Discover postsExplore captivating content and diverse perspectives on our Discover page. Uncover fresh ideas and engage in meaningful conversations
#हनुमत_जन्मोत्सव_की_मंगलकामनाएं. 🙏
#कपि_से_उऋण_हम_नाही\"........
🍀🔥🍀🔥🍀🔥🍀🔥🍀🔥🍀🔥🍀🔥
रामजी लंका पर विजय प्राप्त करके आए तो, भगवान ने विभीषण जी, जामवंत जी, अंगद जी, सुग्रीव जी सब को अयोध्या से विदा किया। तो सब ने सोचा हनुमान जी को प्रभु बाद में बिदा करेंगे, लेकिन रामजी ने हनुमानजी को विदा ही नहीं किया, अब प्रजा बात बनाने लगी कि क्या बात सब गए हनुमानजी नहीं गए अयोध्या से!
अब दरबार में काना फूसी शुरू हुई कि हनुमानजी से कौन कहे जाने के लिए, तो सबसे पहले माता सीता की बारी आई कि आप ही बोलो कि हनुमानजी चले जाएं।
माता सीता बोलीं मै तो लंका में विकल पड़ी थी, मेरा तो एक एक दिन एक एक कल्प के समान बीत रहा था, वो तो हनुमानजी थे,जो प्रभु मुद्रिका लेके गए, और धीरज बंधवाया कि...!
#कछुक_दिवस_जननी_धरु_धीरा।
#कपिन्ह_सहित_अइहहिं_रघुबीरा।।
#निसिचर_मारि_तोहि_लै_जैहहिं।
#तिहुँ_पुर_नारदादि_जसु_गैहहिं॥
मै तो अपने बेटे से बिल्कुल भी नहीं बोलूंगी अयोध्या छोड़कर जाने के लिए, आप किसी और से बुलावा लो।
अब बारी आयी लखनजी की तो लक्ष्मण जी ने कहा, मै तो लंका के रणभूमि में वैसे ही मरणासन्न अवस्था में पड़ा था, पूरा रामदल विलाप कर रहा था।
#प्रभु_प्रलाप_सुनि_कान_बिकल_भए_बानर_निकर।
#आइ_गयउ_हनुमान_जिमि_करुना_महँ_बीर_रस।।
ये तो जो खड़ा है, वो हनुमानजी का लक्ष्मण है। मै कैसे बोलूं, किस मुंह से बोलूं कि हनुमानजी अयोध्या से चले जाएं!
अब बारी आयी भरतजी की, अरे! भरतजी तो इतना रोए, कि रामजी को अयोध्या से निकलवाने का कलंक तो वैसे ही लगा है मुझपे, हनुमानजी का सब मिलके और लगवा दो!
और दूसरी बात ये कि...!
#बीतें_अवधि_रहहिं_जौं_प्राना।
#अधम_कवन_जग_मोहि_समाना॥
मैंने तो नंदीग्राम में ही अपनी चिता लगा ली थी, वो तो हनुमानजी थे जिन्होंने आकर ये खबर दी कि...!
#रिपु_रन_जीति_सुजस_सुर_गावत।
#सीता_सहित_अनुज_प्रभु_आवत॥
मैं तो बिल्कुल न बोलूं हनुमानजी से अयोध्या छोड़कर चले जाओ, आप किसी और से बुलवा लो।
अब बचा कौन..? सिर्फ शत्रुहन भैया। जैसे ही सब ने उनकी तरफ देखा, तो शत्रुहन भैया बोल पड़े मैंने तो पूरी रामायण में कहीं नहीं बोला, तो आज ही क्यों बुलवा रहे हो, और वो भी हनुमानजी को अयोध्या से निकलने के लिए, जिन्होंने ने माता सीता, लखन भैया, भरत भैया सब के प्राणों को संकट से उबारा हो! किसी अच्छे काम के लिए कहते बोल भी देता। मै तो बिल्कुल भी न बोलूं।
अब बचे तो मेरे राघवेन्द्र सरकार,
माता सीता ने कहा प्रभु! आप तो तीनों लोकों ये स्वामी है, और देखती हूं आप हनुमानजी से सकुचाते है।और आप खुद भी कहते हो कि...!
