज दोपहर की वंदना कर रहे थे।
उस समय लंकापति रावण उनसे युद्ध करने के लिए आया और दूर से उनकी वंदना करना देख रहा था। राजा अज ने भगवान शिव की वंदना की और जल आगे अर्पित करने की जगह पीछे फेंक दिया।
यह देखकर रावण को बड़ा आश्चर्य हुआ। और वह युद्ध करने से पहले राजा अज के सामने पहुंचा तथा पूछने लगा कि हमेशा वंदना करने के पश्चात जल का अभिषेक आगे किया जाता है, न कि पीछे, इसके पीछे क्या कारण है। राजा अज ने कहा जब मैं आंखें बंद करके ध्यान मुद्रा में भगवान शिव की अर्चना कर रहा था, तभी मुझे यहां से एक योजन दूर जंगल में एक गाय घास चरती हुई दिखी और मैंने देखा कि एक सिंह उस पर आक्रमण करने वाला है तभी मैंने गाय की रक्षा के लिए जल का अभिषेक पीछे की तरफ किया।
रावण को यह बात सुनकर बड़ा ही आश्चर्य हुआ।
रावण एक योजन दूर वहाँ गया और उसने देखा कि एक गाय हरी घास चर रही है जबकि शेर के पेट में कई वाण लगे हैं अब रावण को विश्वास हो गया कि जिस महापुरुष के जल से ही बाण बन जाते हैं और बिना किसी लक्ष्य साधन के लक्ष्य बेधन हो जाता है ऐसे वीर पुरुष को जीतना बड़ा ही असंभव है और वह उनसे बिना युद्ध किए ही लंका लौट जाता है।
एक बार राजा अज जंगल में भ्रमण करने के लिए गए थे तो उन्हें एक बहुत ही सुंदर सरोवर दिखाई दिया उस सरोवर में एक कमल का फूल था जो अति सुंदर प्रतीत हो रहा था।
उस कमल को प्राप्त करने के लिए राजा अज सरोवर में चले गए किंतु यह क्या राजा अज जितना भी उस कमल के पास जाते वह कमल उनसे उतना ही दूर हो जाता और राजा अज उस कमल को नहीं पकड़ पाया।
अंततः आकाशवाणी हुई कि हे राजन आप नि:संतान हैं आप इस कमल के योग्य नहीं है इस भविष्यवाणी ने राजा अज के हृदय में एक भयंकर घात किया था।
राजा अज अपने महल में लौट आए और चिंता ग्रस्त रहने लगे क्योंकि उन्हें संतान नहीं थी जबकि वह भगवान शिव के परम भक्त थे।
भगवान शिव ने उनकी इस चिंता को ध्यान में लिया। और उन्होंने धर्मराज को बुलाया और कहा तुम किसी ब्राह्मण को अयोध्या नगरी पहुँचाओ जिससे राजा अज को संतान की प्राप्ति के आसार हो।
दूर पार एक गरीब ब्राह्मण और ब्राह्मणी सरयू नदी के किनारे कुटिया बनाकर रहते थे।
एक दिन वे ब्राह्मण राजा अज के दरबार में गए और उनसे अपनी दुर्दशा का जिक्र कर भिक्षा मांगने लगे।
राजा अज ने अपने खजाने में से उन्हें सोने की अशर्फियां देनी चाही लेकिन ब्राह्मण नहीं कहते हुए मना कर दिया कि यह प्रजा का है आप अपने पास जो है, उसे दीजिए तब राजा अज ने अपने गले का हार उतारा और ब्राह्मण को देने लगे किंतु ब्राह्मण ने मना कर दिया कि यह भी प्रजा की ही संपत्ति है।
इस प्रकार राजा अज को बड़ा दुख हुआ कि आज एक गरीब ब्राह्मण उनके दरबार से खाली हाथ जा रहा है तब राजा अज शाम को एक मजदूर का बेश बनाते हैं और नगर में किसी काम के लिए निकल जाते हैं।
चलते चलते वह एक लौहार के यहाँ पहुंचते हैं और अपना परिचय बिना बताए ही वहां विनय कर काम करने लग जाते हैं पूरी रात को हथौड़े से लोहे का काम करते हैं जिसके बदले में उन्हें सुबह एक टका मिलता है।
