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मित्रों के साथ एक आवश्यक कार्य किया।
छोड़िए बातें कोरी,देखिए द केरला स्टोरी

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आज लखनऊ स्थित सरकारी आवास पर 'The Kerala Story' फिल्म की टीम के साथ शिष्टाचार भेंट हुई।

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श्री हनुमान जी और बाली युद्ध की कथा
कथा का आरंभ तब का है
जब बाली को ब्रम्हा जी से ये वरदान प्राप्त हुआ की जो भी उससे युद्ध करने उसके सामने आएगा उसकी आधी ताक़त बाली के शरीर मे चली जायेगी और इससे बाली हर युद्ध मे अजेय रहेगा।
सुग्रीव, बाली दोनों ब्रम्हा के औरस (वरदान द्वारा प्राप्त) पुत्र हैं। और ब्रम्हा जी की कृपा बाली पर सदैव बनी रहती है।
बाली को अपने बल पर बड़ा घमंड था
उसका घमंड तब ओर भी बढ़ गया
जब उसने करीब करीब तीनों लोकों पर विजय पाए हुए रावण से युद्ध किया और रावण को अपनी पूँछ से बांध कर छह महीने तक पूरी दुनिया घूमी, रावण जैसे योद्धा को इस प्रकार हरा कर बाली के घमंड का कोई सीमा न रहा।
अब वो अपने आपको संसार का सबसे बड़ा योद्धा समझने लगा था और यही उसकी सबसे बड़ी भूल हुई, अपने ताकत के मद में चूर एक दिन एक जंगल मे पेड़ पौधों को तिनके के समान उखाड़ फेंक रहा था। हरे भरे वृक्षों को तहस नहस कर दे रहा था अमृत समान जल के सरोवरों को मिट्टी से मिला कर कीचड़ कर दे रहा था एक तरह से अपने ताक़त के नशे में बाली पूरे जंगल को उजाड़ कर रख देना चाहता था और बार बार अपने से युद्ध करने की चेतावनी दे रहा था- है कोई जो बाली से युद्ध करने की हिम्मत रखता हो
है कोई जो अपने माँ का दूध पिया हो
जो बाली से युद्ध करके बाली को हरा दे।
इस तरह की गर्जना करते हुए बाली उस जंगल को तहस नहस कर रहा था संयोग वश उसी जंगल के बीच मे हनुमान जी राम नाम का जाप करते हुए तपस्या में बैठे थे।
बाली की इस हरकत से हनुमान जी को राम नाम का जप करने में विघ्न लगा और हनुमान जी बाली के सामने जाकर बोले- हे वीरों के वीर, हे ब्रम्ह अंश, हे राजकुमार बाली, (तब बाली किष्किंधा के युवराज थे) क्यों इस शांत जंगल को अपने बल की बलि दे रहे हो, हरे भरे पेड़ों को उखाड़ फेंक रहे हो, फलों से लदे वृक्षों को मसल दे रहे हो, अमृत समान सरोवरों को दूषित मलिन मिट्टी से मिला कर उन्हें नष्ट कर रहे हो, इससे तुम्हे क्या मिलेगा, तुम्हारे औरस पिता ब्रम्हा के वरदान स्वरूप कोई तुहे युद्ध मे नही हरा सकता क्योंकि जो कोई तुमसे युद्ध करने आएगा उसकी आधी शक्ति तुममे समाहित हो जाएगी।
इसलिए हे कपि राजकुमार अपने बल के घमंड को शांत कर और राम नाम का जाप कर इससे तेरे मन में अपने बल का भान नही होगा और राम नाम का जाप करने से ये लोक और परलोक दोनों ही सुधर जाएंगे।
