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योग्यता और श्रेष्ठ निर्णय भी दुर्भाग्यों के सामने ठहरते नहीं।
कैप्टन एडवर्ड स्मिथ 40 वर्ष तक कैप्टन रहे। उनको ब्रिटेन का सबसे योग्य कैप्टन माना जाता था। अस्थिर जलायनो को भी अटलांटिक महासागर में वह चला देते थे।
ब्रिटेन के राजा एडवर्ड सप्तम ने उन्हें परिवहन पदक से सम्मानित किया था।
सबसे विशालकाय , सुरक्षित जलयान का निर्माण हुआ। कहा गया कि यह कभी भी डूब नहीं सकता।
टाइटेनिक उस समय कि सबसे मजबूत , सुरक्षित, सुन्दर जलयान था। इसकी पहली यात्रा में कैप्टन बनने का सौभाग्य कैप्टन एडवर्ड स्मिथ को दिया गया।
समाचार पत्रों में लेख छपे की इतने सुरक्षित जलयान के लिये एडवर्ड को क्यों कैप्टन बनाया जा रहा है। वह तो विषम परिस्थितियों में जलायनो को चलाते है।
यह कहा गया कि एडवर्ड स्मिथ को सम्मान दिया जा रहा है।
अपनी यात्रा में टाइटेनिक एक हिमखंड से टकराकर समुद्र में डूब गया। डूबते जलयान पर उनके सहयोगी लाइफ सेविंग जैकेट लेकर आये , उन्होंने विन्रमता से अस्वीकार कर दिया।
आप लोग अच्छा कार्य किये है, अब स्वयं की रक्षा करिये।
यह कहकर कैप्टन एडवर्ड स्मिथ अपने चैंबर में चले गये।
टाइटेनिक साथ समुद्र में डूब गये।
प्रतिभा , बहुधा ऐसे भी दम तोड़े देती है। हमारे सभी निर्णय एक उज्जवल भविष्य के लिये ठीक होते है।
लेकिन दुर्भाग्य इसे गलत साबित कर देता है। यही सयोंग का वियोग है।
सम्पूर्ण संसार में कोई भी योद्धा नहीं था। जो अर्जुन कि गांडीव के सामने टिक सकता था। उनके पास दिव्यास्त्र थे , शिव का पासुपात्र था।
उस अर्जुन से भगवान कहते है -
तुम निमित्त मात्र हो
करने , कराने वाला तो मैं हूँ।
निमित्त मात्रं भव सव्यसाचिन।

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द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद यूरोप का हाल वही है जैसे महाभारत युद्ध के भारत का हुआ था।
योद्धा कम हो गये
बुद्धजीवी ज्यादा।
रूस का एक बाल भी उखाड़ नहीं पायेंगें।
हमारा तो सौभाग्य था बीच में विक्रमादित्य जैसे महान राजा आ गये तो भारत बच गया। नहीं तो भांटो , भिक्षुओं से देश भर गया था।
चक्रवर्ती महाराज विक्रमादित्य को इसलिए भगवान राम के समान ही महान प्रतापी शासक कहा जाता है।

