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जब देश विभाजित हुआ तो एक तरह से लाहौर, कराची शहर हिंदुओं का था।
उनको मारकर भगाने का एक उद्देश्य था कि उनकी संपत्ति पर कब्जा कर लेना।
हिंदू मारे गये और भागकर भारत आये। उनकी जमीनों , घरों , सम्पतियों को मुस्लिमों को दे दिया गया।
कराची कि हिंदुओं के सम्पति यहां से गये मुजाहिरो को दे दिया गया। मुजाहिर वह जो भारत से पाकिस्तान गये थे।
इधर भारत में विभाजन के बाद जो जमीन पाकिस्तान गये मुस्लिमो की थी। वह पाकिस्तान से आये हिंदुओ , सिखों को नहीं दी गई। उनको रिफ्यूजी कम्पो में रखा गया।
1951 में वक़्फ़ बोर्ड कानून में संशोधन करके वह सारी जमीन हरियाणा , पंजाब की वक़्फ़ बोर्ड के दिया गया।
1981 में राजीव गाँधी द्वारा एक बार वक़्फ़ बोर्ड के कानून में संशोधन कर दिया गया। उसको असीमित अधिकार दिये गये।
वक़्फ़ बोर्ड कब्जाधारी गिरोह बना , अदालतों में वाद दाखिल होने लगे।
1995 में फिर कांग्रेस सरकार ने संशोधन किया, यह कानून बना दिया कि कोई सिविल कोर्ट वक़्फ़ बोर्ड द्वारा कब्जा भूमि पर आदेश पारित नहीं कर सकता।
इस तरह से वक़्फ़ बोर्ड शहरों की जमीन कब्जा करके , गाँवों से मुस्लिम आबादी को लाकर शहरों में बसाने लगा।
हर शहर में मोहल्ले स्थापित हो गये।
अभी तक बक्फ बोर्ड शिया सुन्नी के मसलों को सुनता था।
लेकिन जो असली करामात हुई, वह 2013 में कांग्रेस सरकार ने वक़्फ़ बोर्ड के कानून में संशोधन किया। वह यह था कि वक़्फ़ बोर्ड हिंदुओं के जमीन को कब्जा भी कर सकता है, और सुनवाई भी करेगा। अब हिंदू अपनी जमीनों के लिये वक़्फ़ बोर्ड में मौलानाओं के सामने कमर झुकाये खड़े है।
यह भारत की बात हो रही है। किसी इस्लामिक स्टेट की नहीं है।
जय हो धर्मनिरपेक्षता।।
मंदिर -
जब हम सनातन धर्म को देखते है। तब हमारी सारी दृष्टि वर्तमान पर रहती है। इससे कोई भी समीक्षा बहुत सतही हो जाती है।
लेकिन सनातन धर्म एक यात्रा है।
वैदिक युग आज के हजारों वर्ष पूर्व शुरू होता है। जब मनुष्य पहली बार चिंतन किया था।
वेद आये।
वेद , दर्शन और कर्मकांड में यज्ञ को महत्व देते थे। एक ब्रह्म है एक प्रकृति है सब उसी का विस्तार है।
लेकिन जब सनातन धर्म तेजी से अंगीकार होने लगा तो इसकी आवश्यकता समझ में आने लगी कि कैसे, समाज में जीवन मूल्य और धर्म बना रहे और समाज संगठित रहे।
यही से मंदिरों की संकल्पना आई। जो धर्म और संस्कृति का केंद्र बनकर उभरे।
सनातन धर्म के लिये मंदिर इतने महत्वपूर्ण बन गये कि इन्हीं मंदिरों ने इस धर्म को सुशोभित कर दिया।
यह मंदिर देवताओं की प्राण प्रतिष्ठा के साथ बनते थे। यह देवताओं के स्थान ही नहीं , उत्सव संस्कृति शिक्षा के केंद्र बने।
मंदिरों के साथ धर्म का एक मूल्य जोड़ा गया -
"मंदिर वह है जँहा प्राणप्रतिष्ठा हो ! यदि मंदिर किसी कारण से तोड़ दिया गया। फिर भी वह मंदिर ही रहेगा। "
यह तर्क राममंदिर निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने और अभी ज्ञानवापी में वाराणसी कोर्ट ने स्वीकार किया है।
मंदिर सैदव , मंदिर रहेंगें यदि उनकी प्राण प्रतिष्ठा हुई है।
इस तरह यदि देखें तो सभी मंदिर, अभी मंदिर है जो तोड़ दिये गये है।
मंदिर के विस्तार में राजवंशों का योगदान सबसे अधिक है। उन्होंने अपने वैभव और प्रतिष्ठा के रूप में भी महान मंदिरों का निर्माण कराया।
मिथिला के राजा जनक, जो विदेह परंपरा के राजा था। उनकी राज्यसभा का ही निर्णय था मंदिर के साथ गुरुकुलों के निर्माण हो।
जनक ही भारत के सभी मंदिरों के कुलाधिपति थे। भगवान राम के समय विश्वामित्र ऋषि के पास 2000 ,गौतम ऋषि के पास 1200 गुरुकुल और भरद्वाज ऋषि के पास 800 गुरुकुल का वर्णन है।