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अजमेर में एक सोने का जैन मंदिर भी है जिसे सोनी जी की नसिया के नाम से जाना जाता है
जो अत्यंत दर्शनीय है मजार को आप भूल जाएंगे।
जैनियों के दिगंबर संप्रदाय द्वारा बहुत सम्मानित, नसियान मंदिर ऋषभदेव को समर्पित है, राय बहादुर सेठ मूलचंद और नेमीचंद सोनी द्वारा 24 तीर्थंकर में से पहला। यह भारत में राजस्थान राज्य के केंद्र अजमेर में पृथ्वी राज मार्ग पर स्थित है। इस भव्य जैन मंदिर की नींव 10 अक्टूबर 1864 को रखी गई थी और 26 मई 1865 को गर्भगृह में ऋषभदेव (आदिनाथ) की प्रतिमा स्थापित की गई थी। यह कार्य जयपुर के महान विद्वान पंडित सदासुखदासजी के कुशल मार्गदर्शन में संपन्न हुआ।
मंदिर का नाम सिद्धकूट चैत्यालय है। इसे 'लाल मंदिर' के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि यह लाल बलुआ पत्थर या 'सेठ मूलचंद सोनी के नसियान' से बना है जो संस्थापक के नाम को दर्शाता है। 1895 ई. में स्वर्ण नगरी को मंदिर में शामिल किए जाने के बाद इसे लोकप्रिय रूप से 'सोने का मंदिर' या 'सोनी मंदिर' कहा जाने लगा, जिसमें स्वर्ण संरचना के साथ-साथ परिवार का नाम भी शामिल था। इस मंदिर के हॉल बड़ी, गिल्ट लकड़ी की आकृतियों और नाजुक चित्रों की आकर्षक श्रृंखला से सुशोभित हैं जो जैन धर्मग्रंथों के दृश्यों को प्रदर्शित करते हैं।
बात 1962 की है, जब दारा सिंह के कदम रांची की सरजमीं पर पड़े थे.
सिडनी के किंग कांग ने दारा सिंहको कुश्ती लडऩे की चुनौती दी थी.
हिन्दुतान के दारा सिंह height 6'2" weight 130 kg ने उस 208 किलो के किंग कोंग height 6'4" की चुनौती को स्वीकार कर लिया था....
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अब्दुर बारी पार्क में कुश्ती होना तय हुआ और ये कुश्ती होने से पहले ही सनसनी छा गयी.. नवंबर 1962 में दुनियाभर के पहलवान रांची में जुटे थे. उस वक्त सिटी में दारा सिंह की जिन-जिन पहलवानों के साथ कुश्ती हुई, सब में उन्हें जीत मिली थी. पर, तब स्पेक्टेटर्स को उस पल का बेसब्री से इंतजार था, जब दारा सिंह और किंग कांग की भिड़ंत होती. थोड़े इंतजार के बाद दारा सिंह और किंग कांग अखाड़े पर उतरे. मुकाबले में 208 केजी के किंग कांग के सामने दारा सिंह तो बच्चे लग रहे थे, पर उनका आत्मविश्वास किंग कांग पर
भारी पड़ा. दारा सिंह ने किंग कांग को तीन बार पटखनी दे दी. एक बार तो उन्होंने छह फीट ४ इंच लंबे किंग कांग को उठाकर ट्विस्ट करते हुए एरिना से नीचे गिरा दिया था. कुश्ती के दौरान जब-जब दारा सिंह ने किंग कांग को चारों खाने चित किया, तब तब भारी भीड़ ने तालियों से उस स्थान को गूंजा दिया..
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नवंबर 1962 में हुई ऐतिहासिक कुश्ती में पाकिस्तान, इंडोनेशिया, सिडनी, हंगरी के पहलवान जुटे थे. उस ऐतिहासिक कुश्ती को देखने के लिए लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा था. उस वक्त उस कुश्ती को देखने का एक टिकट 30 रुपए में मिला था. वह दारा सिंह का क्रेज ही था, जिस कारण महंगे टिकट होने के बावजूद लोग कुश्ती देखने गए. भीड़ इतनी जुट चुकी थी कि उसे कंट्रोल करने के लिए रांची के उस वक्त के तत्कालीन एसपी ईएन बेदी ने मैदान में टिन शीट से बैरिकेडिंग की थी.
