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यह रामायण सीरियल का वह दृश्य है जहाँ एक अदभुद घटना घटी (सत्य घटना)
1985-86 में समुद्र के किनारे पर रामायण सीरियल की शूटिंग चल रही थी... राम की भूमिका निभाने वाले अरुण गोविल एक शिला पर बैठे हुए थे... समुद्र के पास में ही एक छोटा सा गाँव था, उस गाँव के लोग कभी कभी रामायण की शूटिंग देखने आ जाते थे...
एक दिन उस गाँव में एक बच्चे को सर्प ने डस लिया, बच्चा एक दम बेहोश हो गया और उसके मुँह से सफेद झाग आने लगे...! जैसे ही उसकी माँ को पता चला, वो अपने बच्चे को गोदी में लेकर वहां दौड़ी जहाँ रामायण की शूटिंग चल रही थी... सभी रामायण की शूटिंग में व्यस्त थे... महिला रोती रोती एक दम वहाँ पहुँची और जहाँ रामजी (अरुण गोविल) बैठे हुए थे...
महिला ने बच्चे को रामजी के चरणों मे पटक दिया और जोर जोर से रोने लगी, रामजी मेरे बच्चे को बचाओ... इसे सर्प ने डस लिया है... आप भगवान हो, मेरे बच्चे को बचाओ... प्रभु मेरे बच्चे को बचाओ...
सभी शूटिंग करने वाले हैरान होकर महिला की तरफ देखते रहे, कुछ समय के लिये शूटिंग रोक दी गई... जब महिला रामजी के सामने जोर जोर से रोने लगी, तब रामजी एक दम खड़े हो गए और बच्चे को देख कर उसके ऊपर अपना हाथ फेरने लगे...
और जैसे ही रामजी ने बच्चे पर हाथ फेरा बच्चे को होश आने लगा, आँखे खोलने लगा... सभी शूटिंग करने वाले लोग और कुछ महिला के साथ आये लोग दंग रह गए और बच्चा खड़ा हो गया...!
महिला का भाव देखो कि उधर एक अभिनेता के अंदर प्रभु की शक्ति पैदा हो गयी!
यह घटना खुद अरुण गोविल ने अपने मुँह से सुनाई थी... 1995 में किसी स्टेज प्रोग्राम में उनको आमंत्रित किया, तब किसी व्यक्ति ने अरुण गोविल जी से पूछा कि रामायण की शूटिंग करते समय आपका कोई ऐसा अनुभव जो आपके लिए अविस्मरणीय रहा हो... तब उन्होंने यह घटना सभी को बताई...
जब सच्चे भाव और भावना से पत्थर में भगवान प्रकट हो सकते हैं तो व्यक्ति में क्यों नहीं... कौन कहता सच्चे मन से पुकारे तो भगवान प्रकट नहीं होते...
सियाराम मय सब जग जानी, करहु प्रणाम जोर जुग पानी...!
जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखी तिन तैसी...।।
जय श्रीराम
पुरी जगन्नाथ मंदिर की रसोई हर दिन 100,000 लोगों को खिलाती है और यह दुनिया की सबसे बड़ी खुली हवा में रसोई है।
यहां के ऑपरेशनों का पैमाना देखकर आपका होश उड़ जाएगा।
प्रत्येक कार्य में कुछ व्यक्ति निर्दिष्ट होते हैं।
कुछ पुरुष कुएं से पानी खींचते हैं, कुछ सब्जी काटने के प्रभारी होते हैं, कुछ लकड़ी काटने के प्रभारी होते हैं और कुछ खाना पकाने के प्रभारी होते हैं।
भोजन केवल मिट्टी के बर्तनों का उपयोग करके तैयार किया जाता है; प्रतिदिन 15,000 मिट्टी के बर्तनों का उपयोग किया जाता है और उनमें से किसी का भी पुन: उपयोग नहीं किया जाता है।
भोजन एक अनूठी तकनीक का उपयोग करके तैयार किया जाता है।
सात मिट्टी के बर्तनों को एक दूसरे के ऊपर व्यवस्थित किया जाता है, जूट की रस्सियों से सुरक्षित किया जाता है, और फिर पूरे सेटअप को जलाऊ लकड़ी पर रखा जाता है।
हर बार, सबसे ऊपर वाले बर्तन की चीज़ें पहले पक जाती हैं और सबसे नीचे वाले बर्तन तक क्रम वही रहता है।
हर दिन, 56 वस्तुओं को पकाया जाता है और भगवान जगन्नाथ को प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता है, जिसके बाद यह महाप्रसाद (धन्य भोजन) बन जाता है।
फिर, लगभग 2-3 बजे, आगंतुकों और भक्तों को परिसर के अंदर आनंद बाजार नामक स्थान पर महाप्रसाद खरीदने के लिए मिलता है।
महाप्रसाद शानदार है और इसका एक निवाला किसी भी दिन बर्बाद नहीं होता है।
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