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#पहला_हवाई_जहाज..... भारतीय वैज्ञानिक शिवकर बापूजी तलपदे ने बनाया था 🚩🚩
जब 20 वीं शताब्दी के प्रारम्भ में अमेरिका वासी राइट बंधुओं ने पहले ग्लाइडर के प्रयोग किये और हवा से भारी 12 हार्स पावर की मोटर वाला पहला स्वतः अग्रगामी वायुयान ''राइट फ्लायर -1' बनाया जिसे 17 दिसम्बर 1903 को ओरविले राइट ने उसमें बैठकर उड़ाकर दिखाया।
वायुयान का इतिहास बताने वाले विज्ञान के आधुनिक ग्रंथों में राइट बंधुओं की इस उपलब्धि की चर्चा तो खूब जोर-शोर से की जाती है, पर भारत के उस 'वैज्ञानिक' की कोई चर्चा नहीं की जाती जिसने राइट बंधुओं के 'राइट फ्लायर ' से आठ साल पहले सन् 1895 में विमान बनाया, विशाल जन समूह की उपस्थिति में मुम्बई के चौपाटी समुद्र तट पर 17 मिनट तक उसे उड़ाया और उसे 1500 फुट तक की ऊँचाई पर ले गया।
जिस भारतीय वैज्ञानिक ने यह करामात की उनका नाम था “शिवकर बापूजी तलपदे” वे मराठी व्यक्ति थे ।
मुम्बई के चीरा बाजार इलाके में एक सामान्य परिवार में जन्में श्री तलपदे संस्कृत के विद्वान थे और कला की प्रसिद्ध संस्था
‘जे जे स्कूल ऑफ आर्ट्स, मुम्बई' में चित्रकला के शिक्षक
थे।
तलपदे जी 1885 में मुम्बई में स्थापित 'शामरावं कृष्ण
आणि मंडली' नामक संस्था के सक्रिय सदस्य थे जो स्वामी
दयानंद सरस्वती (1824-1883) के विचारों से प्रभावित
लोगों ने स्वामी जी के ग्रंथों का मराठी में अनुवाद करने के
लिए बनायी थी ।
स्वामी दयानंद सरस्वती (1824-1883) ने अपने ग्रंथ ऋग्वेदादिवभाष्य भूमिक (1877) में अन्य विषयों के साथ विमान बनाने से संबंधित कतिपय वेदमंत्रों की व्याख्या की ।
उनके ग्रंथ से प्रेरणा पाकर आपकी विमान शास्त्र में रूचि पैदा
हो गयी और हमारे देश में विमान शास्त्र के जो सबसे बड़े वैज्ञानिक माने जाते हैं वो 'महर्षि भारद्वाज' ।
महर्षि भारद्वाज ने विमान शास्त्र की सबसे पहली पुस्तक लिखी, उस पुस्तक के आधार पर फिर सैकड़ों पुस्तकें लिखी गयी।
भारत में जो पुस्तक उपलब्ध है उसमें सबसे पुरानी पुस्तक 1500 साल पुरानी है और महर्षि भारद्वाज तो उससे भी बहुत साल पहले हुए।
शिवकर बापू जी तलपदे जी के हाथ में महर्षि भारद्वाज के विमान शास्त्र पुस्तक लग गई और इस पुस्तक को उन्होनें पढ़ा ।
इस पुस्तक के बारे में तलपदे जी ने कुछ रोचक बातें कहीं जैसे-
इस पुस्तक के आठ वे अध्याय में विमान बनाने की तकनीकी का ही वर्णन है।
आठ वे अध्याय में 100 खंड है जिसमें विमान बनाने की
टेक्नालॉजी का वर्णन है।
महर्षि भारद्वाज ने अपनी पूरी पुस्तक में विमान बनाने के 500 सिद्धांत लिखे हैं।
एक सिद्धांत होता है जिसमें इंजन बन जाता है और पूरा विमान