#प्रति_उपकार_करौं_का_तोरा।
#सनमुख_होइ_न_सकत_मन_मोरा॥
आखिर आप के लिए क्या अदेय है प्रभु! राघवजी ने कहा देवी कर्जदार जो हूं, हनुमान जी का, इसीलिए तो
#सनमुख_होइ_न_सकत_मन_मोरा
देवी! हनुमानजी का कर्जा उतारना आसान नहीं है, इतनी सामर्थ राम में नहीं है, जो "#राम_नाम\" में है। क्योंकि कर्जा उतारना भी तो बराबरी का ही पड़ेगा न...! यदि सुनना चाहती हो तो सुनो हनुमानजी का कर्जा कैसे उतारा जा सकता है।
#पहले_हनुमान_विवाह_करें,
#लंकेश_हरें_इनकी_जब_नारी।
#मुदरी_लै_रघुनाथ_चलै,#निज_पौरुष_लांघि_अगम्य_जे_वारी।
#आयि_कहें_सुधि_सोच_हरें_तन_से, #मन_से_होई_जाएं_उपकारी।
#तब_रघुनाथ_चुकायि_सकें, #ऐसी_हनुमान_की_दिव्य_उधारी।।
देवी! इतना आसान नहीं है, हनुमान जी का कर्जा चुकाना। मैंने ऐसे ही नहीं कहा था कि...!
"#सुनु_सुत_तोहि_उरिन_मैं_नाहीं\"
मैंने बहुत सोच विचार कर कहा था। लेकिन यदि आप कहती हो तो कल राजसभा में बोलूंगा कि हनुमानजी भी कुछ मांग लें।
दूसरे दिन राजसभा में सब एकत्र हुए,सब बड़े उत्सुक थे कि हनुमानजी क्या मांगेंगे, और रामजी क्या देंगे।
राघवजी ने कहा! हनुमान सब लोगों ने मेरी बहुत सहायता की और मैंने, सब को कोई न कोई पद दे दिया। विभीषण और सुग्रीव को क्रमशः लंका और किष्कन्धा का राजपद,अंगद को युवराज पद। तो तुम भी अपनी इच्छा बताओ...?
हनुमानजी बोले! प्रभु आप ने जितने नाम गिनाए, उन सब को एक एक पद मिला है, और आप कहते हो...!
"#तैं_मम_प्रिय_लछिमन_ते_दूना\"
तो फिर यदि मै दो पद मांगू तो..?
सब लोग सोचने लगे बात तो हनुमानजी भी ठीक ही कह रहे हैं। रामजी ने कहा! ठीक है, मांग लो, सब लोग बहुत खुश हुए कि आज हनुमानजी का कर्जा चुकता हुआ।
हनुमानजी ने कहा! प्रभु जो पद आप ने सबको दिए हैं, उनके पद में राजमद हो सकता है, तो मुझे उस तरह के पद नहीं चाहिए, जिसमे राजमद की शंका हो, तो फिर...! आप को कौन सा पद चाहिए...?
हनुमानजी ने रामजी के दोनों चरण पकड़ लिए, प्रभु ..! हनुमान को तो बस यही दो पद चाहिए।
#हनुमत_सम_नहीं_कोउ_बड़भागी।
#नहीं_कोउ_रामचरण_अनुरागी।।
जानकी जी की तरफ देखकर मुस्कुराते हुए राघवजी बोले, लो उतर गया हनुमानजी का कर्जा!
और अभी तक जिसको बोलना था, सब बोल चुके है, अब जो मै बोलता हूं उसे सब सुनो, रामजी भरत भैया की तरफ देखते हुए बोले...!
"हे! भरत भैया' कपि से उऋण हम नाही"........
हम चारों भाई चाहे जितनी बार जन्म लेे लें, हनुमानजी से उऋण नही हो सकते।
इति 🙏
🔥#जय_हनुमान_ज्ञानगुन_सागर?