इतना सुनते ही बाली अपने बल के मद चूर हनुमान जी से बोला- ए तुच्छ वानर,, तू हमें शिक्षा दे रहा है, राजकुमार बाली को जिसने विश्व के सभी योद्धाओं को धूल चटाई है और जिसके एक हुंकार से बड़े से बड़ा पर्वत भी खंड खंड हो जाता है जा तुच्छ वानर, जा और तू ही भक्ति कर अपने राम वाम की और जिस राम की तू बात कर रहा है वो है कौन और केवल तू ही जानता है राम के बारे में मैंने आजतक किसी के मुँह से ये नाम नही सुना और तू मुझे राम नाम जपने की शिक्षा दे रहा है।
हनुमान जी ने कहा- प्रभु श्री राम, तीनो लोकों के स्वामी है उनकी महिमा अपरंपार है, ये वो सागर है जिसकी एक बूंद भी जिसे मिले वो भवसागर को पार कर जाए।
बाली- इतना ही महान है राम तो बुला ज़रा मैं भी तो देखूं कितना बल है उसकी भुजाओं में बाली को भगवान राम के विरुद्ध ऐसे कटु वचन हनुमान जो को क्रोध दिलाने के लिए पर्याप्त थे।
हनुमान- ए बल के मद में चूर बाली तू क्या प्रभु राम को युद्ध मे हराएगा पहले उनके इस तुच्छ सेवक को युद्ध में हरा कर दिखा।
बाली- तब ठीक है कल के कल नगर के बीचों बीच तेरा और मेरा युद्ध होगा।
हनुमान जी ने बाली की बात मान ली बाली ने नगर में जाकर घोषणा करवा दिया कि कल नगर के बीच हनुमान और बाली का युद्ध होगा।
अगले दिन तय समय पर जब हनुमान जी बाली से युद्ध करने अपने घर से निकलने वाले थे तभी उनके सामने ब्रम्हा जी प्रकट हुए।
हनुमान जी ने ब्रम्हा जी को प्रणाम किया और बोले- हे जगत पिता आज मुझ जैसे एक वानर के घर आपका पधारने का कारण अवश्य ही कुछ विशेष होगा।
ब्रम्हा जी बोले- हे अंजनीसुत, हे शिवांश, हे पवनपुत्र, हे राम भक्त हनुमान मेरे पुत्र बाली को उसकी उद्दंडता के लिए क्षमा कर दो और युद्ध के लिए न जाओ।
हनुमान जी ने कहा- हे प्रभु बाली ने मेरे बारे में कहा होता तो मैं उसे क्षमा कर देता परन्तु उसने मेरे आराध्य श्री राम के बारे में कहा है जिसे मैं सहन नही कर सकता
और मुझे युद्ध के लिए चुनौती दिया है
जिसे मुझे स्वीकार करना ही होगा अन्यथा सारे विश्व मे ये बात कही जाएगी कि हनुमान कायर है जो ललकारने पर युद्ध करने इसलिए नही जाता है क्योंकि एक बलवान योद्धा उसे ललकार रहा है।
तब कुछ सोंच कर ब्रम्हा जी ने कहा- ठीक है हनुमान जी पर आप अपने साथ अपनी समस्त सक्तियों को साथ न लेकर जाएं केवल दसवां भाग का बल लेकर जाएं बाकी बल को योग द्वारा अपने आराध्य के चरणों में रख दे युद्ध से आने के उपरांत फिर से उन्हें ग्रहण कर लें।
