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बुल्ले शाह गुलाल
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गुलाल शिष्य थे बुल्ला शाह के। यह तो कोई बात खास नहीं: बुल्ला शाह के बहुत शिष्य थे। और हजारों सदगुरू हुए है और उनके हजारों-लाखों शिष्य हुए है। इसमें कुछ अभूतपूर्व नहीं। अभूतपूर्व ऐसा है कि गुलाल एक छोटे-मोटे जमिंदार थे। और उनका एक चरवाहा था। उसकी आंखों में खुमार था। उसके उठने-बैठने में एक मस्ती थीं। कहीं रखता था पैर, कहीं पड़ते थे पैर। और सदा मगन रहता था। कुछ था नहीं उसके पास मगन होने को—चरवाहा था, बस दो जून रोटी मिल जाती थी। उतना ही काफी था। सुबह से निकल जाता खेत में काम करन, जो भी काम हो,रात थका मांदा लौटता; लेकिन कभी किसी ने उसे अपने आनंद को खोते नहीं देखा। एक आनंद की आभा उसे घेरे रहती थी। उसके बाबत खबरें आती थी—गुलाल के पास, मालिक के पास—कि यह चरवाहा कुछ ज्यादा काम करता नहीं; क्योंकि उसे खेत में नाचते देखा जाता था। मस्त डोलते मगन आसमान में उड़ते पक्षियों की तरह चहकते देखा था। काम ये क्या खाक करेगा। तुम भेजते हो गाएं चराने गाए एक तरफ चरती रहती है, यह झाड़ पर बैठकर बांसुरी बजाता है। हां, बांसुरी गजब की बजाता है। यह सच है, मगर बांसुरी बजाने से और गाय चराने से क्या लेना-देना है। तुम तो भेजते हो कि खेत पर यह काम करे और हमने इसे खेत में काम करते तो कभी नहीं देखा, झाड़ के नीचे आंखे बंद किये जरूर देखा है। यह भी सच है कि जब वह झाड़ के नीचे आंखे बंद करके बैठता है तो इसके पास से गुजर जाने में भी सुख की लहर छू जाती है। मगर उससे खेत पर काम करने का क्या संबंध है।
बहुत शिकायतें आने लगीं। और गुलाल मालिक थे। मालिक का दंभ और अंहकार। तो कभी उन्होंने बुलाकी राम को गौर से तो देखा नहीं। फुर्सत भी न थी; और भी नौकर चाकर होगें, और कोई नौकर-चाकरों को कोई गोर से देखता है भला। नौकर चाकरों को आदमी भी मानता है। तुम अपने कमरे में बैठे हो, अख़बार पढ रहे हो, नौकर आकर गुजर जाता है, तुम ध्यान भी देते हो। नौकर से तुमने कभी नमस्कार भी की हे। नौकर की गिनती तुम आदमी में थोड़ी की करते हो। नौकर से कभी तुमने कहा है आओ बैठो, कि दो क्षण बातें करें, यह तो तुम्हारे अहंकार के बिल्कुल विपरीत होगा।
खबरें आती थीं, मगर गुलाल ने कभी ध्यान दिया ही नहीं था। उस दिन खबर आयी सुबह-ही-सुबह कि तुमने भेजा है नौकर को कि खेत में बुआई शुरू करे, समय बीता जाता है, बुआई का, मगर बैल हल को लिए एक तरफ खड़े है। और बुलाकी राम झाड़ के नीचे आंखे बंद किए डोल रहा है।
एक सीमा होती है। मालिक सुनते-सुनते थक गया था। कहा: मैं आज जाता हूं ओर देखता हूं। जाकर देखा तो बात सच थीं। बैल हल को लिए खड़े थे एक किनारे—कोई हांकने वाला ही नहीं था—और बुलाकी राम वृक्ष के नीचे आँख बंद किए डोल रहे थे। मालिक को क्रोध आ गया। देखा—यह हरामखोर, काहिल, आलसी….। लोग ठीक कहते है। उसके पीछे पहुंचे और जाकर जोर से एक लात उसे मार दी। बुलाकी राम लात खाकर गिर पडा। आंखे खोली। प्रेम और आनंद के अश्रु बह रहे थे। बोला आपने मालिक से: मेरे मालिक, किन शब्दों में धन्यवाद दूँ? कैसे आभार करूं, क्योंकि जब आपने लात मारी तब में ध्यान कर रहा था। जरा से बाधा रह गई थी। छूट ही नहीं रही थी। जब भी ध्यान करता वो अड़चन बन सामने खड़ी हो जाती थी। आपने लात मारी वह बाधा मिट गई। मेरी बाधा थी जब भी मस्त होता ध्यान में मगन होता मस्त होता, तो गरीब आदमी हूं, साधु-संतों को भोजन करवाने के लिए निमंत्रण करना चाहता था। लेकिन में तो गरीब आदमी