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मेरी बेटियों ने फोन में रील बनाकर पैसे नहीं कमाए बल्कि देश के लिए मैडल जीते हैं। आज लाइक रुकने नहीं चाहिए 🙏
आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होने के बावजूद महावीर ने अपने जुनून को कभी मरने नहीं दिया। गाँव में पारंपरिक कुश्ती का प्रशिक्षण तो मिला, लेकिन संसाधनों की कमी ने उनके राष्ट्रीय स्तर पर पहुंचने के सपने को अधूरा ही छोड़ दिया।
पर महावीर फोगाट ने हार मानना सीखा ही नहीं था। उन्होंने ठान लिया कि जो सपना वह खुद पूरा नहीं कर सके, वह अपनी बेटियों के जरिए पूरा करेंगे। यह विचार उस समय क्रांतिकारी था, क्योंकि लड़कियों को कुश्ती सिखाने का तो कोई सोच भी नहीं सकता था। समाज के कड़े विरोध और तानों के बावजूद, महावीर ने अपनी बेटियों गीता और बबीता को लड़कों के साथ ट्रेनिंग दिलवाई।
गीता फोगाट ने 2010 में कॉमनवेल्थ गेम्स में स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रच दिया। बबीता ने भी विभिन्न प्रतियोगिताओं में सफलता हासिल की, और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपना नाम बनाया। महावीर की कठिन मेहनत और अटूट विश्वास ने उनके परिवार को भारतीय कुश्ती के क्षेत्र में एक नई ऊँचाई पर पहुँचाया।
महावीर फोगाट की कहानी सिर्फ एक खेल की कहानी नहीं है, बल्कि यह संघर्ष, समर्पण और अडिग विश्वास की कहानी है। अपने जीवन में अनगिनत सस्पेंस और कठिनाइयों का सामना करते हुए उन्होंने अपने परिवार को एक नए मुकाम पर पहुँचाया, जो हर किसी के लिए प्रेरणादायक है।
उनके जीवन की हर घटना में एक नया मोड़, एक नया संघर्ष और एक नई जीत छिपी है। महावीर फोगाट ने साबित कर दिया कि अगर विश्वास और समर्पण हो तो कोई भी सपना अधूरा नहीं रह सकता। उनकी कहानी हमें यह सिखाती है कि जब तक हम हार नहीं मानते, तब तक हमें कोई हरा नहीं सकता।
महावीर फोगाट का संघर्ष, समर्पण और सफलता की यह अद्भुत गाथा हर दिल को छू जाती है, और हमें अपने सपनों को साकार करने की प्रेरणा देती है।

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