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धर्म अध्यात्म के मर्मज्ञाता और पूज्य सरकार के सद्गुरू भगवान पूज्य जगद्गुरु पधार रहे है इस आयोजन में अपने आशीर्वाद से सभी को सिंचित करने….
पूज्य सद्गुरू भगवान के श्री चरणो में दण्डवत..🙏🏻🙏🏻

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ज्ञान हो और स्वीकार करने में उतना ही अंतर है जितना मूर्ख और बुद्धिमान होने में है।💮
आज मैं रावण कि राज्यसभा में एक रक्षा विशेषज्ञ के रूप में दूत हूँ। निष्पक्ष समीक्षा कर रहें हैं। हमनें रावण की यह बात मान ली है कि उसके सामने दो मनुष्य है, कोई ईश्वर नहीं हैं।👇
इसको सरलता से समझने के लिये चलते है अरण्य वन में।
जहां खर दूषण मारे जा चुके हैं। भगवती सीता को रावण अपहरित करके ले जा चुका है।
रावण के गुप्तचरों ने यह सूचना दी कि वह दो ही वनवासी राजकुमार संन्यासी हैं।
अभी मैं रावण को अत्याचारी, दुष्ट मान सकता हूँ, लेकिन बुद्धिहीन नहीं कह सकता।
जिसकी शक्तियां अपरमित हैं। उसका यह सोचना युद्ध रणनीति से ठीक है।
अगली सूचना जब रावण को मिलती है। वह यह है कि संन्यासी राजकुमारों के साथ एक विशालकाय सेना है, जिसे स्वयं मर्यादापुरुषोत्तम ने प्रशिक्षित किया है।
यह कोई सामान्य सूचना नहीं है। कूटनीति यह कहती है कि वह मनुष्य हो सकते हैं लेकिन एक महान सेनानायक, योद्धा हैं, जो इतने कम समय में इतनी विशाल सेना खड़ी कर दिये।
रावण यह स्वीकार नहीं कर रहा है। अब मुझे यह संदेह हो रहा है कि यह मूर्ख तो नहीं है ? सुनिश्चित इसलिये नहीं है कि रावण के पास इतनी शक्ति है कि वह किसी भी सेना को परास्त कर सकता है।
एक घटना,
जिसमें राम के एक दूत ने लंका में त्राहिमाम मचा दिया।
एक तरह से राजधानी को नष्ट ही कर दिया।
रावण अब भी नहीं स्वीकार कर रहा है।
उसे संदेह का लाभ देते है कि यह एक दुर्घटना हो सकती है।
लेकिन अब जो हुआ है वह न देवताओं, न दैत्यों , न ही मनुष्यों के लिये सम्भव है। सम्भवतः रावण भी उस सेना से नहीं डर रहा था। उसके विश्वास का ठोस आधार है कि इतनी बड़ी सेना समुद्र पार नहीं कर सकती है।
यह सूचना कि राम की सेना ने समुद्र पर सेतु बना दिया है।
वह भरी सभा में चिल्ला पड़ा ! असंभव।
लेकिन यह सत्य था।
मेरा पूरा विश्वास है कि जब रावण स्वयं कह रहा है कि यह असंभव है। तो वह उनकी शक्तियों को जान गया होगा, अपना शांतिदूत भेज देगा।
यह तो बड़ा ही आश्चर्य है।
रावण की जगह राम दूत भेज रहे हैं।
रावण अंगद को अपनी सभा में अपमानित कर रहा है।
वह मांग ही क्या रहे हैं ! अपनी पत्नी।
रावण ! दुष्ट, अत्याचारी, दुरात्मा हो तो ठीक भी था। यह तो महामूर्ख है।
मूर्ख राजा के राज्य में नहीं रहना चाहिये, वह सर्वनाश कर देगा।

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Ravishankar changed his profile cover
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हस्तिनापुर कि सभा में भरत की वंश बहू और
द्रुपद की पुत्री को कर्ण ने बोला.... यह वेश---- है।
एक 16 वर्ष के बालक ने युद्धकला की सबसे कठिन ब्यूह रचना को तोड़ दिया। उस परम् वीर बालक का उद्देश्य बस इतना था कि द्रोण, युधिष्ठिर को बंदी न बना पाये।
उस बालक को कुरुक्षेत्र के सात महारथियों ने मिलकर मारा।
उसके ऊपर पहली तलवार कर्ण ने चलाई थी।
*
महाभारत युद्ध में आज अर्जुन कर्ण आमने सामने हैं।
यह युद्ध बहुत उच्चकोटि का है।
यह युद्ध योद्धाओं से ही नहीं, सारथियों के लिये प्रसिद्ध है। उस समय के सबसे निपुण सारथी भगवान कृष्ण और राजा श्लैय हैं।
अर्जुन दिव्यास्त्र निकालते हैं।
तभी अचानक से कर्ण के रथ का पहिया भूमि में धँस जाता है।
वह अर्जुन से कहता है....
हे श्रेष्ठ धनुर्धर, तुम क्षत्रिय हो, युद्ध के सभी नियमों में निष्ठा है। मैं पहिया जब तक नहीं निकाल लेता, बाण मत चलाना।
अर्जुन बाण नीचे कर लिये।
कर्ण पहिया निकाल रहा है।
विदेशमंत्री जयशंकर अपनी पुस्तक में उनको ईश्वर ही नहीं सबसे महान डिप्लोमैट कहते हैं। अपनी अपनी श्रद्धा है।
तो वह परमेश्वर, वह महान डिप्लोमैट कहते हैं...
क्या देख रहे हो पार्थ ?
अर्जुन कहता है, यह युद्ध के नियमों, धर्म के विरुद्ध है भगवन।
भगवान कहते हैं -
वह कर्ण किस नियम का पालन किया है ?
धर्म के किन मूल्यों पर यह कर्ण चला है। वह दुर्योधन के हर पाप का भागीदार है।
बाण चलाओ, मारो इसे।
दिव्यास्त्र ने कर्ण का धड़ अलग कर दिया।
यह ज्ञान, यह डिप्लोमेसी भारत ने अपने इतिहास में बहुत बार भुला दिया।
धर्ममात्मा से धर्मयुक्त व्यवहार होता है... अधर्मियों से नहीं।।

