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आज 27 कट्स मान कर, 14 मिनट के दृश्य/संवाद बदल कर, ‘A’ सर्टिफिकेट के साथ #omg2 रिलीज होगी।
शिवलिंग को लिंग, दारू को प्रसाद, स्त्री योनि को हवन कुंड जैसे कई छिछले संवाद के साथ भगवान शिव का नाम ले कर जो छल अक्षय कुमार करने चला था, वह सार्वजनिक हो चुका है।
वैसे इस ‘A’ का कोई मतलब नहीं, OTT पर तो यह आ ही जाएगी परंतु जिस तीन सौ करोड़ का ये स्वप्न देख रहे थे, वह पूरा होता नहीं दिखता।
अजीत भारती भैया🙏🏼
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इस संस्कृति ने कभी अपने जीवन मूल्य के सिद्धांत में
' अर्थ ' को स्थान दिया था।
प्राचीन भारतीय संस्कृति अपने इन्हीं चार पुरूषार्थ के केंद्र कि परिधि पर घूमती है।
जितने भी रचनाकार हुये। उन्होंने इसमें से किसी एक को चुना या अन्य के साथ रचना किया। कभी किसी ने एक दूसरे कि निंदा नही किया।
रामायण, महाभारत धर्म कि व्याख्या करते है।
उपनिषद, गीता मोक्ष कि जोर करते है।
कौटिल्य का अर्थशास्त्र, अर्थ के महत्व को बताता है तो वात्सायन का कामसूत्र काम के महत्व को बता रहा है।
कालिदास धर्म, अर्थ के साथ, काम के सौंदर्य को चुनते है।
गोस्वामीजी धर्म और सौंदर्य के भाव को पकड़ते है।
कबीर धर्म और मोक्ष पर जोर देते है।
यह हमारी साहित्यिक यात्रा है। यदि बहुत सूक्ष्मता अध्ययन करें तो सम्पूर्ण साहित्य के केंद्र में यही चार पुरूषार्थ है। जो एक दूसरे के महत्व और सहअस्तित्व को बताते है।
फिर एक समय आया जब दरिद्रता का महिमामंडन किया गया। अर्थ को सभी मानवीय दुर्गुणों का कारण बनाया गया। दरिद्र होना जैसे सभी सद्गुणों का प्रमाण है। वैभवशाली होना सभी दुर्गुणों का कारण बन गया।
प्रेमचंद कि रचनाओं में बनिया, रायसाहब, व्यापारी सभी कुटिल, चोर, अय्याश है। सभी दरिद्र संत, महात्मा है।
प्राचीन भारत के शास्त्र कहते है। मनुष्य बिना सद्गुणों के साथ कर्मशील हुये, अर्थ अर्जित नही कर सकता है।
एक वैभवशाली व्यक्ति अवश्य जीवन कि चुनौतियों को स्वीकार करके कर्मशील रहा होगा।
लेकिन प्रगतिशीलता का मानक यह है कि मनुष्य का अपना चरित्र महत्व नही रखता, व्यवस्था के दोष गौड़ है। अर्थ ही अपराध है।
आप धनी है तो अवश्य ही अपराधी, चोर, भ्र्ष्ट , अत्याचारी होंगें। इसका कारण मनुष्य नही है, धन है।
एक अध्ययन से पता चला है कि अफ्रीका में सबसे तेजी से बढ़ने वाला धर्म, हिंदू धर्म है।
2010 में .2% अफ्रीका में हिंदू रहते थे। आज यह 1% हो गया हैं।
ऐसी चीज़ें तो लोग लिखते रहते हैं। लेकिन इसको study IQ ने प्रस्तुत किया है, तो विश्वास योग्य है।
यह अन्य देशों अमेरिका, यूरोप से अलग है। यहां प्रवासी भारतीय बढ़े हैं।
लेकिन अफ्रीका में वहां के मूल निवासी हिंदू धर्म को अपना रहे है।
उसका सबसे बड़ा कारण है अफ्रीका गृहयुद्ध पीड़ित रहा है। हिंदू धर्म का शांति, योग, ध्यान, प्रेम का संदेश लोगों के जीवन को बदल रहा है।