हनुमान जी ने ब्रम्हा जी का मान रखते हुए वैसे ही किया और बाली से युद्ध करने घर से निकले उधर बाली नगर के बीच मे एक जगह को अखाड़े में बदल दिया था और हनुमान जी से युद्ध करने को व्याकुल होकर बार बार हनुमान जी को ललकार रहा था पूरा नगर इस अदभुत और दो महायोद्धाओं के युद्ध को देखने के लिए जमा था।
हनुमान जी जैसे ही युद्ध स्थल पर पहुँचे,,
बाली ने हनुमान को अखाड़े में आने के लिए ललकारा। ललकार सुन कर जैसे ही हनुमान जी ने एक पावँ अखाड़े में रखा।
उनकी आधी शक्ति बाली में चली गई बाली में जैसे ही हनुमान जी की आधी शक्ति समाई बाली के शरीर मे बदलाव आने लगे, उसके शरीर मे ताकत का सैलाब आ गया बाली का शरीर बल के प्रभाव में फूलने लग उसके शरीर फट कर खून निकलने लगा बाली को कुछ समझ नही आ रहा था।
तभी ब्रम्हा जी बाली के पास प्रकट हुए और बाली को कहा- पुत्र जितना जल्दी हो सके यहां से दूर अति दूर चले जाओ,

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एक्टर मनोज ने अपनी अगली फिल्म 'सिर्फ एक बंदा काफी है' का ट्रेलर शेयर किया है. इस फिल्म में उन्होंने एक ऐसे वकील का किरदार निभाया है जो एक स्वयंभू भगवान यानि गॉडमैन के खिलाफ केस लड़ता है जिसके ऊपर एक नाबालिग से रेप का आरोप है. जिसके बाद लोगों ने अंदाजा लगा लिया कि ये फिल्म आसाराम बापू पर आधारित है क्योंकि फिल्म में मनोज के किरदार का नाम पीसी सोलंकी है, जो आसाराम के खिलाफ केस लड़ने वाले रियल लाइफ वकील का भी नाम है. अब यहीं से विवाद की शुरुआत हुई और आसाराम बापू के चैरिटेबल ट्रस्ट की तरफ से फिल्म के मेकर्स को लीगल नोटिस भेजा गया है.

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अतुलित बलधामं...
श्री हनुमान जी के पास इतना बल था कि जिसकी तुलना किसी से नहीं की जा सकती थी लक्ष्मण जी को मूर्छित देखकर हनुमान जी को क्रोध आ गया श्री राम के विलाप एवं दुःख को देखकर कहा प्रभु यदि आपकी आज्ञा हो
तौं चंद्रमहि निचोरि चैल-ज्यों, आनि सुधा सिर नावौं
कै पाताल दलौं ब्यालावलि अमृत-कुंड महि लावौं
भेदि भुवन, करि भानु बाहिरो तुरत राहु दै तावौं
बिबुध-बैद बरबस आनौं धरि, तौ प्रभु-अनुग कहावौं
पटकौं मींच नीच मूषक-ज्यौं, सबहिको पापु बहावौं
मैं चंद्रमा को कपड़े के समान निचोड़ कर उसका अमृत लक्ष्मण के सिर पर डाल दूं
पाताल में सर्पों का दल जो अमृत की रक्षा कर रहा है उस अमृत कुंड को ही उठा लाऊं
भुवन से सूर्य को निकाल कर उसे राहु से ढक दूं जिससे सूर्य निकले ही नहीं
देवताओं के वैद्य अश्विनी कुमार को ही यहां उठा लाऊं
मृत्यु को चूहे के समान पटक कर मार दूं जिससे मृत्यु का भय ही न रहे
आखिर हनुमान जी ने यहां तक कहा कि मैं अपने प्राण निकालकर लक्ष्मण के शरीर में डाल दूं
!! जय श्री सीताराम जी !!
!! जय श्री महावीर हनुमान जी !!

