🙏🙏सुनु सुत उरिन मैं नाहीं। देखेउँ करि बिचार मन माहीं।।
पुनि पुनि कपिहि चितव सुरत्राता। लोचन नीर पुलक अति गाता ।। 4 ।।
हे पुत्र ! सुन, मैने मन मे विचार करके देख लिया कि मै तुझमे उऋण नही हो सकता । देवताओ के रक्षक प्रभु बार-बार हनुमान् जी को देख रहे है । नेत्रो मे प्रेमाश्रुओ का जल भरा है और शरीर अत्यंत पुलकित है ।। 4 ।।🙏🙏❤️