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आज हम आपको एक ऐसी अद्भुत कहानी सुनाने जा रहे हैं, जो न केवल आपको प्रेरित करेगी, बल्कि यह साबित करेगी कि यदि आपके अंदर आत्मविश्वास और साहस है, तो कोई भी बाधा असंभव नहीं होती। 🌟 रक्षिता राजू, जिन्होंने अपनी कड़ी मेहनत और संघर्षों से पेरिस पैरालिंपिक 2024 के मंच तक का सफर तय किया, उनकी यह यात्रा केवल खेल तक सीमित नहीं है, बल्कि जीवन की कठिन चुनौतियों पर जीत की कहानी है।
जन्म से दृष्टिबाधित रक्षिता का बचपन संघर्षों से भरा रहा। छोटी उम्र में ही उन्होंने अपने माता-पिता को खो दिया, और उनकी देखभाल करने वाली दादी भी सुनने में अक्षम थीं। इसके बावजूद, रक्षिता ने कभी हार नहीं मानी। जब उन्होंने आशा किरण स्कूल में दाखिला लिया, तभी से उनका खेलों के प्रति झुकाव बढ़ा। स्कूल के शिक्षकों ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और उन्हें खेलों में हिस्सा लेने के लिए प्रेरित किया। यहीं से रक्षिता की एथलेटिक्स में असाधारण यात्रा शुरू हुई।
2016 में उन्होंने राष्ट्रीय खेलों में 400 मीटर की दौड़ में शानदार जीत दर्ज की। लेकिन असली बदलाव तब आया जब उनकी मुलाकात कोच राहुल बालकृष्ण से हुई। कोच के मार्गदर्शन में, रक्षिता ने कड़ी मेहनत की और 2017 में एशियाई पैरा खेलों में 1500 मीटर दौड़ में स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रच दिया। इस जीत ने उन्हें अपनी श्रेणी में स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली महिला एथलीटों में से एक बना दिया।
रक्षिता आज पेरिस पैरालिंपिक 2024 में भारत का प्रतिनिधित्व कर रही हैं और उनके अद्वितीय साहस और दृढ़ संकल्प ने दुनिया को दिखा दिया है कि कोई भी लक्ष्य असंभव नहीं होता। उनकी प्रेरणादायक कहानी हमें यह सिखाती है कि जब जीवन में कठिनाइयाँ आएं, तो हमें उनसे डरने के बजाय और भी मजबूत बनकर आगे बढ़ना चाहिए।
रक्षिता राजू की इस अविश्वसनीय यात्रा को सलाम करते हुए, हम उन्हें उनके आगामी मुकाबलों के लिए ढेर सारी शुभकामनाएं देते हैं! 🙌🇮🇳
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