हूं, सो कहां से भोजन करवाऊंगा, तो बस ध्यान में जब मस्त होता भंडारा करता हूं, मन ही मन मैं सारे साधु-संतों को बुला लाता हूं कि आओ सब आ जाओ दुर देश से आ जाओ। और पंक्तियों पर पंक्तियां साधुओं की बैठी थी और क्या-क्या भोजन बनाए थे। मालिक परोस रहा था, मस्त हो रहा था। इतने साधु-संत आये है, एक से एक महिमा वाले है। और तभी आपने मार दी लात। बस दही परोसने को रह गया था; आपकी लात लगी, हाथ से हाँड़ी छूट गई, दही बिखर गई,हांडी फुट गई। मगर गजब कर दिया मेरे मालिक, मैंने कभी सोचा भी न था कि आपको ऐसा कला आती है। हाँड़ी क्या फूटी, मानसी-भंडारा विलुप्त हो गया, साधु-संत नदारद हो गए—कल्पना ही थी सब, कल्पना का ही जाल था—और अचानक मैं उस जाल से जग गया, बस साक्षी मात्र रह गया।
आँख से आंसू बह रहे है। आनंद के और प्रेम के शरीर रोमांचित है हर्ष लाश उन्माद से, एक प्रकाश झर रहा है। बुलाकी राम की यह दशा पहली बार गुलाल ने देखी। बुलाकी राम ही नहीं जागा साक्षी में, अपनी आंधी में गुलाल को भी बहा ले गया। आँख से जैसे एक पर्दा उठ गया। पहली बार देखा कि यह कोई चरवाहा नहीं;मैं कहां-कहां, किन-किन दरवाज़ों पर सद् गुरूओं को खोजता रहा,सदगुरू मेरे घर में मौजूद था। मेरी गायों को चरा रहा था। मेरे खेतों को सम्हाल रहा था। गिर पड़े पैरो में; बुलाकी राम, बुलाकी राम न रहे—बुल्ला शाह हो गए। पहली दफा गुलाल ने उन्हें संबोधित किया: बुल्ला साहिब। मेरे मालिक, मेरे प्रभु, साहब का अर्थ: प्रभु। कहां थे नौकर, कहां हो गए शाह, शाहों के शाह।
कहते है बहुत फकीर हुए है, लेकिन बुल्ला शाह का कोई मुकाबला नहीं। और यह घटना बड़ी अनूठी है। अनूठी इसलिए है कि युगपत घटी। सद्गुरू और शिष्य का जन्म एक साथ हुआ। सद्गुरू का जन्म भी उसी वक्त हुआ। उसी सुबह; क्योंकि वह जो आखिरी अड़चन थी, वह मिटी। इसलिए भी अद्भुत है। वह जो आखरी अड़चन है वह शिष्य द्वारा मिटी। हालांकि गुलाल ने कुछ जानकर नहीं मिटायी थी। आकस्मिात था, मगर निमित तो बने शिष्य ने सदगुरू की आखरी अड़चन मिटाई। इधर गुरु का जन्म हुआ, इधर गुरु का आविर्भाव हुआ, उधर शिष्य के जीवन में क्रांति हो गयी। बुल्ला शाह को कंधे पर लेकर लौटे गुलाल। वह जो लात मारी थी। जीवन भर पश्चाताप किया, जीवन भर पैर दबाते रहे।
बुल्ला शाह कहते मेरे पैर दुखते नहीं है, क्यों दबाते हो? वे कहते: वह जो लात मारी थी…..।
यद्यपि महाभारत जैसा सुंदर धारावाहिक अब नहीं बन सकता है। बीआर चोपड़ा को व्यास जैसी उपाधि दी जाती है। लेकिन कुछ जगहों पर वह ऐसे कथानकों का सहारा लिये, जो मूल महाभारत में नहीं है।
वेदव्यास की #मूल_महाभारत के
प्रमुख पात्रों में सबसे दुर्बल कर्ण हैं।
सबसे मजबूत पात्र द्रौपदी हैं।
वेदव्यास की महाभारत में
उन्होंने कभी नहीं कहा कि, अंधे का पुत्र अंधा होता है।
लेकिन महाभारत सीरियल में
इसके उलट दिखा दिया गया।
कहावतें, मुहावरे, चित्रण समय के साथ कैसे किसी को नायक, किसी खलनायक बना देते हैं।
उस काल में लोगों ने द्रौपदी के विद्रोह, संघर्ष, ज्ञान को जानते थे। तभी तो उन्हें सती नारी कहा गया।
उनकी विद्वता से समझ सकते हैं।
प्राचीन भारत की नारी कितनी शक्तिशाली थी।
चीरहरण के समय हस्तिनापुर की सभा में बड़े प्रसिद्ध विद्वान, विधिधर्मज्ञ, योद्धा बैठे थे।
द्रोपदी ने प्रश्नों की बौछार कर दी।
सभी निस्तेज, निरुत्तर होकर सिर झुका लिये।
उन्होंने भीष्म से पूछा आप तो बृहस्पति, भार्गव के शिष्य हैं। बतायें क्या स्त्री वस्तु है, पदार्थ है, जिसका उपभोग करके फेंक दिया जाय।
उन्होंने विदुर से पूछा क्या स्त्री स्वंत्रत है ?
