उन लोगों के लिये लिख रहा हूँ। जो सम्बन्धों को लेकर मैसेज करते है। विचार तो सभी व्यक्त कर सकते हैं।
वैसे तो व्यक्ति व्यक्ति कि समस्या अलग अलग होती है। उसमें उनके स्वभाव, परिस्थितियों का दोष होता है। सुकरात, नीत्से, कबीर जैसे दार्शनिक जब रिश्तों से प्रताड़ित है तो हम सामान्य लोग है।
जानते है ! जिस समय अर्जुन ने परमेश्वर से कहा कि मेरा रथ दोनों सेनाओं के बीच में लेकर चलिये।
वह पूरी तरह से समझ गये कि अर्जुन के मन में संशय क्या है।
अभी भगवान के पास फिर आते है , पहले कुछ मूल्यवान बात समझनी चाहिये।
चेतना तीन स्तरों में बंटी होती है।
1- सांसारिक
2- धार्मिक
3- आध्यात्मिक।
संसार, यही जो है। जिसे बुद्ध इच्छा कहते है। आदि शंकराचार्य माया कहते है। कपिल प्रकृति कहते है।
धार्मिकता का अर्थ है यह संसार ईश्वर द्वारा निर्मित है।
आध्यात्मिक का अर्थ यह संसार उस ईश्वर का विस्तार है।ईश्वर के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है।
रिश्ते, नाते, पत्नी, पुत्र आदि सभी संसार है। यह हमारी इच्छा से बने है, या यह माया है।
चलिये कुरुक्षेत्र में चलते है।
अर्जुन का विषाद इस संसार का विषाद है। गुरु, भाई, पितामाह, मित्र से युद्ध करना है।
भगवान बात संसार से ही प्रारंभ करते है।
वह कर्त्तव्य, निष्काम कर्म योग बताते है।
फिर ज्ञान, विवेक से धर्म पर आते है।
अंत में आध्यत्म पर अपनी बात पूरी करते है।
हम सभी न तत्व ज्ञानी है न ही तपस्वी है।
बात हम भी संसार की करेंगें।
क्यों घुसे पड़े हो रिश्तों में,
कोई भी रिश्ता बस इतना ही है कि कर्त्तव्य पूरा करना है ! यह बाध्यता भी नहीं है।
हमसे महत्वपूर्ण यहां कुछ भी नहीं है।
जो स्वयं को महत्वपूर्ण नहीं समझते वह वैसे है जैसे तिनका होता है।
वह तिनका भंवर के साथ बहते हुये आनंदित होता है। वही भंवर एक दिन उसे डूबा देती है।
हमारी चिंतन प्रणाली ही गलत है। हमसे भी महत्वपूर्ण कोई है।
ऐसे ही लोगों को ही भगवान मूर्ख कि श्रेणी में रखते है।
Law of attraction कहता है। यदि तुम चाहते हो कि लोग तुम्हारा सम्मान , आदर करें तो स्वयं को महत्वपूर्ण बनाइये।
जिनके रिश्ते अच्छे दिखते हैं। वास्तव में वहां भी भय, लोकलाज, विवशता से सब चल रहा है।
इस संसार को यह संदेश दीजिये कि आप अकेले ही सब कुछ करने में सक्षम है।
यदि परिस्थिति ऐसी भी आये कि अपने ही लोगों के विरुद्ध धनुष उठाना हो तो संशय न हो ! जब यह सुनिश्चित हो कि आप सत्य पर है।
यह सारा संसार ट्रैफिक रूल कि तरह चल रहा है। यहां जो कल नैतिकता थी, वह आज अनैतिकता होगी। जो कल अनैतिक था, आज नैतिक हो सकता है।
समाज के बनाये नियम, कानून हमारे जीवन से महत्वपूर्ण नहीं है। हम है तो सब कुछ है।
भगवान तो थोड़ा और आगे चले गये थे।
जीते तो पृथ्वी पर राज्य करोगे, वीरगति मिलती तो स्वर्ग।
इसके बाद क्या संशय बच रहा है।
इसका कारण 'भय 'है।
सारे भय हमारे मन कि उपज है।
अभी तो मैं धर्म, आध्यत्म कि बात नहीं कर रहा हूँ।
इस संसार में एक ही बात महत्वपूर्ण है ! वह है आप।
यह न अहंकार है न ही स्वार्थ है।
यह ऐसे है जैसे शुगर कि बीमारी है। दवा स्वयं लेने कि आदत डालनी होती है। सुबह टहलने जाना होता है।
छोड़ो इन बातों को कौन सही है, कौन गलत है। कौन नाराज है कौन खुश है।
आज से, अभी से अब हम है। जो अपना ध्यान रख सकता है।।