पीएम मोदी के आने से ठीक पहले अचानक राहुल गांधी क्यों पहुंचे राजस्थान, आखिर क्या हैं इसके सियासी मायने
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पीएम मोदी के आने से ठीक पहले अचानक राहुल गांधी क्यों पहुंचे राजस्थान, आखिर क्या हैं इसके सियासी मायने
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राजस्थान की राजनीति में 10 मई होगा बड़ा दिनः पीएम मोदी पहुंच रहे प्रदेश, सीएम गहलोत की बढ़ी टेंशन
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श्रीरामचरितमानस के रचयिता श्री तुलसीदास जी को श्री राम भक्ति की ओर उन्मुख करने का श्रेय उनकी विदुषी धर्म पत्नी श्री रत्नावली जी को दिया जाता है।
एक बार श्री तुलसीदास जी की पत्नी रत्नावली अपने मायके मे थी
तब श्री तुलसीदास जी को रत्नावली की बहुत याद आने लगी।
उस समय बाहर जोरो की बारिश हो रही थी ,और रत्नावली जी का मायका नदी के उस पार था ।
पर तुलसीदास जी उस बात की परवाह किए बिना रत्नावली को मिलने रात में निकल पड़े।
कहा जाता है की एक लाश के सहारे उन्होंने नदी पार की और एक रस्सी के सहारे दूसरी मंजिल पर सो रही उनकी पत्नी के कक्ष मे पहुंच गये। श्री रत्नावली यह देख बहुत ही हड़बड़ा गई की, जिसे श्री तुलसीदास जी रस्सी बता रहे थे वह एक लंबा सांप था। अपने
लिए तुलसीदास जी का इतना मोह
रामचरितमानस में श्रीराम प्रभुजी के गले मिलने का सौभाग्य श्री हनुमान जी को बहुत बार मिला , और हर बार श्री हनुमान जी अत्याधिक आनंद, सुख, और प्रभु प्रेम में लिन होकर प्रभु के चरणो मे
अपने मस्तिष्क को लगाये भावविभोर हो चले ।
किष्किन्धाकान्ड मे श्रीराम से पहला मिलन हो या सुन्दर कांड मे माता सीताजी की
चूड़ामणि प्रभु श्रीराम को देते समय , लेकिन लंका कांड मे जब श्री लक्ष्मण जी को मेघनाथ की शक्ति छाती मे लगी और वह मूर्च्छित हो गये तब श्रीहनुमान जी उनके लिए वैद्य की बताई औषधि का पहाड़ और सुषेण वैद्य को लेकर प्रभु के पास
आये। श्री लक्ष्मण जी के लिए अत्याधिक चिंतित प्रभु श्रीरामजी ने बेहद भावुक होकर श्री हनुमान जी से जो कहा , वह तुलसीदास जी ने हनुमान चालीसा मे लिखा है । " लाय सजीवन लखन जियाए, श्री रघुवीर हरषि उर लाए। रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई।
इसलिए श्री हनुमान जी को भक्त शिरोमणि कहा जाता है ।
जय श्रीराम जय हनुमान।
भक्ति भाव और भाषा के अप्रतिम
श्री राम भक्त शिरोमणि तुलसीदास जी को अपने आराध्य श्रीराम प्रभु के दर्शन हुए थे लोक-श्रुतियों के अनुसार ( उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश बांदा और सतना जिले की सीमा पर स्थित ) मंदाकिनी नदी के किनारे पर्वत और वनो से घिरे चित्रकूट मे प्रभु श्रीराम ने उन्हे दर्शन दिए थे। कहा जाता है कि एक प्रेत ने तुलसीदास जी को हनुमान जी से दर्शन के लिए मदद
लेने को कहा था। तुलसीदास जी ने हनुमान जी से बहुत प्रार्थना की तब श्रीहनुमान ने तुलसीदास जी को हा कहा। एक दिन तुलसीदास जी प्रदक्षिणा कर रहे थे तब उसे दो घोडों पर सवार,हाथ मे धनुष-बाण लिए श्रीरामजी और श्री लक्ष्मणजी के दर्शन हुए पर तुलसीदास जी यह प्रभु ही है ऐसा जान न सके। जब हनुमान जी ने प्रगट होकर भेद बताया तो वह बहुत दुखी हुए तब श्रीहनुमान ने तुलसीदास जी को बुधवार संवत 1607 मौनी अमावास्या के दिन फिर से प्रभु के दर्शन होंगे ऐसा कहा ,अमावास्या के दिन
प्रातःकाल तुलसीदास जी जब चंदन घिस रहे थे तब प्रभु श्रीराम जी और श्री लक्ष्मण जी ने तुलसीदास जी को दर्शन दिए और चंदन लगाने को कहा। श्री हनुमान जी ने सोचा कि शायद इस बार तुलसीदास जी भुल न कर बैठें इसलिए उन्होंने तोते के रूप मे आकर श्री तुलसीदास जी को कहा,
" चित्रकूट के घाट पर संतो की भीड़ है तुलसीदास जी चंदन घीस रहे है और तुलसीदास जी को खुद रघुवीर चंदन लगा रहे है । यह प्रसंग लोक श्रुति पर आधारित है
जय श्रीराम जय हनुमान