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हर दिन पावन
10 मई/इतिहास-स्मृति
दस मई 1857, जब क्रान्ति का बिगुल बज उठा
इतिहास इस बात का साक्षी है कि भारतवासियों ने एक दिन के लिए भी पराधीनता स्वीकार नहीं की। आक्रमणकारी चाहे जो हो; भारतीय वीरों ने संघर्ष की ज्योति को सदा प्रदीप्त रखा। कभी वे सफल हुए, तो कभी अहंकार, अनुशासनहीनता या जातीय दुरभिमान के कारण विफलता हाथ लगी।
अंग्रेजों को भगाने का पहला संगठित प्रयास 1857 में हुआ। इसके लिए 31 मई को देश की सब छावनियों में एक साथ धावा बोलने की योजना बनी थी; पर दुर्भाग्यवश यह विस्फोट मेरठ में 10 मई को ही हो गया। अतः यह योजना सफल नहीं हो सकी और स्वतन्त्रता 90 साल पीछे खिसक गयी।
1856 के बाद अंग्रेजों ने भारतीय सैनिकों को गाय और सुअर की चर्बी लगे कारतूस दिये, जिन्हें मुंह से खोलना पड़ता था। हिन्दू गाय को पूज्य मानते थे और मुसलमान सुअर को घृणित। इस प्रकार अंग्रेज दोनों को ही धर्मभ्रष्ट कर रहे थे। सैनिकों को इसके बारे में कुछ पता नहीं था।
दिल्ली से 70 कि.मी. दूर स्थित मेरठ उन दिनों सेना का एक प्रमुख केन्द्र था। वहां छावनी में बाबा औघड़नाथ का प्रसिद्ध शिवमन्दिर था। इसका शिवलिंग स्वयंभू है। अर्थात वह स्वाभाविक रूप से धरती से ही प्रकट हुआ है। इस कारण मन्दिर की सैनिकों तथा दूर-दूर तक हिन्दू जनता में बड़ी मान्यता थी।
मन्दिर के शान्त एवं सुरम्य वातावरण को देखकर अंग्रेजों ने यहां सैनिक प्रशिक्षण केन्द्र बनाया। भारतीयों का रंग अपेक्षाकृत सांवला होता है, इसी कारण यहां स्थित पल्टन को ‘काली पल्टन’ और इस मन्दिर को ‘काली पल्टन का मन्दिर’ कहा जाने लगा। मराठों के अभ्युदय काल में अनेक प्रमुख पेशवाओं ने अपनी विजय यात्रा प्रारम्भ करने से पूर्व यहां पूजा-अर्चना की थी। इस मन्दिर में क्रान्तिकारी लोग दर्शन के बहाने आकर सैनिकों से मिलते और योजना बनाते थे। कहते हैं कि नानासाहब पेशवा भी साधु वेश में हाथी पर बैठकर यहां आते थे। इसलिए लोग उन्हें ‘हाथी वाले बाबा’ कहते थे।
नानासाहब, अजीमुल्ला खाँ, रंगो बापूजी गुप्ते आदि ने 31 मई को क्रान्ति की सम्पूर्ण योजना बनाई थी। छावनियों व गांवों में रोटी और कमल द्वारा सन्देश भेजे जा रहे थे; पर अचानक एक दुर्घटना हो गयी। 29 मार्च को बंगाल की बैरकपुर छावनी में मंगल पांडे के नेतृत्व में कुछ सैनिकों ने समय से पूर्व ही विद्रोह का बिगुल बजाकर कई अंग्रेज अधिकारियों का वध कर दिया।
इसकी सूचना मेरठ पहुंचते ही अंग्रेज अधिकारियों ने भारतीय सैनिकों से शस्त्र रखवा लिये। सैनिकों को यह बहुत खराब लगा। वे स्वयं को पहले ही अपमानित अनुभव कर रहे थे। क्योंकि मेरठ के बाजार में घूमते समय अनेक वेश्याओं ने उन पर चूडि़यां फेंककर उन्हें कायरता के लिए धिक्कारा था।
बंगाल में हुए विद्रोह से उत्साहित तथा वेश्याओं के व्यवहार से आहत सैनिकों का धैर्य जवाब दे गया। उन्होंने 31 मई की बजाय 10 मई, 1857 को ही हल्ला बोलकर सैकड़ों अंग्रेजों को मार डाला। उनके नेताओं ने अनुशासनहीनता के दुष्परिणाम बताते हुए उन्हें बहुत समझाया; पर वे नहीं माने।
मेरठ पर कब्जा कर वे दिल्ली चल दिये। कुछ दिन तक दिल्ली भी उनके कब्जे में रही। इस दल में लगभग 250 सैनिक वहाबी मुस्लिम थे। उन्होंने दिल्ली जाकर बिना किसी योजना के उस बहादुरशाह ‘जफर’ को क्रान्ति का नेता घोषित कर दिया, जिसके पैर कब्र में लटक रहे थे। इस प्रकार समय से पूर्व योजना फूटने से अंगे्रज संभल गये और उन्होंने क्रान्ति को कुचल दिया।
मेरठ छावनी में प्राचीन सिद्धपीठ का गौरव प्राप्त ‘काली पल्टन का मन्दिर’ आज नये और भव्य स्वरूप में खड़ा है। 1996 ई. में जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी कृष्णबोधाश्रम जी के हाथों मन्दिर का पुनरुद्धार हुआ।

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"एक आठ दस साल की मासूम सी गरीब लड़कीं बुक स्टोर पर जाती है और एक पेंसिल और एक दस रुपए वाली कापी खरीदती है और फिर वही खड़ी होकर कहती है अंकल एक काम कहूँ करोगे ?