या दूसरों की इच्छा से चलने वाली कठपुतली है।
धर्म की दृष्टि में पुरुष, स्त्री से कैसे अधिकार संपन्न है।
द्रोपदी ने विचारकों, धर्मज्ञ , तत्वज्ञानियों को आत्मग्लानि में डाल दिया।
द्रौपदी, अपने अपमान से निकल गई, लेकिन वह लोग अपनी आत्मग्लानि से नहीं निकल सके।
द्रौपदी के वाक्य बड़े गम्भीर थे -
जिस राष्ट्र में शक्ति पूज्यनीय हो, उसी राष्ट्र में नारी का ऐसा अपमान हो रहा है। इस अपराध के लिये, आप सभी को धर्म कभी क्षमा नहीं कर सकता।।
अंतराष्ट्रीय अर्थशास्त्री, भारत को चीन से तुलना करके बात करते है।
ऐसी किसी तुलना कि आवश्यकता नहीं है। चीन 25 साल पहले उदारीकरण लाया , हम 25 वर्ष बाद। अभी किसान बिल के साथ क्या हुआ! वह देख सकते हैं। लोकतंत्र के साथ चलना कठिन होता है।
लेकिन क्या भारत अपना वैभव पा सकता है।
बिल्कुल पा सकता है। यह कोई स्वप्न नहीं है। हमें विकास को तकनीकी के साथ जोड़ना होगा। दूरदर्शी नेतृत्व हमारे साथ हो।
पिछले 5 -6 वर्षों में भारत में एक चमत्कार हुआ है। जिसकी चर्चा हर आर्थिक फोरम पर हुई है।
Digitisation of money.
यह एक ऐसी घटना है। जो इसका उदाहरण है कि असंभव को संभव कैसे बनाया जाता है।
जिस देश में 80 % जनता के पास बैंक खाते न हो, वहाँ तो यह और भी असंभव है। यह यात्रा धरातल से उठकर एवरेस्ट तक पहुँचती है।
प्रधानमंत्री जनधन योजना लेकर आये जँहा जीरो बैलेंस पर खाते खोले गये। पहले ही वर्ष में 7 करोड़ लोगों ने खाते खुलवाये।
पहले भारतीय बाजार अमेरिकन कम्पनी मास्टर कार्ड, वीसा का अधिपत्य था।
RBI ने UPI जैसा ट्रांजिट व्यवस्था लांच किया। इससे सभी पैसे के लेन देन के माध्यम को जोड़ा गया।
देखते देखते यह इतना लोकप्रिय हुआ कि हर व्यक्ति इससे जुड़ गया।
भारत ही क्या, आज दुनिया के 15 देश UPI का उपयोग करते है। इसे सबसे सुरक्षित माध्यम मानकर गूगल जैसी कम्पनियों ने उपयोग करना शुरू किया।
UPI ! पिछले पाँच वर्षों की क्रांति है। जिससे अमेरिका जैसे देश भी भयग्रस्त है।
IMF ने अभी अपनी रिपोर्ट में UPI को लेकर कहा, सारी दुनिया को इससे सीखना चाहिये।
UPI का महत्व भ्र्ष्टाचार रोकने, आम आदमी तक लाभ पहुँचाने में हुआ है।
यह पूर्ण मुफ्त व्यवस्था है। लेकिन भारत सरकार को इससे लाभ भी हुआ है। हजारों करोड़ रुपये नोट छपाई के बचे है।
UPI की लोकप्रियता इतनी है कि लोग चाय का भी वैसा QR कोड से देते है।
इस पूरे क्रांति का श्रेय प्रधानमंत्री मोदी की दूरदर्शिता को जाता है।
5G अभी लांच हुआ है।
यह भी बड़े परिवर्तन का आधार बनेगा। इतने रोजगार पैदा करेगा कि जिसकी अभी हम कल्पना भी नहीं किये है।
क्या युवा पीढ़ी 5G को लेकर तैयार है। वह इसके उपयोग को लेकर विशेज्ञता हासिल करें।