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शीतयुद्ध के समय से अमेरिका ने बुद्धजीवों कि फ़ौज खड़ी कि है।
जो मीडिया , यूनिवर्सिटी , फ़िल्म आदि में भरे पड़े है।
अन्य देशों में उन्होंने पुरस्कार देकर , NGO, महत्वाकांक्षी नेताओं के माध्यम से अपना नेरेटिव बनाने के लिये इस्तेमाल कर किया। इसके लिये अकूत धन का प्रयोग होता है।
पिछले कई वर्षों से भारत के विरुद्ध भी यह अभियान चलाया गया है।
हिंदुत्व ! को केंद्र में रखकर यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर सम्मेलन करते है। अल्पसंख्यको को मुद्दा बनाकर एक अस्थिर , कट्टर राष्ट्र के रूप स्थापित करने का प्रयास होते रहते है।
अमेरिका से तीन गुनी जनसंख्या वाले भारत में इतने दंगें नहीं होते जितने अमेरिका में बंदूकधारी लोगों को मार देते है।
विदेश में रहने वाले खालिस्तानी , कश्मीरी उनके लिये उपयोगी होते है।
BBC , अलजजीरा , न्यूयॉर्क टाइम्स । भारत में NDTV , प्रिंट ,वायर जैसे पोर्टल राष्ट्र को बदनाम करते है।
नपुंसक हो चुका यूरोप , अमेरिका का पिछलग्गू है। ब्रिटेन की अस्मिता खत्म हो चुकी है वह बोलेगा जो अमेरिका कहता है।
राष्ट्र के विभाजन के समय यह धारणा थी कि पाकिस्तान एक दिन भारत के सामने नतमस्तक होगा। 1965 के युद्ध के पूर्व तक भारत पाकिस्तान की सीमाएं खुली हुई थी।
लेकिन पाकिस्तान की भौगोलिक स्थिति का लाभ लेने के लिये। अमेरिका ने उसे मिलिट्राइज़ किया। ट्रम्प ने स्प्ष्ट शब्दो मे कहा था , अमेरिका ने 800 अरब डॉलर पाकिस्तान को दिये।
यह धन , भारत के विदेशी मुद्रा भंडार से भी अधिक है।
अपने हित के लिये अमेरिका , विश्व को अस्थिर करता रहा है। एक समय यूक्रेन कि 70 % जनता रूस कि समर्थक थी। यूक्रेन कभी सोवियत संघ का आर्थिक केंद्र था।
लेकिन पिछले 10 -15वर्षों से अमेरिका , यूरोप के बुद्धजीवी , मीडिया वहाँ की जनता को रूस विरोधी बना दिये।
उपर से एक लँगूर राष्ट्रपति का चुनाव वहाँ यूक्रेन कि जनता ने किया।
ऐसा हम भी करते है।
उत्तरप्रदेश में हर व्यक्ति जानता है कि सुरक्षा , विकास में आज प्रदेश कितना आगे है।
लेकिन लोकतंत्र में एक ही परिवार के 34 लोग ब्लाक प्रमुख से लेकर मुख्यमंत्री तक के पद में रहे है। वह चुनौती दे रहे है।
मुद्दे की बात यह है कि यूक्रेन पर हमला रसिया ने नहीं।पुतिन ने किया है। कोई अन्य राष्ट्रपति होता तो सम्भवतः ऐसा बल प्रयोग न कर पाता।
यहाँ यूक्रेन और रूस में जो अंतर है। वह नेतृत्व का अंतर है।
राष्ट्राध्यक्ष से लेकर सामान्य व्यक्ति तक यदि दूसरों के इशारे पर काम करने लगेगा तो कभी भी शुभ नहीं हो सकता।
इस पूरे घटनाक्रम से हमारे लिये यही है। हमारे विचारों का केंद्र राष्ट्र होना चाहिये।
राष्ट्र ही तुला है ! राजनीति , धर्म सभी के लिये।
आने वाली अंनत पीढ़ियां बंकरों , शरणार्थी शिविरों में पनाह न ले, इसके लिये आवश्यक है कि अपने विचारों को राष्ट्र की तुला पर तौलते रहे।।

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1) यूक्रेन ने कश्मीर मुद्दे पर UNO में भारत के खिलाफ वोट दिया था। 🚩
2) यूक्रेन ने परमाणु परीक्षण मुद्दे पर UNO में भारत के खिलाफ वोट दिया था। 🚩
3) यूक्रेन ने UNO की सिक्योरिटी कौंसिल में भारत की स्थायी सदस्यता के खिलाफ वोट किया था। 🚩
4) यूक्रेन पाकिस्तान को हथियार सप्पलाई करता है। 🚩
5) यूक्रेन अल कायदा को समर्थन देता है। 🚩
युक्रेन से भारतीय होने के नाते मुझे कोई भी सहानुभूति नही है।और उसका कारण भी है। 🚩
युक्रेन ने भारत का कभी भी साथ नही दिया।जब हमारे उपर प्रतिबन्ध लगा तो UNO मे उसने प्रतिबन्ध के पक्ष मे वोट किया। 🚩

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जो जिस भाषा मे समझेगा उसे उसी भाषा मे समझाया जाएगा,
पूरे NATO की गर्मी शांत कर दी जाएगी। 🤣🤣
- बाबा बलदेवराम पुनिया (रसिया वाले)

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