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श्री शरद सिंह भईया जन्मदिन की अनंत शुभकामनाएं , उनका सौभाग्य है जिनके किसी भी तरह के संबंध आप से है। श्रीहरि सदैव आपके सारथी रहें 🙏🙏❤️🌷🌷

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ऐसे मौसम में मन करता है, लांग ड्राइव चाय की टपरी तक...रास्ते में भुट्टे की रेहड़ी होते हुए और मनपसंद गाने...❤️
या बस मैं...मेरी यह बालकनी, एक कप चाय और कुछ यादें....!

अर्ली मानसून😍 बाबा का वादा

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बड़े मग में चाय पीते पीते अचानक मन सालों पीछे चला जाता है। जब ग्लास भरकर चाय मिलना बहुत बड़ी उपलब्धि थी। सुबह कॉलेज जाते समय जब माँ ऐसे ढेर सारे झाग बनाकर ग्लास में चाय देती थी, जो जल्दी जल्दी पीकर हम कॉलेज भागते थे...कालांतर में पता चला कि वह हमारे साथ बहुत बड़ी धोखाधड़ी होती थी।
पौन ग्लास दूध में पाव ग्लास चाय मिलाकर माँ अपना दूध पिलाओ अभियान भी सफल कर देती थी, और हम फ्रेंड्स के सामने स्टाइल मारते थे कि अब हम तो बड़े हो गए...हम तो चाय पीते हैं।
यूँही... चाय कब चाह बन गई पता ही न चला। घर की दूध उर्फ चाह, कॉलेज की टपरी वाली चाय, फ्रेंड के घर की चाय और कभी कभी पापा के लिए बनाई चाय पर हाथ साफ करते करते कब हम इस फील्ड के महारथी हो गए, पता ही न चला...!
चाय बस चाय नहीं स्वयं को स्वयं का दिया हुआ समय रूपी उपहार है। जब भी खुद के साथ समय व्यतीत करना हो, मैं बना लेती हूँ एक कप चाय।
अकेलेपन की चाय मेरे लिए मी टाइम है। जब मैं और मेरी चाय के बीच कोई नहीं होता। बहुत सी किताबें या लेख मेरी चाय का इंतज़ार करते हैं, क्योंकि वह समय है जब उनकी सुनवाई होती हैं।
एक चाय होती है साथ वाली चाय। जब चाय स्वाद के लिए नहीं बल्कि साथ के लिए पी जाती है। किसी को थोड़ी देर और रोके रखनी की ताकत बस चाय में होती है। किसी से मिलकर साथ चाय पीने का वादा...❤️दुनिया के बड़े से बड़े वादे से ऊपर है।
एक चाय होती है मस्का चाय। जब पापा माँ से कोई बात मनवानी होती है तो बनाई जाती है स्पेशल चाय। पापा को बढ़िया चाय पिलाकर बहुत सी बातें मनवाई हैं मैंने:-))
कुछ चाय होती है जबर्दस्ती वाली चाय। ऐसे बन्दे की चाय जो चाय के नाम पर डिजास्टर बनाता हो, और आपके चाय प्रेम को देखते हुए यदा कदा आपको चाय के लिए आमंत्रित करता हो, अब ना बोलकर न उसका दिल तोड़ा जाता और न वो चाय हलक से नीचे उतरती...!
सबसे खुशनुमा चाय है दोस्तों या परिवार के साथ चाय। चंद पल खुशियों के बढ़ जाते हैं जब सब बैठे हों और कोई पूछ लें;
चाय कौन कौन पिएगा?
हाथ सभी के उठेंगे पर कहा जाएगा आधा कप....पर चाहा जाएगा पौन कप और पिया जा सकेगा पूरा कप...अहा! वो पल सबसे खूबसूरत पल में से एक।
एक चाय होती है इंतज़ार की चाय। जब आपके हाथ मे चाय और मन मे इंतज़ार हो, यादें हो या हो बहुत सारी बातें। चुप बैठकर जब एक एक घूंट गले से उतरता हैं, तो लगता है जैसे बहुत कुछ जो ज़ज्ब था, वह आँखों के रास्ते निकल रहा है....!
ख़ैर...
मॉरल ऑफ द स्टोरी यह है कि...
जिसने जीवन मे ग्लास भर चाह न पी...वह जीवन के बड़े सुख से वंचित है। चाय चाहत है इसलिए चाय चाह है! बस यही सोचकर हम बना लाए अपने लिए ग्लास भरकर चाह....बस यह मत पूछिएगा यह कौनसी कैटेगरी वाली चाय है।
आप अपनी चाय बनाइये और खुद तय कीजिये।
बाकी तो...आल इज वेल!

