यह जगत व्यवस्थित रहे मैं स्वयं निरंतर कर्म करता हूँ।
गीता वाक्य है।
बहुत गहरा अर्थ रखता है। ईश्वरीय शक्ति कह रही है वह आपके लिये निरंतर कर्म कर रही है।
हम आप सोचते है, हम अकेले है।
वास्तव जब हमें लगता है कि मेरे साथ बहुत गलत हुआ है,
वही जीवन का मूल्यवान समय है।वह भौतिक , आध्यात्मिक कुछ हो सकता है।
यह हमारे जीवन ईश्वरीय हस्तक्षेप है, यह तो वही समझ सकते है। लेकिन जो कुछ भी वर्तमान जीवन मे चल रहा है। वह ठीक नहीं है।
परिवर्तन चाहिये! बार बार ब्रह्मांड की शक्ति ने संकेत दिये लेकिन हम अनसुना कर दिये।
फिर ईश्वर ने हस्तक्षेप किया
बदलो स्वयं को नहीं तो आत्मा चोटिल होगी।
पीड़ा , अवसाद , दुख में पड़े रहे या शिव कि आज्ञा मानकर कुछ नवीन करें।
पांडव 13 वर्ष वनवास न पाते तो महाभारत कभी न जीतते, उन्होंने इसे अवसर बनाया।
मर्यादापुरुषोत्तम भगवान राम 14 वर्ष के वनवास से एक सभ्यता नीव रख दिये।
कोई कारण नहीं है
हम परिवर्तन के साथ आगे न बढ़ सकें।
स्वामी विवेकानंद का एक वाक्य है।
जब जीवन एक दिन अपने उपादान में जाना ही है , तो एक महान उद्देश्य के लिये जीये।