एक पौराणिक तथ्य यह है कि भगवान राम के पुत्र लव और कुश थे। मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम ने कुश को अफ्रीका पर शासन के लिये भेजा था।
अफ्रीका की सबसे प्रमुख जनजाति KUSHITS मानते हैं कि वह भगवान कुश के वंशज हैं।
इसमें ISKON की भूमिका भी महत्वपूर्ण है।
हिंदू धर्म किसी को अपनी पहचान, संस्कृति छोड़ने को नहीं कहता। इसलिये अफ्रीका के लोग आकर्षित हो रहे हैं।
घाना हिंदुओं का केंद्र बनता जा रहा है। 2010 में यहां 12 हजार हिंदू थे। आज तीन लाख हो गये हैं।
अफ्रीका कि शांति, स्थिरता में सनातन धर्म के मूल्य महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।।
महाराज पोरस जब सिकंदर से युद्ध के लिये जा रहे थे,
सेना के सबसे आगे वासुदेव श्रीकृष्ण की मूर्ति लेकर हाथी चल रहे थे।
मेवाड़ के राणा जब भी युद्ध में जाते, एकलिंगी भगवान शिव की आराधना करते।
क्षत्रपति शिवाजी महाराज जब औरंगजेब से मिलने जा रहे थे, सात हाथियों का दल कलश लेकर आगे चल रहा था। पीछे पीछे पुरोहित मंत्रोच्चार कर रहे थे। इसे देखने के लिये पूरे मार्ग में जनसैलाब उमड़ पड़ा था।
क्षत्रियों का युद्धघोष हर हर महादेव, जय भवानी था।
औरों की क्या, स्वयं मर्यादापुरुषोत्तम भगवान श्रीरामचन्द्र जी, रामेश्वरम में शिव आराधना के बाद रावण से युद्ध किये।
धर्मक्षेत्रे कुरूक्षेत्रे ! से महाभारत युद्ध प्रारंभ होता है। कुरुक्षेत्र को धर्मक्षेत्र कहा जा रहा है।
संघर्ष, प्रतिरोध, आत्मरक्षा, युद्ध में कब धर्म की ऊर्जा नहीं थी।
यह झूठ तो अब का है। जो हमें पंगु बना रहा है। धर्म इन सबसे अलग है।
धर्म से ही रक्षा हो सकती है।
तब यह और भी महत्वपूर्ण हो जाता है जब जन्नत की लोभी भीड़ सामने हो।।
भव्यमंदिर तो महत्वपूर्ण है ही, उससे भी महत्वपूर्ण है राममंदिर का भविष्य में जो महत्व, भूमिका है। वह बनाई जाय।
उसकी तैयारी हमारी फिलहाल नहीं है।
यह राममंदिर, सिर्फ ईश्वर का ही मंदिर नहीं है, यह मंदिर उनका है जिनकी हम सभी लोग संतति हैं।
वह हमारे राजा भी हैं,पिता भी हैं।
हम तो तब भी उन्हीं को अपना राजा माने जब यहां तुर्क, मुगल अत्याचार करते थे।
यह मंदिर , मंदिर ही नहीं है।
यह हमारे राजराजेश्वर का सिंहासन भी है। एक तरह से हम रामराज्य के पहले चरण में हैं।
यह ट्रस्ट तो मंदिर निर्माण तक है। उसके बाद राममंदिर की नियामक संस्था क्या होगी।
उसके अधिकार क्या होंगे,
उसके प्रतिनिधि कौन होंगे,
राममंदिर का सनातन धर्म के सरंक्षण, विस्तार में भूमिका क्या होगी।
यह सब इसलिये भी आवश्यक है क्योंकि एक तो यह सामान्य मंदिर नहीं है। यह रामजन्मभूमि पर राममंदिर है।
दूसरा यह कि यदि कुछ CA के आंकलन को मानें तो 2050 तक राममंदिर के पास दस -पन्द्रह अरब डॉलर से अधिक की संपत्ति होगी।
सरकार को चाहिये कि धर्माचार्यों, आर्थिक, सामाजिक, न्यायिक क्षेत्रों के प्रमुख व्यक्तियों की एक समिति बनाये । जो राममंदिर के लिये एक अधिकार सम्पन्न संस्था तथा भविष्य में उसकी भूमिका के लिये प्रारूप तय करे।