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राजस्थान का ये मंदिर सिर्फ राम नाम के सहारे एक विशालकाय पत्थरों पर टिका है !
राम नाम में कितनी शक्ति होती है इस बात का आप एक जीता-जागता उदाहरण अलवर रोड़ पर स्थित बाबा गरीब नाथ के मंदिर में देख सकते हैं.
सबसे पहले यहाँ यह जानना जरुरी है कि यह मंदिर एक ऊँचे पहाड़ की चोटी पर बना हुआ है. पहाड़ भी ऐसा वैसा नहीं है यह पहाड़ कुछ बड़े- बड़े पत्थरों का है.
इन विशालकाय पत्थरों को नीचे से देखने भर पर शरीर में अजीब सी हलचल होने लगती है. कुछ बड़े-बड़े पांच पत्थर हैं जो अगर नीचे आ जाएँ तो पूरा का पूरा गाँव नष्ट कर दें.
लेकिन राम नाम की महिमा देखिये कि पत्थरों पर राम नाम लिखा हुआ है और यह जस के तस खड़े हुए हैं. इन्हीं के ऊपर पूरा मंदिर बना हुआ है.
मंदिर तक भाग्य वाले जाते हैं........
इस मंदिर तक पहाड़ के ऊपर जाकर बाबा के दर्शन करने कर किसी को सुलभ नहीं हो पाते हैं. मंदिर का इतिहास आसपास के लोग काफी पुराना बताते हैं. कुछ लोग इस मंदिर को 100 सालों से भी पुराना बताते हैं. एक संत महात्मा (बाबा हरिनाथ जी महाराज) यहाँ पर तपस्या करने आये थे बाद में उन्हीं ने यहाँ भोले बाबा का मंदिर स्थापित किया. इन पत्थरों को देखकर जब सब डर रहे थे तो बाबा ने राम नाम लिखकर पत्थरों को हमेशा के लिए स्थिर कर दिया.
मंदिर तक चढ़ने में आपको कुछ 100 ही सीढ़ियों को चढ़ना पड़ता है. यह काम यहाँ लिखना और पढ़ना बहुत आसान है लेकिन यहाँ एक-एक कदम बिना बाबा की कृपा के आप रख नहीं सकते हैं. मंदिर तक पहुँचने तक दिल की धड़कन इतनी तेज हो जाती है कि जैसे कि हमारा दिल बाहर आ जायेगा.
गुफा में शिव भगवान और माँ पार्वती........
मंदिर के पत्थर राम नाम के सहारे जरुर टिके हुए हैं लेकिन यहाँ पर जो एक और शक्तिशाली शक्ति विराजमान है वह बाबा शिव भगवान है. पहाड़ पर दो गुफा हैं जिसमें एक वक़्त में एक ही व्यक्ति जा सकता है और इन गुफाओं में शिव और पार्वती जी विराजमान हैं.
कहते हैं कि मंदिर में मांगी हर उचित

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पहले हम भाई बहन ऐसे भी खाना खाया करते थे।
एक ही थाली में बीच में से आधा आधा खाना बाटकर खाते थे।
मैं तो ऐसा भी करता था अगर एक भी दाना मेरी तरफ आ गया तो वो मेरा हो जाएगा😂
अब बस यादें ही रह गई हैं
#यादें_बचपन_की

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एक पच्चीस वर्ष का युवा कथावाचक बिहार जैसे राज्य में आता है और दूसरे ही दिन आठ से दस लाख की भीड़ उमड़ पड़ती है, तो यह सिद्ध होता कि अब भी इस देश की सबसे बड़ी शक्ति उसका धर्म है। मैं यह इसलिए भी कह रहा हूँ कि इसी बिहारभूमि पर किसी बड़े राजनेता की रैली में 50 हजार की भीड़ जुटाने के लिए द्वार द्वार पर गाड़ी भेजते और पैसे बांटते हम सब ने देखा है। वैसे समय में कहीं दूर से आये किसी युवक को देखने के लिए पूरा राज्य दौड़ पड़े, तो आश्चर्य होता है। मेरे लिए यही धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री का सबसे बड़ा चमत्कार है।
वह दस लाख की भीड़ किसी एक जाति की भीड़ नहीं है, उसमें सभी हैं। बाभन-भुइंहार हैं, तो कोइरी कुर्मी भी... राजपूत हैं तो बनिया भी, यादव भी, हरिजन भी... यह वही बिहार है जहां हर वस्तु को जाति के चश्मे से देखने की ही परम्परा सी बन गयी है। उस टूटे हुए बिहार को एक युवक पहली बार में इतना बांध देता है, तो यह विश्वास दृढ़ होता है कि हमें बांधना असम्भव नहीं। राजनीति हमें कितना भी तोड़े, धर्म हमें जोड़ ही लेगा...
आयातित तर्कों के दम पर कितना भी बवंडर बतिया लें, पर यह सत्य है कि इस देश को केवल और केवल धर्म एक करता है। कश्मीर से कन्याकुमारी के मध्य हजार संस्कृतियां निवास करती हैं। भाषाएं अलग हैं, परंपराएं अलग हैं, विचार अलग हैं, दृष्टि अलग है, भौगोलिक स्थिति अलग है, परिस्थितियां अलग हैं, फिर भी हम एक राष्ट्र हैं तो केवल और केवल धर्म के कारण! धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री उसी धर्म की डोर से सबको बांध रहे हैं।
कुछ लोग उनके चमत्कारी होने को लेकर उनकी आलोचना करते हैं। मैं अपनी कहूँ तो चमत्कारों पर मेरा अविश्वास नहीं। एक महाविपन्न परिवार से निकला व्यक्ति यदि युवा अवस्था में ही देश के सबसे प्रभावशाली लोगों में शामिल हो जाता है, तो इस चमत्कार पर पूरी श्रद्धा है मेरी...
धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री अपने समय के मुद्दों पर स्पष्ट बोलते हैं, यह उनकी शक्ति है। नवजागृत हिन्दू चेतना को अपने संतों से जिस बात का असंतोष था कि वे हमारे विषयों पर बोलते क्यों नहीं, धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री उस असन्तोष को शांत कर रहे हैं। यह कम सुखद नहीं...
कुछ लोग धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री को रोकने के दावे कर रहे थे। मैं जानता हूँ, उन्हें ईश्वर रोके तो रोके, अब अन्य कोई नहीं रोक सकेगा... धीरेंद्र समय की मांग हैं। यह समय ही धीरेंद्र शास्त्री का है।
मैं स्पष्ट मानता हूँ कि यह भारत के पुनर्जागरण का कालखंड है, अब हर क्षेत्र से योद्धा नायक निकलेंगे। राजनीति, धर्म, अर्थ, विज्ञान, रक्षा... हर क्षेत्र नव-चन्द्रगुप्तों की आभा से जगमगायेगा। देखते जाइये...

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