🌼तुलसीदास जी हनुमान चालीसा लिखते थे लिखे पत्रों को रात में संभाल कर रख देते थे सुबह उठकर देखते तो उन में लिखा हुआ कोई मिटा जाता था।
तुलसीदास जी ने हनुमान जी की आराधना की , हनुमान जी प्रकट हुए तुलसीदास ने बताया कि मैं हनुमान चालीसा लिखता हूं तो रात में कोई मिटा जाता है हनुमान जी बोले वह तो मैं ही मिटा जाता हूं।
हनुमान जी ने कहा अगर प्रशंसा ही लिखनी है तो मेरे प्रभु श्री राम की लिखो , मेरी नहीं तुलसीदास जी को उस समय अयोध्याकांड का प्रथम दोहा सोच में आया उसे उन्होंने हनुमान चालीसा के प्रारंभ में लिख दिया
"श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मन मुकुरु सुधारि।
वरनउं रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि॥
तो हनुमान जी बोले मैं तो रघुवर नहीं हूं तुलसीदास जी ने कहा आप और प्रभु श्री राम तो एक ही प्रसाद ग्रहण करने के उपरांत अवतरित हुए हैं इसलिए आप भी रघुवर ही है।
तुलसीदास ने याद दिलाया कि ब्रह्म लोक में सुवर्चला नाम की एक अप्सरा रहती थी जो एक बार ब्रह्मा जी पर मोहित हो गई थी जिससे क्रुद्ध होकर ब्रह्माजी ने उसे गिद्धि होने का श्राप दिया था वह रोने लगी तो ब्रह्मा जी को दया आ गई उन्होंने कहा राजा दशरथ के पुत्र यज्ञ में हवि के रूप में जो प्रसाद तीनों रानियों में वितरित होगा तू कैकेई का भाग लेकर उड़ जाएगी मां अंजना भगवान शिव से हाथ फैला कर पुत्र कामना कर रही थी उन्ही हाथों में वह प्रसाद गिरा दिया था जिससे आप अवतरित हुए प्रभु श्री राम ने तो स्वयं आपको अपना भाई कहा है।
"तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई
तुलसीदास ने एक और तर्क दिया कि जब आप मां जानकी की खोज में अशोक वाटिका गए थे तो मां जानकी ने आपको अपना पुत्र बनाया था।
"अजर अमर गुननिधि सुत होहू।
करहुं बहुत रघुनायक छोहू॥
जब मां जानकी की खोज करके वापस आए थे तो प्रभु श्री राम ने स्वयं आपको अपना पुत्र बना लिया था।
"सुनु सुत तोहि उरिन मैं नाहीं।
देखेउं करि विचार मन माहीं॥
इसलिए आप भी रघुवर हुए तुलसीदास का यह तर्क सुनकर हनुमानजी अंतर्ध्यान हो।
संसार में बहुधा यह बात कही और सुनी जाती है कि व्यक्ति को ज्यादा सीधा और सरल नहीं होना चाहिए सीधे और सरल व्यक्ति का हर कोई फायदा उठाता है ,यह भी लोकोक्ति है कि टेढे वृक्ष को कोई हाथ भी नहीं लगाता सीधा वृक्ष ही काटा जाता है।
दरअसल टेढ़े लोगों से दुनिया दूर भागती हैं वहीँ सीधों को परेशान किया जाता है।तो क्या फिर सहजता और सरलता का त्याग कर टेढ़ा हुआ जाए नहीं कदापि नहीं ; पर यह बात जरूर समझ लेना दुनिया में जितना भी सृजन हुआ है वह टेढ़े लोगों से नहीं सीधों से ही हुआ है।
कोई सीधा पेड़ कटता है तो लकड़ी भी भवन निर्माण या भवन श्रृंगार में ही काम आती है।
मंदिर में भी जिस शिला में से प्रभु का रूप प्रगट होता है वह टेढ़ी नहीं कोई सीधी शिला ही होती है।
जिस बाँसुरी की मधुर स्वर को सुनकर हमें आंनद मिलता है वो भी किसी सीधे बांस के पेड़ से ही बनती है। सीधे लोग ही गोविंद के प्रिय होते हैं !