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शिवलिंग पर जलाभिषेक करते समय माँ पार्वती के 11 नामों का भी उच्चारण और ध्यान अत्यंत ही पुण्यदायी होता है।
माँ पार्वती का स्मरण जप कम से कम शिव के मंत्रों के दशांश के रूप मे करना चाहिये।
01. ॐ पार्वत्यै नमः
02. ॐ हेमवत्यै नमः
03. ॐ अम्बिकायै नमः
04. ॐ गिरीश वल्लभायै नमः
05. ॐ गंभीर नाभ्यै नमः
06. ॐ अपर्णायै नमः
07. ॐ महादेव्यै नमः
08. ॐ कंठ कामिन्यै नमः
09. ॐ शणमुखायै नमः
10. ॐ लोकमोहिन्यै नमः
11.ॐ मेनका कुक्षीरत्नायै नमः
ये 11 नाम अमोघ हैं।

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क्या आप जानते हैं की समयसूचक AM और PM का उद्गगम भारत में ही हुआ था …??
लेकिन हमें बचपन से यह रटवाया गया, विश्वास दिलवाया गया कि इन दो शब्दों AM और PM का मतलब होता है :
AM : Ante Meridian
PM : Post Meridian
एंटे यानि पहले, लेकिन किसके? पोस्ट यानि बाद में, लेकिन किसके? यह कभी साफ नहीं किया गया, क्योंकि यह चुराये गये शब्द का लघुतम रूप था।काफ़ी अध्ययन करने के पश्चात ज्ञात हुआ और हमारी प्राचीन संस्कृत भाषा ने इस संशय को साफ-साफ दृष्टिगत किया है। कैसे? देखिये...
AM = आरोहनम् मार्तण्डस्य
PM = पतनम् मार्तण्डस्य
सूर्य, जो कि हर आकाशीय गणना का मूल है, उसी को गौण कर दिया। अंग्रेजी के ये शब्द संस्कृत के उस वास्तविक ‘मतलब' को इंगित नहीं करते।
आरोहणम् मार्तण्डस्य यानि सूर्य का आरोहण या चढ़ाव। पतनम् मार्तण्डस्य यानि सूर्य का ढलाव।
बारह बजे के पहले सूर्य चढ़ता रहता है - 'आरोहनम मार्तण्डस्य' (AM)। बारह के बाद सूर्य का अवसान/ ढलाव होता है - 'पतनम मार्तण्डस्य' (PM)।
पश्चिम के प्रभाव में रमे हुए और पश्चिमी शिक्षा पाए कुछ लोगों को भ्रम हुआ कि समस्त वैज्ञानिकता पश्चिम जगत की देन है।
हम अपनी हजारों साल की समृद्ध विरासत, परंपराओं और संस्कृति का पालन करते हुए भी आधुनिक और उन्नत हो सकते हैं।इस से शर्मिंदा न हों बल्कि इस पर गौरव की अनुभूति करें और केवल नकली सुधारवादी बनने के लिए इसे नीचा न दिखाएं।समय निकालें और इसके बारे में पढ़ें / समझें / बात करें / जानने की कोशिश करें।
अपने “सनातनी" होने पर गौरवान्वित महसूस करें।

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