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नीरज ने पहली बार विश्व एथलेटिक्स चैंपियनशिप टूर्नामेंट में स्वर्ण जीता है। ओलंपिक, एशियाई खेल, राष्ट्रमंडल खेल और डायमंड लीग में चैंपियन बनने वाला यह खिलाड़ी अब वर्ल्ड चैंपियन भी है।
#neerajchopra
नीरज ने पहली बार विश्व एथलेटिक्स चैंपियनशिप टूर्नामेंट में स्वर्ण जीता है। ओलंपिक, एशियाई खेल, राष्ट्रमंडल खेल और डायमंड लीग में चैंपियन बनने वाला यह खिलाड़ी अब वर्ल्ड चैंपियन भी है।
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नीरज ने पहली बार विश्व एथलेटिक्स चैंपियनशिप टूर्नामेंट में स्वर्ण जीता है। ओलंपिक, एशियाई खेल, राष्ट्रमंडल खेल और डायमंड लीग में चैंपियन बनने वाला यह खिलाड़ी अब वर्ल्ड चैंपियन भी है।
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जापान में लोकप्रिय हो रहा: मिनिमलिज्म (न्यूनतमवाद)
"थोड़ा है, ज्यादा की जरूरत नहीं", के सिद्धांत पर चल रहा है जापान!
बड़े घर, बड़ी गाडियां, बड़ी जमीनों को तिलांजलि दे रहे हैं। सीमित कपड़े, न्यूनतम समान की नई राह पकड़ी है यहां के लोगों ने, और दावा किया जा रहा है कि वे पहले से अधिक खुश हैं। दिखावटी साजो सामान वे नापसंद करने लगे हैं। यहां जो दिखावे को तवज्जो देता है, उसे असभ्य माना जाता है! और, यह जीवनशैली मजबूरी नहीं, उनके जीने का आसन सलीका है।
इस पृथ्वी पर अहसान है यह उनका। तकनीक और आधुनिकतम मशीनी युग में परचम फहरा कर यदि किसी देश के लोग ऐसा करने लगे हैं, तो वाकई यह वास्तविक “प्रतिक्रमण" है। (जैन धर्म की एक साधना, जिसमें साधक प्रमादजन्य दोषों से निवृत होकर आत्मस्वरूप में लौटने की ओर प्रवृत्त होता है)।
धीरे ही सही, लेकिन पनपते रहेंगे और जिएंगे। या सर्वनाश देखते देखते मरेंगे। इन दो विकल्पों में से यदि एक को चुनना पड़े तो मानव जाति पहला ही चुनेगी। लेकिन, इसके पहले वह दृष्टि पैदा होनी होगी जो जापान के लोगों में हुई है। अभी, हमने इस ओर सोचना भी शुरू नहीं किया है।
किसी भी देश के विकास के मापदंड जब तक इकनॉमिक ग्रोथ और जीडीपी के आंकड़े रहेंगे, तब तक इस धरती को बचाने की योजनाएं और कवायदें सिर्फ और सिर्फ भ्रम फैलाने वाले झूठ ही रहेंगे।
कौन ऐसी कंपनी होगी, जो अपने टारगेट्स का रिवर्स गियर लगाएगी? जो कंपनी आज एक लाख स्कूटर या तीस हजार कारें बना रही है, उसके अगले वर्ष के टारगेट 10% या उससे भी अधिक होंगे। उत्पादन चाहे कोई भी हो, सेल्स टारगेट बढ़ते ही जायेंगे और उपभोग भी। उपभोग अधिक से अधिक होगा तभी इन कंपनियों की ग्रोथ और देश की जीडीपी बढ़ती रहेगी।
अधिक AC, अधिक फ्रिज, अधिक टीवी, अधिक माइक्रोवेव, अधिक इंडस्ट्रियां, अधिक मकान, अधिक वेतन, अधिक व्यवसाय, सब कुछ अधिक...!! फिर क्यों न होगा अधिक कार्बन उत्सर्जन और अधिक नुकसान पर्यावरण का। फिर कैसे बच पाएगी यह धरती?
क्या व्यक्तिगत रूप से हम अपने उपभोग को कम करने को तैयार, ईमानदार और गंभीर हैं, जैसे जापान ने किया है?
छोटी छोटी चीजों को लेकर ही हम जागरूक नहीं हैं। हमारे घरों, कार्यालयों में बेमतलब लाइट, पंखे, एसी चलते रहते हैं। रसोई में लगे वाटर प्यूरीफायर से लेकर टॉयलेट्स में जिस तरह से पानी बहाया जाता है हर घर में, उसे नहीं रोकेंगे, लेकिन धरती और पर्यावरण संरक्षण की बड़ी बड़ी बातें अवश्य करेंगे!! हम आत्मावलोकन करें। किस कदर हमारा उपभोग बढ़ा है?
ईमानदार कोशिश, अपने घर और अपनी आदतों में करनी होगी। जब तक उपभोग कम नहीं करेंगे तब तक उत्पादन कम नहीं होगा। और जब तक उत्पादन कम नहीं होगा, अपशिष्टों के खंजरों से धरती लहूलुहान होती रहेगी।
दूसरे बेतहाशा उपभोग कर रहें हैं, केवल मेरे अकेले के कटौती करने से क्या होगा की सोच से ऊपर उठना होगा। जब तक इसे जीने का तरीका और सलीका नहीं बनायेंगे तब तक आगे की पीढ़ी न्यूनतमवाद की आवश्यकता को नहीं समझ पाएगी। शुरुआत स्वयं से और अपने घर से करेंगे, तब शायद एक पीढ़ी बाद इसके कुछ सुखद परिणाम सामने आ सकेंगे। धरती बची रहेगी तो ही रहेगा हमारा अस्तित्व।
इस देश की परंपरा ने जीवन जीने का विकसित दृष्टिकोण दिया। संतोष को परम सुख का कारक बताया। जो है, उसमें संतुष्ट रहने के तरीके सुझाए। धरती को माता कहा, पानी और पेड़ों की पूजा की। लेकिन, जीवन के इन आधारभूत तत्वों को कमाई और आधुनिकता के नाम पर अब नेस्तनाबूत किया जा रहा है। पश्चिम की नकल करते करते हम बेहद लालची और भोगी बन गए। उन्होंने, हमारी पुरातन राह में सार माना और उसे जीवनशैली बनाने के लिए कमर कसी। और हम!? हमारी आंखे अभी बंद हैं। "और और" की जो चाह है, यह इस धरती से जीवन का ही सर्वनाश कर दे, इसके पहले आंख खुल जाए तो बेहतर!
शुभकामनाएं...