राजा एक टका लेकर ब्राह्मण के घर पहुंचते हैं लेकिन वहां ब्राह्मण नहीं था उन्होंने वह एक टका ब्राह्मण की पत्नी को दे दिया और कहा कि इसे ब्राह्मण को दे देना। जब ब्राह्मण आया तो ब्राह्मण की पत्नी ने वह टका ब्राह्मण को दिया और ब्राह्मण ने उस टका को जमीन पर फेंक दिया तभी एक आश्चर्यजनक घटना हुई ब्राह्मण ने जहां टका फेंका था वहां गड्ढा हो गया ब्राह्मण ने उस गढ्ढे को और खोदा तो उसमें से सोने का एक रथ निकला तथा आसमान में चला गया इसके पश्चात ब्राह्मण ने और खोदा तो दूसरा सोने का रथ निकला और आसमान की तरफ चला गया इसी प्रकार से, नौ सोने के रथ निकले।
और आसमान की तरफ चले गए और जब दसवाँ रथ निकला तो उस पर एक बालक था और वह रथ जमीन पर आकर ठहर गया।
ब्राह्मण उस बालक को लेकर राजा अज के दरबार में पहुंचे और कहा राजन, इस पुत्र को स्वीकार कीजिए यह आपका ही पुत्र है जो एक टका से उत्पन्न हुआ है।
तथा इसके साथ में सोने के नौ रथ निकले जो आसमान में चले गए जबकि यह बालक दसवें रथ पर निकला इसलिए यह रथ तथा पुत्र आपका है। इस प्रकार से दशरथ जी का जन्म हुआ था।
महाराज दशरथ का असली नाम मनु था और ये दसों दिशाओं में अपना रथ लेकर जा सकते थे इसीलिए दशरथ नाम से प्रसिद्ध हुये..!!
जय श्री राम🙏⛳
श्री अनिल सिंह जी
मानवशरीर में सप्तचक्रों का प्रभाव ☀️
1. मूलाधारचक्र : ☀️
यह शरीर का पहला चक्र है। गुदा और लिंग के बीच 4 पंखुरियों वाला यह 'आधार चक्र' है। 99.9% लोगों की चेतना इसी चक्र पर अटकी रहती है और वे इसी चक्र में रहकर मर जाते हैं। जिनके जीवन में भोग, संभोग और निद्रा की प्रधानता है उनकी ऊर्जा इसी चक्र के आसपास एकत्रित रहती है।
मंत्र : लं
चक्र जगाने की विधि : मनुष्य तब तक पशुवत है, जब तक कि वह इस चक्र में जी रहा है इसीलिए भोग, निद्रा और संभोग पर संयम रखते हुए इस चक्र पर लगातार ध्यान लगाने से यह चक्र जाग्रत होने लगता है। इसको जाग्रत करने का दूसरा नियम है- यम और नियम का पालन करते हुए साक्षी भाव में रहना।
प्रभाव : इस चक्र के जाग्रत होने पर व्यक्ति के भीतर वीरता, निर्भीकता और आनंद का भाव जाग्रत हो जाता है। सिद्धियां प्राप्त करने के लिए वीरता, निर्भीकता और जागरूकता का होना जरूरी है।
2. स्वाधिष्ठानचक्र- ☀️
यह वह चक्र है, जो लिंग मूल से 4 अंगुल ऊपर स्थित है जिसकी 6 पंखुरियां हैं। अगर आपकी ऊर्जा इस चक्र पर ही एकत्रित है तो आपके जीवन में आमोद-प्रमोद, मनोरंजन, घूमना-फिरना और मौज-मस्ती करने की प्रधानता रहेगी। यह सब करते हुए ही आपका जीवन कब व्यतीत हो जाएगा आपको पता भी नहीं चलेगा और हाथ फिर भी खाली रह जाएंगे।
मंत्र : वं
कैसे जाग्रत करें : जीवन में मनोरंजन जरूरी है, लेकिन मनोरंजन की आदत नहीं। मनोरंजन भी व्यक्ति की चेतना को बेहोशी में धकेलता है। फिल्म सच्ची नहीं होती लेकिन उससे जुड़कर आप जो अनुभव करते हैं वह आपके बेहोश जीवन जीने का प्रमाण है। नाटक और मनोरंजन सच नहीं होते।