जी बेटा बोलो क्या काम है ?
अंकल वह कलर पेंसिल का पैकेट कितने का है, मुझे चाहिए, ड्रॉइंग टीचर बहुत मारती है मगर मेरे पास इतने पैसे नही है, ना ही मम्मी पापा के पास है, में आहिस्ता-आहिस्ता करके पैसे दे दूंगी।
शॉप कीपर की आंखे नम हो गई और बोला, बेटा कोई बात नही ये कलर पेंसिल का पैकेट ले जाओ लेकिन आइंदा किसी भी दुकानदार से इस तरह कोई चीज़ मत मांगना, लोग बहुत बुरे है, किसी पर भरोसा मत कीया करो।
जी अंकल बहुत बहुत शुक्रिया में आप के पैसे जल्द दे दूंगी और बच्ची चली जाती है। इधर शॉप कीपर ये सोच रहा होता है कि भगवान ना करे अगर ऐसी बच्चियां किसी वहशी दुकानदार के हत्ते चढ़ गई तो ...?
शिक्षको से गुजारिश है अगर कोई बच्चा कापी पेंसिल कलर पेंसिल वगैराह नही ला पाता तो जानने की कोशिश कीजिये के कही उसकी गरीबी उसके आड़े तो नही आ रही, और हो सके तो ऐसे मासूम बच्चों की पढ़ाई के खातिर आप शिक्षक लोग भी मिल कर थोड़ा बहुत खर्चा उठा लिया करें। यक़ीन जानिए हज़ारों लाखो की तनख्वाह में से चंद सो रुपए किसी की जिंदगी ना सिर्फ बचा सकती है बल्कि संवार भी सकती है।
🙂🙏

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कृष्ण और शिकारी, संत की कथा - प्रभु भक्त अधीन
एक बार श्रीमद्भागवत कथा सुनते समय गुरुदेव के मुख से एक कथा सुनी वो आपके लिए यहाँ पर लिख रहा हूँ। यह कथा सुनकर आपके ह्रदय में भगवान के लिए प्रेम जरूर जागेगा।एक बार की बात है। एक संत जंगल में कुटिया बना कर रहते थे और भगवान श्री कृष्ण का भजन करते थे। संत को यकीं था कि एक ना एक दिन मेरे भगवान श्री कृष्ण मुझे साक्षात् दर्शन जरूर देंगे।
उसी जंगल में एक शिकारी आया। उस शिकारी ने संत कि कुटिया देखी। वह कुटिया में गया और उसने संत को प्रणाम किया और पूछा कि आप कौन हैं और आप यहाँ क्या कर रहे हैं।
संत ने सोचा यदि मैं इससे कहूंगा कि भगवान श्री कृष्ण के इंतजार में बैठा हूँ। उनका दर्शन मुझे किसी प्रकार से हो जाये। तो शायद इसको ये बात समझ में नहीं आएगी।
संत ने दूसरा उपाय सोचा। संत ने किरात(शिकारी) से पूछा: भैया! पहले आप बताओ कि आप कौन हो और यहाँ किसलिए आते हो?
