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सिरमौर: हिमाचल की पहलवान रानी ने राष्ट्रीय खेलों में सिल्वर पदक जीता 36वीं राष्ट्रीय खेलकूद प्रतियोगिता गुजरात में हो रही है। जिसमें रानी ने कुश्ती के 76 किलोग्राम वर्ग में रजत पदक प्राप्त किया है। रानी का फाइनल में मुकाबला दिल्ली की अर्जुन अवार्डी पहलवान दिव्या कांकरान से हुआ था। रानी हिमाचल प्रदेश पुलिस में सेवाएं दे रही हैं। रानी सिरमौर की रहने वाली हैं।
*TODAY INDANA MATA DARSHAN*
ये मंदिर राजस्थान की ईडाणा माता मंदिर के नाम से जाना जाता है।
*यहां पर मां के चमत्कारिक दरबार की महिमा बहुत ही निराली है, जिसे देखने दुर-दुर से लोग यहां आते हैं। वैसे तो आपने बहुत सारे चमत्कारिक स्थलों के बारें में सुना होगा, लेकिन इसकी दास्तां बिल्कुल ही अलग और चौंकाने वाली है।*
ये स्थान उदयपुर शहर से 60 कि.मी. दुर अरावली की पहाड़ियों के बीच बसा हुआ है। मां का ये दरबार बिल्कुल खुले एक चौक में स्थित है। आपको बता दें इस मन्दिर का नाम ईडाणा उदयपुर मेवल की महारानी के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
इस मन्दिर में भक्तों की खास आस्था है, क्योंकि यहां मान्यता है की लकवा से ग्रसित रोगी यहां मां के दरबार में आकर ठीक हो जाते हैं।
इस मन्दिर की हैरान करने वाली बात है ये है की यहां स्थित देवी मां की प्रतिमा से हर महीने में दो से तीन बार अग्नि प्रजवल्लित होती है। इस अग्नि स्नान से मां की सम्पूर्ण चढ़ाई गयी चुनरियां, धागे भस्म हो जाते हैं और इसे देखने के लिए मां के दरबार में भक्तों का मेला लगा रहता है।
लेकिन अगर बात करें इस अग्नि की तो आज तक कोई भी इस बात का पता नहीं लगा पाया कि ये अग्नि कैसे जलती है। ईडाणा माता मन्दिर में अग्नि स्नान का पता लगते ही आसपास के गांवों से बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ लग जाती है।
मन्दिर के पुजारी के अनुसार ईडाणा माता पर अधिक भार होने पर माता स्वयं ज्वालादेवी का रूप धारण कर लेती हैं। ये अग्नि धीरे-धीरे विकराल रूप धारण करती है और इसकी लपटें 10 से 20 फीट तक पहुंच जाती है। लेकिन इस अग्नि के पीछे खास बात ये भी है कि आज तक श्रृंगार के अलावा किसी अन्य चीज को कोई आंच तक नहीं आती। भक्त इसे देवी का अग्नि स्नान कहते हैं और इसी अग्नि स्नान के कारण यहां मां का मंदिर नहीं बन पाया।
ऐसा मान्यता है की जो भी भक्त इस अग्नि के दर्शन करता है, उसकी हर इच्छा पूरी होती है। यहां भक्त अपनी इच्छा पूर्ण होने पर त्रिशूल चढ़ाने आते है और साथ ही जिन लोगों के संतान नहीं होती वो दम्पत्ति यहां झुला चढ़ाने आते हैं। खासकर इस मंदिर के प्रति लोगों का विश्वास है कि लकवा से ग्रसित रोगी मां के दरबार में आकर स्वस्थ हो जाते हैं।
बाल बलिदानी कुमारी मैना
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1857 के स्वाधीनता संग्राम में प्रारम्भ में तो भारतीय पक्ष की जीत हुई; पर फिर अंग्रेजों का पलड़ा भारी होने लगा। भारतीय सेनानियों का नेतृत्व नाना साहब पेशवा कर रहे थे। उन्होंने अपने सहयोगियों के आग्रह पर बिठूर का महल छोड़ने का निर्णय कर लिया। उनकी योजना थी कि किसी सुरक्षित स्थान पर जाकर फिर से सेना एकत्र करें और अंग्रेजों ने नये सिरे से मोर्चा लें।
मैना नानासाहब की दत्तक पुत्री थी। वह उस समय केवल 13 वर्ष की थी। नानासाहब बड़े असमंजस में थे कि उसका क्या करें ? नये स्थान पर पहुंचने में न जाने कितने दिन लगें और मार्ग में न जाने कैसी कठिनाइयां आयें। अतः उसे साथ रखना खतरे से खाली नहीं था; पर महल में छोड़ना भी कठिन था। ऐसे में मैना ने स्वयं महल में रुकने की इच्छा प्रकट की।
नानासाहब ने उसे समझाया कि अंग्रेज अपने बन्दियों से बहुत दुष्टता का व्यवहार करते हैं। फिर मैना तो एक कन्या थी। अतः उसके साथ दुराचार भी हो सकता था; पर मैना साहसी लड़की थी। उसने अस्त्र-शस्त्र चलाना भी सीखा था। उसने कहा कि मैं क्रांतिकारी की पुत्री होने के साथ ही एक हिन्दू ललना भी हूं। मुझे अपने शरीर और नारी धर्म की रक्षा करना आता है। अतः नानासाहब ने विवश होकर कुछ विश्वस्त सैनिकों के साथ उसे वहीं छोड़ दिया।
इस #आदिपुरुष ने #हिन्दुत्व को पीछे धकेल दिया है, हिन्दुत्व तो फिर भी बहुत बढ़िया है.....
चहुंओर सिर्फ आदिपुरुष के चर्चे हैं जबकि #कश्मीरफाइल्स की तरह इसकी भी चर्चा होनी चाहिए थी
एक ईरानी विमान चीन जा रहा था।
लाहौर से दिल्ली एयरपोर्ट को यह
सूचना दी गई कि इस विमान में बम है।
इमरजेंसी लैंडिंग चाहिये।
इमरजेंसी लैंडिंग कि व्यवस्था हुई,
लेकिन भारतीय वायुसेना ने विमान को
जयपुर भेजने को कहा।
यह प्रक्रिया चल ही रही थी कि,
जोधपुर वायुसेना के अड्डे से
दो सुखोई विमानों ने उड़ान भरी।
उन्होंने विमान के पायलट को संकेत किया,
आप भारतीय वायुक्षेत्र में है। विमान की
वस्तुस्थिति बतायें।
विमान के पायलट ने
कोई प्रतिक्रिया नहीं दिया।
विमान बंग्लादेश की सीमा में घुस गया,
और चीन की तरफ बढ़ गया।
भारतीय वायुसेना शाम को प्रेसवार्ता करेगी।
फोन लाहौर से आया था,
संभव है कि इसीलिए दिल्ली से विमान को
जयपुर जाने के लिए कहा गया।
सुखोई युद्धक विमानों ने
पैसेंजर विमान होने के कारण संयम दिखाया।
यह पूरा घटनाक्रम 45 मिनट का था।
लेकिन भारतीय वायुसेना ने
10 मिनट के भीतर त्वरित कार्रवाई की।💐