2 yrs - Translate

रामायण में एक व्यक्ति ऐसा है
जो भक्त तो है ही, लेकिन बहुत चतुर भी है।
वह है, केवट।
केवट को जरा भी संशय नहीं है, कि भगवान पधार चुके हैं। बिल्कुल ही चूकना नहीं है।
पहले तो वह ढपोरशंख बन गया।
भाई हमें कुछ पता नहीं है, ऐसा सुनने में आया है कि आपके चरण में कुछ खास बात है।
ऐसा न हो कि पता चला कि एक नाव वह भी चली जाय।
अब वह स्वयं परात नहीं ला रहा है।
अपनी पत्नी से कहता है परात लाओ।
उसकी भी व्यवस्था कर लिया।
भगवान श्रीरामचन्द्र जी, यह सब देखकर मुस्करा रहे हैं।
कृपा सिंधु बोले मुस्काई
सोई करूं जेहु नाव न जाई।
वह चरण जिसको छूने के लिये जन्मों जन्म साधना करनी पड़ती है। वह धुलता है, अपने माथे भी चढ़ाता है।
गंगा पार करा देता है।
ऐसा लग रहा है, नाव चलाते समय सोच लिया था कि आगे क्या करना है।
भगवान उतराई देने लगे तो कहता है।
प्रभु , यहाँ तो हम उतार दिये।
'वहाँ वाला' आप देख लीजियेगा।
लेकिन भक्त केवट की सच्ची भावना को
गोस्वामी तुलसीदास जी ऐसे कहते हैं....
"नाथ आजु मैं काह न पावा।।"

image

image

image

image

image

image

image

image

image

image