बन जाता है, ऐसे 500 सिद्धांत लिखे हैं महर्षि भारद्वाज ने यानि 500 तरह के विमान बनाये जा सकते हैं हर एक सिद्धांत पर ।
इस पुस्तक के बारे में तलपदे जी और लिखते हैं कि- इन 500 सिद्धांतो के 3000 श्लोक हैं विमान शास्त्र में।
यह तो (Technology) तकनीकी होती है इसका एक
के (Process) प्रक्रिया होती है, और हर एक तकनीकी के एक विशेष प्रक्रिया होती है तो महर्षि भारद्वाज ने 32 प्रक्रियाओं
का वर्णन किया है। मतलब 32 तरह से 500 किस्म के विमान बनाए जा सकते हैं मतलब 32 तरीके हैं 500 तरह के विमान बनाने के अर्थात् एक विमान बनाने के 32 तरीके, 2 विमान बनाने के 32 तरीके, 500 विमान बनाने के 32 तरीके उस पुस्तक विमल शास्त्र में है।
3000 श्लोक है 100 खण्ड है और 8 अध्याय है।
आप सोचिये यह कितना बड़ा ग्रन्थ है ।
तलपदे जी ने अपना अनुसंधान वेद एवं विमान विद्या से सम्बंधित संस्कृत ग्रंथों के आधार पर किया । संस्कृत में ऐसे
अनेक ग्रंथ हैं जिनमें विमान बनाने की विधि बतायी गयी है।
आचार्य वैद्यनाथ जी शास्त्री ने अपने प्रसिद्ध ग्रंथ 'शिक्षण
तरंगिणी' में विमान से सम्बंधित संस्कृत के 17 ग्रंथों का
उल्लेख किया है जो विभिन्न समयों पर लिखे गये, पर आज
इनमें से कुछ ही ग्रंथ उपलब्ध हैं।
राजा भोज (11 वीं शताब्दी) द्वारा निर्मित 'समरांगण सूत्रधर' में विमान बनाने का संक्षेप में वर्णन मिलता है। पर अब यह ग्रंथ पूरा उपलब्ध नहीं है, इसका एक भाग 'वैमानिक प्रकरण' बड़ौदा के राजकीय पुस्तकालय में रखा है जिसमें एक स्थान से दूसरे स्थान के लिए, एक देश से दूसरे देश के लिए तथा एक ग्रह से दूसरे ग्रह जाने के लिए पृथक-पृथक प्रकार के विमानों का भी वर्णन किया गया है।
इस ग्रन्थ को शिवकर बापूजी तलपदे जी ने पढ़ा अपने विद्यार्थी जीवन में और पढ़कर परीक्षण किये और परीक्षण करते-करते 1895 में वो सफल हो गए और उन्होंने पहला विमान बना लिया और उसको उड़ा कर भी दिखाया।
इस परीक्षण को देखने के लिए भारत के बड़े-बड़े लोग गए।
हमारे देश के उस समय के एक बड़े व्यक्ति हुआ करते थे महादेव गोविन्द रानाडे जो अंग्रेजी न्याय व्यवस्था में जज की
हैसियत से काम किया करते थे।
मुम्बई हाई कोर्ट में रानाडे जी गए उसको देखने के लिए।
बड़ोदरा के एक बड़े राजा हुआ करते थे गायकवाड़ नाम के वो गए उसको देखने के लिए। ऐसे बहुत से लोगों के सामने और हजारों साधारण लोगों की उपस्थिति में शिवकर बापूजी तलपदे ने अपना विमान उड़ाया और हैरानी की बात यह थी उस विमान को उन्होंने उड़ाया, उसमें खुद नहीं बैठे, बिना चालक के उड़ा
दिया उसको।
