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मेरा बचपन परम्परागत तरीके से मारवाड़ी परिवार में बीता। किन्तु मैंने अपने बड़ो को हमेशा आधुनिकता को स्वीकारते पाया। मेरे दादा दादी हो या मेरे भाईसाहब और बड़ी मंमी मैंने किसी को भी लकीर का फकीर न पाया।
अपने आदर्श और संस्कारों को बनाए रखते हुए, नयी पीढ़ी की सोच को समझते हुए, उनके तौर तरीकों को अपनाते हुए हर उन कार्यों के लिए सहमति देखी जो उस समय दूसरे परिवारों में आधुनिकता थी।
भाईसाहब तो बहुत समय से चली आ रही ऊलजलूल परम्पराओं के भी खिलाफ थे। घर मे सदैव बेटियों को बेटों के बराबर स्थान मिलना हो, घर की बहुओं का सबसे पहले गर्मागम खाना खाने जैसी छोटी बातें हो या फिर पढ़ाई के लिए बच्चों को दूसरे शहर भेजने से लेकर, उन्हें उनके निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र करना हो। चाहे वह विवाह का ही निर्णय क्यों न हो।
श्राद्ध पक्ष के समय घर मे कुछ नया न लाने की बात को लेकर वह हमेशा बहस करते। हमारे घर का पहला कम्प्यूटर जो उस समय बहुत महंगा आया था...श्राद्ध पक्ष में ही आया। वे ईश्वर में पूर्ण विश्वास करते थें किन्तु उनके नाम से कुछ भी बात स्वीकार नहीं करते थे। ' हर वार ईश्वर का वार है ' यह कहकर वह वारों के साथ की हर बाध्यता समाप्त कर देतें।
उनदिनों जब जाति को लेकर ऊंच नीच प्रचलित थी। तब भी भाईसाहब हमारे यहाँ कार्य करने वाले हर लेबर को अपने साथ बैठाकर उनके साथ भोजन करते। मेरे घर मे मैने कभी किसी जाति विशेष के लिए न तो कोई घृणा देखी और न ही कभी यह सुना कि फलाने लोगों का हमारे घर आना या बैठना या खाना वर्जित है। एक समय के बाद तो समाज ने भी इस बात को स्वीकार किया पर उस समय यह थोड़े लीक से हटकर वाली बात थी।
मुझे बागेश्वर धाम वाले शास्त्री जी पर श्रद्धा इसलिए तो है ही कि वह बालाजी के भक्त हैं। और इस बात से ही मेरी आँखें नम हो जाती हैं कि उन्हें कोई विशेष आशीर्वाद है बालाजी का।
वो सनातन की अलख जगाने, और हजारों लोगों को अपने धर्म मे फिर से लाने का का कार्य कर रहे हैं, वह तो उनपर विश्वास का कारण है ही, किन्तु जो मुझे उनके व्यक्तित्व की सबसे खूबसूरत बात लगी वह यह कि उन्होंने अपने यहाँ कथा सुनने, उनके पास बैठने और उनके समक्ष अपनी बात रखने के लिए कोई ऊंच नीच, कोई जाति की बाध्यता नहीं रखी।
जब वो हर तबके के व्यक्ति के पास बैठकर प्यार से उन्हें दुलारते हैं तो मन को बहुत खुशी मिलती है। वो एक ही समय में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र में एकरूप हो जाते हैं।
मुझे लगता है हमारे धर्म की सबसे मजबूत बात यही है कि प्राणी मात्र से प्रेम करना। पर यह बात भी है कि प्रेम भी उसी को प्राप्त होता है जो आपके पास बिना कीसी नकारात्मकता के, बिना किसी षड्यंत्र के, बिना किसी पूर्वाग्रह के सिर्फ प्रेम की आस में आया हो।
धर्म की नींव सत्य, विश्वास और प्रेम है। और यही धर्म की उन्नति है।
बालाजी सभी का कल्याण करें।

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दस साल पहले बांग्लादेशी लेखिका तस्लीमा नसरीन ने इस्लाम को अपाहिज कहा था। तीन रोज़ पहले तस्लीमा नसरीन ने ट्वीट करके बताया कि वो ख़ुद उम्रभर के लिए अपाहिज हो गई हैं। इंसान को अपनी ज़ुबान पर कंट्रोल रखना चाहिए। आज़ादी का क़त्तई ये मतलब नहीं हुआ कि आप अपनी ज़ुबान से कुछ भी बकते रहें। आप अगर किसी दीन/धर्म में यक़ीन नहीं रखते हैं तो कम-अज़-कम उन करोड़ों-अरबों लोगों का यक़ीन और उनके सेंटीमेंट का ख़्याल कीजिए जो किसी भी दीन/धर्म में यक़ीन रखते या मानते हैं। आप अगर किसी दीन/धर्म को नहीं मानते हैं तो न मानें। लेकिन यह हक़ आपको किसने दिया कि आप किसी भी दीन/धर्म के ख़िलाफ़ उल्टी/सीधी बातें बोलें या लिखें और लोगों की जज़्बात को ठेस पहुंचाएं?
बचिए इन चीज़ों से। किसी भी दीन/धर्म के ख़िलाफ़ या उनकी मान्यताओं के ख़िलाफ़ बोलने/लिखने से बचिए। ग़लत दीन/धर्म नहीं होता बल्कि उसके मानने वालों ने गंदगी फैलाई है।
ख़ैर! अल्लाह से दुआ है अल्लाह तआला - तस्लीमा नसरीन को शिफ़ा अता फ़रमाए।