प्रभाव : इसके जाग्रत होने पर क्रूरता, गर्व, आलस्य, प्रमाद, अवज्ञा, अविश्वास आदि दुर्गणों का नाश
होता है। सिद्धियां प्राप्त करने के लिए जरूरी है कि उक्त सारे दुर्गुण समाप्त हों तभी सिद्धियां आपका द्वार खटखटाएंगी।
3. मणिपुरचक्र : ☀️
नाभि के मूल में स्थित यह शरीर के अंतर्गत मणिपुर नामक तीसरा चक्र है, जो 10 कमल पंखुरियों से युक्त है। जिस व्यक्ति की चेतना या ऊर्जा यहां एकत्रित है उसे काम करने की धुन-सी रहती है। ऐसे लोगों को कर्मयोगी कहते हैं। ये लोग दुनिया का हर कार्य करने के लिए तैयार रहते हैं।
मंत्र : रं
कैसे जाग्रत करें : आपके कार्य को सकारात्मक आयाम देने के लिए इस चक्र पर ध्यान लगाएंगे। पेट से श्वास लें।
प्रभाव : इसके सक्रिय होने से तृष्णा, ईर्ष्या, चुगली, लज्जा, भय, घृणा, मोह आदि कषाय-कल्मष दूर हो जाते हैं। यह चक्र मूल रूप से आत्मशक्ति प्रदान करता है। सिद्धियां प्राप्त करने के लिए आत्मवान होना जरूरी है। आत्मवान होने के लिए यह अनुभव करना जरूरी है कि आप शरीर नहीं, आत्मा हैं।
आत्मशक्ति, आत्मबल और आत्मसम्मान के साथ जीवन का कोई भी लक्ष्य दुर्लभ नहीं।
4. अनाहतचक्र- ☀️
हृदयस्थल में स्थित द्वादश दल कमल की पंखुड़ियों से युक्त द्वादश स्वर्णाक्षरों से सुशोभित चक्र ही अनाहत चक्र है। अगर आपकी ऊर्जा अनाहत में सक्रिय है तो आप एक सृजनशील व्यक्ति होंगे। हर क्षण आप कुछ न कुछ नया रचने की सोचते हैं। आप चित्रकार, कवि, कहानीकार, इंजीनियर आदि हो सकते हैं।
मंत्र : यं
कैसे जाग्रत करें : हृदय पर संयम करने और ध्यान लगाने से यह चक्र जाग्रत होने लगता है। खासकर रात्रि को सोने से पूर्व इस चक्र पर ध्यान लगाने से यह अभ्यास से जाग्रत होने लगता है और सुषुम्ना इस चक्र को भेदकर ऊपर गमन करने लगती है।
प्रभाव : इसके सक्रिय होने पर लिप्सा, कपट, हिंसा, कुतर्क, चिंता, मोह, दंभ, अविवेक और अहंकार समाप्त हो जाते हैं। इस चक्र के जाग्रत होने से व्यक्ति के भीतर प्रेम और संवेदना का जागरण होता है। इसके जाग्रत होने पर व्यक्ति के समय ज्ञान स्वत: ही प्रकट होने लगता है। व्यक्ति अत्यंत आत्मविश्वस्त, सुरक्षित, चारित्रिक रूप से जिम्मेदार एवं भावनात्मक रूप से संतुलित व्यक्तित्व बन जाता है। ऐसा व्यक्ति अत्यंत हितैषी एवं बिना किसी स्वार्थ के मानवता प्रेमी एवं सर्वप्रिय बन जाता है।
5. विशुद्धचक्र-
कंठ में सरस्वती का स्थान है, जहां विशुद्ध चक्र है और जो 16 पंखुरियों वाला है। सामान्य तौर पर यदि आपकी ऊर्जा इस चक्र के आसपास एकत्रित है तो आप अति शक्तिशाली होंगे।
मंत्र : हं
कैसे जाग्रत करें : कंठ में संयम करने और ध्यान लगाने से यह चक्र जाग्रत होने लगता है।
प्रभाव : इसके जाग्रत होने कर 16 कलाओं और 16 विभूतियों का ज्ञान हो जाता है। इसके जाग्रत होने से जहां भूख और प्यास को रोका जा सकता है वहीं मौसम के प्रभाव को भी रोका जा सकता है।