उस किरात ने कहा कि मैं एक शिकारी हूँ और यहाँ शिकार के लिए आया हूँ।
संत ने तुरंत उसी की भाषा में कहा मैं भी एक शिकारी हूँ और अपने शिकार के लिए यहाँ आया हूँ।
शिकार ने पूछा: अच्छा संत जी, आप ये बताइये आपका शिकार दिखता कैसे है? आपके शिकार का नाम क्या है? हो सकता है कि मैं आपकी मदद कर दूँ?
संत ने सोचा इसे कैसे बताऊ, फिर भी संत कहते हैं: मेरे शिकार का नाम है। वो दिखने में बहुत ही सुंदर है। सांवरा सलोना है। उसके सिर पर मोर मुकुट है। हाथों में बंसी है। ऐसा कहकर संत जी रोने लगे।
किरात बोला: बाबा रोते क्यों हो? मैं आपके शिकार को जब तक ना पकड़ लूँ, तब तक पानी भी नहीं पियूँगा और आपके पास नहीं आऊंगा।
अब वह शिकारी घने जंगल के अंदर गया और जाल बिछा कर एक पेड़ पर बैठ गया। यहाँ पर इंतजार करने लगा। भूखा प्यासा बैठा हुआ है। एक दिन बीता, दूसरा दिन बीता और फिर तीसरा दिन। भूखे प्यासे किरात को नींद भी आने लगी।
बांके बिहारी को उन पर दया आ गई। भगवान उसके भाव पर रीझ गए। भगवान मंद मंद स्वर से बांसुरी बजाते आये और उस जाल में खुद फंस गए।
जैसे ही किरात को फसे हुए शिकार का अनुभव हुआ हुआ तो तुरंत नींद से उठा और उस सांवरे भगवान को देखा।
जैसा संत ने बताया था उनका रूप हूबहू वैसा ही था। वह अब जोर जोर से चिल्लाने लगा, मिल गया, मिल गया, शिकार मिल गया।
शिकारी ने उसे शिकार को जाल समेत कंधे पर बिठा लिया। और शिकारी कहता हुआ जा रहा है आज तीन दिन के बाद मिले हो, खूब भूखा प्यासा रखा। अब तुम्हे मैं छोड़ने वाला नहीं हूँ।
शिकारी धीरे-धीरे कुटिया की ओर बढ़ रहा था। जैसे ही संत की कुटिया आई तो शिकारी ने आवाज लगाई- बाबा! बाबा!
संत ने तुरंत दरवाजा खोला। और संत उस किरात के कंधे पर भगवान श्री कृष्ण को जाल में फंसा देख रहे हैं। भगवान श्री कृष्ण जाल में फसे हुए मंद-मंद मुस्कुरा रहे हैं।
किरात ने कहा: आपका शिकार लाया हुँ। मुश्किल से मिले हैं।
संत के आज होश उड़ गए। संत किरात के चरणों में गिर पड़े। संत आज फूट-फूट कर रोने लगे। संत कहते हैं: मैंने आज तक आपको पाने के लिए अनेक प्रयास किये प्रभु लेकिन आज आप मुझे इस किरात के कारण मिले हो
भगवान बोले: इस शिकारी का प्रेम तुमसे ज्यादा है। इसका भाव तुम्हारे भाव से ज्यादा है। इसका विश्वास तुम्हारे विश्वास से ज्यादा है। इसलिए आज जब तीन दिन बीत गए तो मैं आये बिना नहीं रह पाया। मैं तो अपने भक्तों के अधीन हूँ।
और आपकी भक्ति भी कम नहीं है संत जी। आपके दर्शनों के फल से मैं इसे तीन ही दिन में प्राप्त हो गया। इस तरह से भगवान ने खूब दर्शन दिया और फिर वहाँ से भगवान चले गए।
राधे राधे 🙏🙏

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