जब औरंगजेब को पता चला कि छत्रपति शिवाजी महाराज का देहांत हो गया है। तो वो दक्षिण जीतने की इच्छा लिए आगरा से उठकर औरंगाबाद पहुँच गया। औरंगजेब को एक दिन निजामशाही और दो दिन आदिलशाही को खत्म करने में लगे लेकिन सामना होना था 23 साल के नए छत्रपति संभाजी से। इस समय औरंगजेब दुनिया का सबसे ताकतवर राजा था। वो ना सिर्फ विश्व के सबसे बड़ा भू भाग पर राज कर रहा था उसके पास विश्व की सबसे बड़ी पाँच लाख की सेना थी।
अगले 9 सालों में संभाजी ने पुर्तगालियों के खिलाफ 15 और मुगलों के खिलाफ 69 छोटे बड़े युद्ध जीते। मराठा साम्राज्य की जो सीमा उनके पिता छोड़ कर गए थे वो उससे कई गुना बढ़ाकर आगे ले गए। गुजरात से लेकर गोवा तक भगवा फहर रहा था। साल 1689 में सगे साले की गद्दारी के चलते छत्रपति अपनी पत्नी और बच्चे समेत बंधक बनाए गए। उन्हें जोकर के कपड़े पहनाकर परेड कराते हुए मुगल खेमे में लाया गया। औरंगजेब ने जिंदा रहने के दो रास्ते दिए पहला पूरा मराठा साम्राज्य मुगलों को सौंप दिया जाए या इस्लाम स्वीकार कर लिया जाए। बंधक बने संभाजी का जवाब था अगर औरंगजेब अपनी बेटी की निकाह भी मुझसे करा दे तो भी इस्लाम स्वीकार नहीं करूँगा।
इसके बाद शुरू हुआ टॉर्चर पहली दिन उनकी आँखें फोड़ी गई, इसके बाद उनकी जीभ काटी गई, फिर खाल उतारी गई अंत में उनकी टुकड़े करके कुत्तों को खिला दिए गए। औरंगजेब इसके बाद करीब 20 साल मराठों को खत्म करने का सपना लिए औरंगाबाद पड़ा रहा वो तो हिन्दू पदपादशाही समाप्त नहीं कर पाया, हाँ उसके मरने के 40 साल बाद पेशवाओं ने जरूर मुगल बादशाहों को पेंशन पर रखा और उनकी रक्षा की। मराठों एवं अंग्रेजों में 1684 में जो समझौता हुआ, उसमें छत्रपति संभाजी महाराज ने एक ऐसी शर्त रखी थी कि अंग्रेजों को मेरे राज्य में दास (ग़ुलाम) बनाने अथवा ईसाई धर्म में दीक्षित करने हेतु लोगों का क्रय करने की अनुज्ञा नहीं मिलेगी।
छत्रपति संभाजी महाराज द्वारा औरंगजेब को लिखा पत्र…
“बादशाह सलामत सिर्फ मुसलमानों के बादशाह नहीं हैं। हिंदुस्तान की जनता अलग अलग धर्मों की है। उन सबके ही बादशाह हैं वो। वो जो सोच कर दक्कन आये थे, वो मकसद पूरा हो गया है। इसी से संतुष्ट होकर उन्हें दिल्ली लौट जाना चाहिए। एक बार हम और हमारे पिता उनके कब्ज़े से छूट कर दिखा चुके हैं। लेकिन अगर वो यूँ ही ज़िद पर अड़े रहे, तो हमारे कब्ज़े से छूट कर दिल्ली नहीं जा पाएंगे। अगर उनकी यही इच्छा है तो उन्हें दक्कन में ही अपनी क़बर के लिए जगह ढूँढ़ लेनी चाहिए।”
छत्रपति संभाजी महाराज की हत्या के बाद औरंगजेब ने कहा था, “अगर मेरे चार बेटों में से एक भी तुम्हारे जैसा होता, तो सारा हिंदुस्तान कब का मुग़ल सल्तनत में समा चुका होता।”
हर हर महादेव
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