6. आज्ञाचक्र : ☀️
भ्रूमध्य (दोनों आंखों के बीच भृकुटी में) में आज्ञा चक्र है। सामान्यतौर पर जिस व्यक्ति की ऊर्जा यहां ज्यादा सक्रिय है तो ऐसा व्यक्ति बौद्धिक रूप से संपन्न, संवेदनशील और तेज दिमाग का बन जाता है लेकिन वह सब कुछ जानने के बावजूद मौन रहता है। इसे बौद्धिक सिद्धि कहते हैं।
मंत्र : उ
कैसे जाग्रत करें : भृकुटी के मध्य ध्यान लगाते हुए साक्षी भाव में रहने से यह चक्र जाग्रत होने लगता है।
प्रभाव : यहां अपार शक्तियां और सिद्धियां निवास करती हैं। इस आज्ञा चक्र का जागरण होने से ये सभी शक्तियां जाग पड़ती हैं और व्यक्ति सिद्धपुरुष बन जाता है।
7. सहस्रारचक्र :
सहस्रार की स्थिति मस्तिष्क के मध्य भाग में है अर्थात जहां चोटी रखते हैं। यदि व्यक्ति यम, नियम का पालन करते हुए यहां तक पहुंच गया है तो वह आनंदमय शरीर में स्थित हो गया है। ऐसे व्यक्ति को संसार, संन्यास और सिद्धियों से कोई मतलब नहीं रहता है।
मंत्र : ॐ
कैसे जाग्रत करें : मूलाधार से होते हुए ही सहस्रार तक पहुंचा जा सकता है। लगातार ध्यान करते रहने से यह चक्र जाग्रत हो जाता है और व्यक्ति परमहंस के पद को प्राप्त कर लेता है।
सिस्टम के साथ साथ इकोसिस्टम भी बदल रहे हैं। परंतु समय तो जरुर लगेगा। क्या यह वही JNU है!?
आज महाराष्ट्र के पुणे में आयोजित पुस्तक विमोचन कार्यक्रम में, JNU की कुलपति शांतिश्री धूलिपुड़ी पंडित ने कहा, अब भी 'वामपंथी' विचारधारा मौजूद है, आप लोग जानते होंगे कि तीस्ता सीतलवाड़ को "जमानत" देने के लिए, सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने शनिवार रात को कोर्ट खोल दिया था, क्या ऐसी ही "व्यवस्था" हम लोगों के लिए भी होगी!? राजनीतिक सत्ता में बने रहने के लिए आपके पास नैरेटिव पावर का होना बहुत जरुरत है, और हमें इसकी बहुत जरूरत भी है, जब तक हम सभी के पास 'नैरेटिव पावर' नहीं होगी, तब तक हम एक दिशाहीन जहाज की तरह हैं! मैं बचपन में 'बाल सेविका' थी। मुझे संस्कार RSS से ही मिले हैं। मुझे यह कहने में गर्व है कि मैं RSS से हूँ। मुझे यह कहने में भी गर्व है कि मैं हिन्दू हूँ। यह कहने में, मैं बिल्कुल भी संकोच नहीं करती। इसके बाद उन्होंने 'जय श्रीराम' का नारा लगाते हुए कहा, गर्व से कहती हूँ कि मैं हिन्दू हूँ।
आप लोगों को बता दूं कि, शांतिश्री धूलिपुड़ी पंडित JNU की कुलपति बनने के बाद जब उन्होंने विश्वविद्यालय के परिसर में राष्ट्रीय ध्वज और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तस्वीर लगाने का फैसला किया तो वामपंथी छात्रों ने, इसका भारी विरोध किया था। वामपंथी छात्रों की विरोध पर उन्होंने कहा था, आप टैक्स देने वालों के पैसे से JNU में फ्री का खाना खा रहे हैं, इसलिए आप लोगों को राष्ट्रीय ध्वज के सामने झुकना पडेगा और मोदी देश के प्रधानमंत्री हैं, उनका किसी पार्टी से कोई संबंध नहीं है। अब एक साल से भी अधिक का समय बीत चुका है। कोई भी विरोध नहीं करता है...