रोज पपीता खाने से होंगे ये बड़े फायदे, बीमारियां भी रहेंगी दूर :-
पपीता एक स्वादिष्ट फल है जो आपके पाचन तंत्र के लिए काफी अच्छा होता है. पपीते में भरपूर मात्रा में न्यूट्रिएंट्स होते हैं जैसे फाइबर, फोलेट और विटामिन आदि. ये आपके लिवर को डिटॉक्स करता है और हृदय रोग, कैंसर जैसी बीमारियों के जोखिम को कम करता है. इसके अलावा ये डायबिटीज पीड़ित लोगों में ब्लड शुगर को नियंत्रित करता है. ये फल वजन कम करने में भी मदद करता है और आज हम बताएंगे कि पपीता खाने से पेट की चर्बी कैसे कम होती है.
#हाई_फाइबर_और_पानी_की_मात्रा :-
कई अध्ययनों से पता चला है कि अधिक फाइबर खाने से तेजी से वजन कम होता है. पपीता में फाइबर और पानी की मात्रा ज्यादा होती है. ये दोनों ही वजन घटाने के लिए फायदेमंद होते हैं. फाइबर से आप देर तक पेट भरा हुआ महसूस करते हैं. इस वजह से भूख भी कम लगती है और आप ज्यादा कैलोरी का सेवन भी नहीं कर पाते हैं.
#पपाइन (Papain) कंटेंट:-
पपीते में पपाइन होता है, जो एक पाचक एंजाइम है. ये प्रोटीन को पचाने में मदद करता है और आंतों को साफ करता है. एक अच्छा पाचन तंत्र शरीर के मेटाबोलिज्म को बढ़ाता है, जिससे फैट कम होता है.
#विटामिन_सी :-
पपीते में बड़ी मात्रा में विटामिन सी होता है, जो वजन घटाने से लेकर और भी कई चीज़ों के लिए फायदेमंद है. कई अध्ययनों में पता चला है कि जो लोग विटामिन सी का सेवन करते हैं वे उन लोगों की तुलना में व्यायाम के दौरान 30% अधिक फैट ऑक्सीकरण कर पाते हैं जो विटामिन सी का कम मात्रा में सेवन करते हैं. ये हृदय रोग और कैंसर जैसी बीमारियों का जोखिम भी कम करता है.
इसके अलावा पपीता एंटीऑक्सिडेंट बीटा-कैरोटीन का भी एक अच्छा सोर्स है, जो शरीर से टॉक्सिन को निकालने में मदद करता है. टॉक्सिन के कम होने से मेटाबोलिज्म बढ़ता है और ये वजन कम करने में मदद करता है. पपीते में मौजूद एंटीऑक्सीडेंट आपके इम्यून सिस्टम को भी बूस्ट करने में मदद करते हैं. इसलिए आप पपीते को अपनी डाइट में दैनिक आहार के तौर पर जोड़ सकते हैं और वजन कम करने की कोशिश कर रहे लोगों के लिए ये एक अच्छा विकल्प है.
🌺अतुलितबलधामं हैमशैलाभदेहमं दनुजवनकृषानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम्!सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं रघुपति प्रियभक्तं वातजातं नमामि!
🔥☘️ #श्रीहनुमान_मन्त्र?☘️
मनोजवंमारुततुल्यवेगं,जितेन्द्रियं बुद्धिमतांवरिष्ठम् |वातात्मजंवानरयुथमुख्यं,श्रीरामदुतंशरणमप्रपद्धे" ||
🍀🔥🍀🔥🍀🔥🍀🔥🍀🔥🍀🔥
⛳ #भगवत्कृपा⛳
तथा न ते माधव तावका: क्वचिद्भ्रश्यन्ति मार्गात्त्वयि बद्धसौहृदा:। त्वयाभिगुप्ता विचरन्ति निर्भया विनायकानीकपमूर्धसु प्रभो।।
#भावार्थ:- हे माधव! और आपके भक्त आपके प्रति अटूट प्रेम के कारण आप के द्वारा रक्षित भयरहित होकर विघ्नों की सेना के स्वामियों के भी मस्तक पर चरण रखकर विचरण करते हैं।
🔥#आज_मंगलवार_का_दिन_मंगलमय_हो?