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दारा सिंह की रांची में वह 278वीं कुश्ती थी. 277 कुश्ती उन्होंने देश और विदेश में लड़ ली थी. हर कुश्ती में वह विनर रहे थे. यूथ में दारा सिंह जैसे पहलवान बनने का क्रेज सिर चढ़कर बोलता था. दारा सिंह की पर्सनालिटी से इम्प्रेस होकर यूथ ने वर्जिश करनी शुरू कर दी थी. तब राजस्थान और हरियाणा में जिसके घर में मोटा-ताजा बच्चा पैदा होता था, उसका नाम दारा रख दिया जाता था.
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अब न तो कुश्ती ही देखने को मिलती है और न ही अखाड़े नजर आते हैं. अब तो पुराने पहलवान भी इस दुनिया में नहीं रहे. आजकल तो पिज्जा और CoCo कोला, Pepsi वाले नौजवान ही देश में बचे हैं.. जो दो बादाम नहीं पचा सकते और एक बाल्टी दूध तो क्या उनके एक गिलास देशी राठी गाय
का दूध भी हलक से नहीं उतरती..
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दारा सिंह ने अपने जीवन में कभी भी bournvita, Horlicks, boost,
complan जैसी गंदगी नहीं पिया था, पीया तो सिर्फ देशी गाय का असली दूध। लेकिन आजकल की ये कम्पनिया लोगो को टीवी पर एड दिखा के मुर्ख
बनाकर भारत से लाखो रूपया लूट ले जाती है और भारत के लोग मुर्ख बनते है। मूर्ख बनाके अपने को समझदार समझते है...I
सनातन धर्म में सोमरस का आशय मदिरा नही है ना ही सोमरस नशीला पदार्थ है,,,
"देवता शराब नही पीते थे"
सोमरस सोम के पौधे से प्राप्त था , आज सोम का पौधा लगभग विलुप्त है ,
शराब पीने को सुरापान कहा जाता था , सुरापान असुर करते थे , ऋग्वेद में सुरापान को घृणा के तौर पर देखा गया है ,
टीवी सीरियल्स ने भगवान इंद्र को अप्सराओं से घिरा दिखाया जाता है और वो सब सोमरस पीते रहते हैं , जिसे सामान्य जनता शराब समझती है ,
सोमरस , सोम नाम की जड़ीबूटी थी जिसमे दूध और दही मिलाकर ग्रहण किया जाता था , इससे व्यक्ति बलशाली और बुद्धिमान बनता था ,
जब यज्ञ होते थे तो सबसे पहले अग्नि को आहुति सोमरस से दी जाती थी ,
ऋग्वेद में सोमरस पान के लिए अग्नि और इंद्र का सैकड़ो बार आह्वान किया गया है ,
आप जिस इंद्र को सोचकर अपने मन मे टीवी सीरियल की छवि बनाते हैं वास्तविक रूप से वैसा कुछ नही था ,
जब वेदों की रचना की गयी तो अग्नि देवता , इंद्र देवता , रुद्र देवता आदि इन्ही सब का महत्व लिखा गया है ,
मन मे वहम मत पालिये ,
आज का चरणामृत/पंचामृत सोमरस की तर्ज पर ही बनाया जाता है बस प्रकृति ने सोम जड़ीबूटी हमसे छीन ली
तो एक बात दिमाग मे बैठा लीजिये , सोमरस नशा करने की चीज नही थी ,
आपको सोमरस का गलत अर्थ पता है अगर आप उसे शराब समझते हैं।
शराब को शराब कहिए सोमरस नहीं ।
सोमरस का अपमान मत करिए , सोमरस उस समय का चरणामृत/पंचामृत था ।🚩🚩
जगरूप रूपा और मनु कुश के एनकाउंटर के बाद जग्गू भगवानपुरिया ने तोड़ी चुप्पी, पोस्ट किया
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