मित्रो,
समलैंगिकों के जीवन पर आधारित मेरा मार्मिक उपन्यास "तीसरे लोग", विश्व पुस्तक मेला के स्टॉल नम्बर 69-72, हॉल 12A, सामयिक प्रकाशन, में उपलब्ध है। आपको जानकर ख़ुशी होगी कि इस उपन्यास को 2013 में हिंदी साहित्य अकादमी(गुजरात) द्वारा सर्वश्रेष्ठ नवल कथा सम्मान मिला है। ये कहानी प्रेरित है राजपिपला के युवराज, प्रिंस मानवेंद्र सिंह जी गोहिल की जीवनी से, जो मुझे अपनी दीदी मानते हैं। इस विषय का चयन कर, उसपर कुछ लिखना, मेरे जैसी साधारण गृहिणी के लिए आसान न था। बहुत सारी बाधाएं और चुनौतियों का सामना किया डटकर, तब जा के ये कहानी पूरी हुई। जो मित्र दिल्ली के बाहर हैं, वो महेश भरद्वाज, सामयिक प्रकाशन , को सम्पर्क कर सकते हैं। धन्यवाद।

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अद्भुत पुस्तक । विलक्षण पुस्तक ।
यह सही है कि मैं "अद्भुत" और "विलक्षण" शब्दों का प्रयोग बहुत लापरवाही से बहुधा कर देता हूं । ऐसा करने से शब्द अवमूल्यन का खतरा है । पर मेरी कठिनाई यह है कि मेरा शब्दकोश सीमित है, टूटा फूटा है । उसमें ऐसे मोती नहीं हैं जो इस नन्हीं सी पुस्तक की चमक बांध सकें । इसीलिए विवशता है कि "अद्भुत" कहूं, "विलक्षण" कहूं ।
रस बूंद बूंद टपकता है । और प्यास ! प्यास बढ़ती चली जाती है । आपको विश्वास नहीं होता ! मेरी बात न मानिए, डखरेन मेले का वर्णन पढ़िए । हजार कविताएं फेल हैं । नृत्य करता हुआ, तंद्रिल सा वर्णन है । आदमी आदिम "घंटी" के नशे में आविष्ट थिरक थिरक जाता है । चहुंओर आदिम महुआ की गंध फैल जाती है ।

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पेड़ गिनते हो
जंगल नहीं दिखता

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सोच रहा हूं जहरीला गदहा बन जाऊं । दुलत्ती मारता चलूं । जगह जगह लीद का निस्तारण करता चलूं ।
और इस तरह बिदबान परफेसर और फिर सिच्छा मंत्री बनने का मार्ग प्रशस्त कर लूं । लूट के माल का पहाड़ भी बनाऊं, देख देख मकनाऊं ।

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Kuchi Venkata Gopi Krishna Chowdary changed his profile picture
2 yrs

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