🍀#जय_श्री_राम?
☘️ #जय_वीर_हनुमान☘️
🌹#सुबह_की_राम_राम?
मंदिर की दानपेटी में कंडोम रखा, घर की दीवार पर सिर मार-मार मरा नवाज : रहीम-तौफीक गुनाह कबूलने भगवान की शरण में पहुँचे
कर्नाटक के मंगलुरू में स्वामी कोरगज्जा को लेकर स्थानीयों के मन में असीम आस्था है, लोग उन्हें भगवान शिव का अवतार मानते हैं
पिछले दिनों कोरगज्जा के मंदिर में कई अभद्र घटनाएँ हुईं, मंदिर की दानपेटी में कंडोम तक डाल दिया गया
ऐसे घृणित वाकये के बावजूद पुलिस आरोपितों को ढूँढने में असमर्थ थी
निराश श्रद्धालु लगातार कोरगज्जा भगवान से ऐसे विधर्मियों को सजा देने के लिए प्रार्थना कर रहे थे, कुछ दिन पहले भगवान ने अपने श्रद्धालुओं की सुनी और ऐसी स्थिति पैदा हो गई कि विधर्मी स्वयं मंदिर में आकर माफी माँगने लगे
ये बिलकुल वास्तविक घटना है, इसी साल जनवरी में मंदिर की दानपेटी से एक कंडोम निकला था, जिसके बाद से वहाँ हड़कंप था लेकिन तीन दिन पहले अचानक दूसरे समुदाय के दो लड़के मंदिर में आए और पुजारी के सामने माफी के लिए गिड़गिड़ाने लगे
पहले पुजारी को लगा कि वह मजाक कर रहे हैं लेकिन नहीं, वह गंभीर थे
उन दोनों ने पुजारी को बताया कि अपने साथी नवाज के साथ मिल कर उन्होंने ही कुछ दिन पहले मंदिर की दानपेटी में कंडोम डाला था
नवाज माफी माँगने के लिए जिंदा नहीं था
दानपेटी में कंडोम डालने के बाद उसे एक दिन खून की उल्टियाँ हुईं और फिर पेचिश से उसके मल से खून निकला
अंत में वह अपने घर की दीवारों पर सिर मारते हुए मर गया
मरते समय उसने उन्हें बताया कि कोरगज्जा उन सब पर नाराज हैं
सनातन कोई कपोल कल्पना नहीं है, विधर्मियो को उनके किये की सजा स्वयं मिल गयी
भगवान के घर देर है पर अंधेर नहीं।
#श्रीकृष्णकी_अद्भुत_लीला_जिसमे_मानव_मात्र_को_सिखाया_मृत्यु_का_श्रेष्ठतम_आदर्श!