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सती प्रथा, विधवा प्रथा और बाल विवाह जैसी क्रूर प्रथाओं के जन्म के पीछे भी मुख्य वजह जाति की शुद्धता की रक्षा थी। जो कोई भी भारत मे स्त्रियों के दोयम दर्जे के स्थिति को समझा चाहता है, उसका प्रस्थान बिन्दु यही निबंध हो सकता है।
आंबेडकर अपने इस निबंध में यह स्थापित करते हैं कि जाति और स्त्री पर पुरूष का प्रभुत्व एक ही सिक्के के दो पहलु हैं।
आगे चलकर आंबेडकर ने इस विषय पर एक मुकम्मिल किताब लिखी कि भारत में महिलाओं की दासता और दोयम दर्जे की स्थिति के लिए ब्राह्मणवाद ही जिम्मेदार है। उस किताब का नाम है- ‘हिंदू नारी उत्थान और पतन’। इस किताब विस्तार से आंबेडकर ने ब्राह्मणवादी शास्त्रों को उद्धृत करके बताते हैं कि कैसे हिंदू धर्मशास्त्र स्त्रियों की दासता और गरिमाहीन अपमानजनक स्थिति के लिए जिम्मेदार हैं। इस किताब में आंबेडकर लिखते हैं कि “भारतीय इतिहास इस बात को निर्विवाद रूप से सिद्ध कर देता है कि एक ऐसा युग था,जिसमें स्त्रियां सम्मान की दृष्टि से देखी जाती थीं।….जनक और सुलभा, याज्ञवल्क्य और गार्गी, याज्ञवल्क्य और मैत्रेयी आदि के संवाद यह दर्शाते हैं कि मनुस्मृति से पहले के युग में स्त्रियां ज्ञान और शिक्षा के क्षेत्र में उच्चतम शिखर पर पहुंच चुकी थीं।”
मनु और अन्य ब्राह्मण धर्मग्रंथों ने स्त्रियों की पूरी तरह मूक पशु में बदल दिया। मनु का आदेश है कि पुरूषों को अपने घर की सभी महिलाओं को स्त्रियों को चौबीस घंटे नियंत्रण में रखना चाहिए-
अस्वतंत्रा: स्त्रिया : कार्या: पुरूषौ: स्वैर्दिवनिशम्।
विषयेषु च सज्ज्न्त्य: संस्थाप्यात्मनों वशे।। ( 9,2 )
तुलसी दास भी कहते हैं कि नारी स्वतंत्र होकर विगड जाती है- ‘जिमि स्वतंत्र होई,बिगरहि नारी”
मनु स्त्रियों से इस कदर अविश्वास करते हैं, घृणा करते हैं कि वे लिखते हैं - “पुरूषों में स्त्रिया न तो रूप का विचार करती हैं, न उसकी आयु की परवाह करती हैं। सुरूप हो या कुरूष, जैसा भी पुरूष मिल जाय, उसी के साथ भोगरत हो जाती हैं”( मनु, 9,14 )। यह कोई आश्चर्य का विषय नहीं होना चाहिए। राम सीता के चरित्र पर विश्वाश नहीं करते हैं और सीता से कहते हैं कि रावण ने अवश्य ही तुम्हारे साथ शारीरिक संबंध बनाय होगा ( इसके विस्तार के लिए बाल्मिकि रामायण का उत्तरकांड देख लें। )
‘हिंदू नारी उत्थान और पतन शीर्षक’ अपनी इसी किताब में आंबेडकर यह भी प्रमाणों के साथ स्थापित करते हैं कि बौद्ध धम्म मे स्त्रियों को समानता का अधिकार प्राप्त था। इसके लिए वे थेरी गाथों का उद्धरण देते है और अन्य प्रमाण प्रस्तुत करते हैं।
1916 के अपने पहले निबंध से लेकर हिंदू कोड बिल पेश करते समय तक डॉ. आबेडकर, महिलाओं को समानता का अधिकार दिलाने के लिए लड़ते रहे। उनका यह मानना पूरी तरह सही था कि जैसे जाति के विनाश के साथ ही स्त्री मुक्ति का रास्ता पूरी तरह साफ होता है और इसके लिए ब्राह्मणवाद से पूरी तरह से मुक्ति अनिवार्य है। जाति और स्त्री की मुक्ति का प्रश्न एक दूसरे से जुड़ा है, यह सीख डॉ.आंबेडकर को अपने गुरू जाोतराव फुले से भी मिली थी।
वर्तमान समय में बहुत सारी महिला अध्येता फुले और आंबेडकर के विचारों के आलोक में भारतीय पितृसत्ता को ब्राह्मणवादी पितृसत्ता कहने लगी हैं। इनमें उमा चक्रवर्ती और शर्मिला रेगे जैसी अध्येता शामिल हैं।
इस विषय पर शर्मिला रेेगे की किताब ‘ मनु का पागलपन’ ( मैडनेस ऑफ मनु ) जरूर ही पढ़ना चाहिए।
ये कार्टून उस समय के हैं, जब डॉ. आंबेडकर ने यह बिल पेश कि

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