🍀🌴🍀🌴🍀🌴🍀🌴🍀🌴🍀🌴🍀
वसुदेवसुतं देवं कंस चाणूर मर्दनम् ।
देवकी परमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्।।
भगवान श्रीकृष्ण जगद्गुरु हैं । उनकी प्रत्येक लीला मनुष्य को कुछ-न-कुछ अवश्य सिखाती है । भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी अवतारलीला का संवरण कर गोलोक जाते हुए भी मनुष्य को यह सिखाया कि मृत्यु का वरण (स्वागत) किस तरह करना चाहिए।
भगवान श्रीकृष्ण के लीला-संवरण का वह अभूतपूर्व दृश्य एक ऐसे महान और विलक्षण आदर्श को संसार के सामने प्रस्तुत करता है, जो न अब तक कभी किसी ने देखा और न सुना । श्रीमद्भागवत के ग्यारहवें स्कन्ध के ३०वें अध्याय में इसका वर्णन मिलता है।
असल में भगवान का प्रकट होना और जाना नाटक के नट की तरह है । जो गुरु-पुत्र को यमपुरी से सशरीर लौटा सकते थे, देवकी के मरे हुए बेटों को ला सकते थे, स्वयं परीक्षित को गर्भ में ब्रह्मास्त्र से बचा सकते थे, वे क्या स्वयं जीवित नहीं रह सकते थे ? अवश्य रह सकते थे; परंतु उन्होंने यह विचार किया कि अंत में मानव जाति के लिए एक आदर्श स्थापित करना चाहिए।
भगवान ने सोचा कि अगर मैंने शरीर रख लिया तो दुनिया यही कहेगी कि ज्ञानी अमर होता है, मरता नहीं; इसलिए मर्त्यलोक में मानव शरीर की गति प्रदर्शित करने के लिए भगवान ने अपना शरीर पृथ्वीलोक में नहीं रखा।
अपने अग्रज बलराम जी के परम-पद में लीन हो जाने के बाद भगवान श्रीकृष्ण चतुर्भुज रूप धारण कर सारी दिशाओं में छिटकती हुई अपनी दिव्य ज्योति को समेट कर निपट अकेले नदी तट पर एक पीपल की जड़ पर सिर टेक कर लेट गए । उस समय उनके नवीन मेघ के समान श्यामवर्ण शरीर से सुवर्ण की-सी ज्योति निकल रही थी । वक्ष:स्थल पर श्रीवत्स का चिह्न था । वे धोती और चादर—दो रेशमी वस्त्र धारण किए हुए थे । उनके मुख पर सुंदर मुस्कान छाई हुई थी।
कमलदल के समान सुंदर नेत्र थे और कानों में मकराकृति कुण्डल झिलमिला रहे थे । शरीर पर यथास्थान मुकुट, यज्ञोपवीत, हार, कुण्डल, कड़े, बाजूबंद, नूपूर, करधनी, वनमाला, कौस्तुभमणि आदि सुशोभित हो रहे थे । शंख, चक्र, गदा और पद्म आदि आयुध मूर्तिमान होकर सेवा में उपस्थित थे । उस समय भगवान अपने बायें चरणारविंद को दाहिनी जंघा पर रखे हुए थे । उनके चरणारविन्द का तलवा लाल-लाल चमक रहा था।
‘जरा’ व्याध ने दूर से छाती पर मुड़े पैर को देखा और उसे मृग समझ कर तीर चला दिया, जो आकर भगवान के तलवे में लगा और रक्त की धारा फूट पड़ी । व्याध जब पास आया तो उसने भगवान का चतुर्भुज रूप देखा तो उसे अपनी भूल का अहसास हुआ।
इस दुर्घटना के लिए आंसू बहाते हुए चीत्कार करता हुआ वह भगवान के चरणों में दण्डवत् गिर पड़ा । वह अपने-आप को शाप देते हुए निकृष्टतम महापापी घोषित करने लगा।
उसने कहा—‘मधुसूदन ! मुझसे अनजान में यह अपराध हो गया, मैं महापापी हूँ । आप परम यशस्वी और निष्पाप हैं । कृपापूर्वक मुझे क्षमा कीजिए । हे विष्णो ! जिन आपके स्मरण मात्र से मनुष्यों का अज्ञानान्धकार नष्ट हो जाता है, हाय ! उन्हीं आपका मैंने अनिष्ट कर दिया ।’
अमर्षरहित भगवान ने उठ कर तुरंत व्याध को छाती से लगा लिया और उसे ऐसे सांन्त्वना देने लगे, जैसे उसने कोई अपराध ही न किया हो ।
किसने सिखाया श्याम, तुम्हें मीठा बोलना।
मीठी तुम्हारी वाणी, चितवन का चोरना।।
जामा तेरो लाख का है, पटका करोरना ।
शीश मुकुट लकुट हाथ, लट का मरोरना।।
भगवान ने कहा—‘अरे ! उठ, उठ, तू डर मत ! यह तो तूने मेरे मन का काम किया है—मेरी इच्छा की पूर्ति की है । मैंने