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दस साल पहले बांग्लादेशी लेखिका तस्लीमा नसरीन ने इस्लाम को अपाहिज कहा था। तीन रोज़ पहले तस्लीमा नसरीन ने ट्वीट करके बताया कि वो ख़ुद उम्रभर के लिए अपाहिज हो गई हैं। इंसान को अपनी ज़ुबान पर कंट्रोल रखना चाहिए। आज़ादी का क़त्तई ये मतलब नहीं हुआ कि आप अपनी ज़ुबान से कुछ भी बकते रहें। आप अगर किसी दीन/धर्म में यक़ीन नहीं रखते हैं तो कम-अज़-कम उन करोड़ों-अरबों लोगों का यक़ीन और उनके सेंटीमेंट का ख़्याल कीजिए जो किसी भी दीन/धर्म में यक़ीन रखते या मानते हैं। आप अगर किसी दीन/धर्म को नहीं मानते हैं तो न मानें। लेकिन यह हक़ आपको किसने दिया कि आप किसी भी दीन/धर्म के ख़िलाफ़ उल्टी/सीधी बातें बोलें या लिखें और लोगों की जज़्बात को ठेस पहुंचाएं?
बचिए इन चीज़ों से। किसी भी दीन/धर्म के ख़िलाफ़ या उनकी मान्यताओं के ख़िलाफ़ बोलने/लिखने से बचिए। ग़लत दीन/धर्म नहीं होता बल्कि उसके मानने वालों ने गंदगी फैलाई है।
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दस साल पहले बांग्लादेशी लेखिका तस्लीमा नसरीन ने इस्लाम को अपाहिज कहा था। तीन रोज़ पहले तस्लीमा नसरीन ने ट्वीट करके बताया कि वो ख़ुद उम्रभर के लिए अपाहिज हो गई हैं। इंसान को अपनी ज़ुबान पर कंट्रोल रखना चाहिए। आज़ादी का क़त्तई ये मतलब नहीं हुआ कि आप अपनी ज़ुबान से कुछ भी बकते रहें। आप अगर किसी दीन/धर्म में यक़ीन नहीं रखते हैं तो कम-अज़-कम उन करोड़ों-अरबों लोगों का यक़ीन और उनके सेंटीमेंट का ख़्याल कीजिए जो किसी भी दीन/धर्म में यक़ीन रखते या मानते हैं। आप अगर किसी दीन/धर्म को नहीं मानते हैं तो न मानें। लेकिन यह हक़ आपको किसने दिया कि आप किसी भी दीन/धर्म के ख़िलाफ़ उल्टी/सीधी बातें बोलें या लिखें और लोगों की जज़्बात को ठेस पहुंचाएं?
बचिए इन चीज़ों से। किसी भी दीन/धर्म के ख़िलाफ़ या उनकी मान्यताओं के ख़िलाफ़ बोलने/लिखने से बचिए। ग़लत दीन/धर्म नहीं होता बल्कि उसके मानने वालों ने गंदगी फैलाई है।
ख़ैर! अल्लाह से दुआ है अल्लाह तआला - तस्लीमा नसरीन को शिफ़ा अता फ़रमाए।

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ये मुबीन फ़ातिमा हैं जो जम्मू कश्मीर की रहने वाली हैं। मुबीन फ़ातिमा एक तलाक़शुदा ख़ातून हैं जिनका एक बच्चा है। मुबीन फ़ातिमा ने "जम्मू कश्मीर एडमिनिस्ट्रेशन सर्विस" (JKAS) इम्तिहान में 154वां मक़ाम हासिल किया है।
मुबीन फातिमा तलाक़ शुदा और एक बच्चे की वालिदा होने के बावजूद अपनी परेशान हालात का मज़बूती से सामना करती हुई कामयाबी हासिल की हैं। मुबीन फ़ातिमा के जज़्बे और बहादुरी को सलाम।

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दो रुपए प्रति ट्वीट करने वाले बेरोज़गार शाहरुख़ ख़ान की मूवी पठान का बॉयकॉट कर रहे हैं। इधर पठान मूवी फ़िल्मी दुनिया में आयेदिन नया रिकॉर्ड अपने नाम कर रही है। शाहरुख़ ख़ान की मूवी पठान ने एक और रिकॉर्ड अपने नाम कर लिया है। पठान मूवी भारत की पहली मूवी है जो दुनियाभर के 100 से ज़्यादह देशों में रिलीज़ हो रही है।

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लखनऊ यूनिवर्सिटी के दीक्षांत समारोह में तीन गोल्ड मेडल जीतने वाली इक़रा रिज़वान वारसी के वालिद रिज़वान साहब पहले स्प्रे पेंटिंग का काम करते थे। वबा के दौरान उनकी नौकरी चली गई थी तो वो हस्पतालों के इर्द गिर्द घूमकर मास्क बेचने लगे। रिज़वान साहब की यही आमदनी का ज़रिया है जिससे वो अपना घर परिवार चलाते हैं।
इक़रा रिज़वान को डॉ. राधा कुमुद मुखर्जी गोल्ड मेडल, पंडित देवी सहाय मिश्रा गोल्ड मेडल और श्रीमती श्याम कुमारी हुक्कू मेमोरियल गोल्ड मेडल से नवाज़ा गया है। इक़रा रिज़वान साल 2021 में बेस्ट स्टूडेंट अवॉर्ड कांस्य पदक भी अपने नाम कर चुकी हैं। इक़रा अपनी कामयाबी का स्रेह अपने परिवार को देते हुए कहती हैं- "मैं आगे उर्दू में परास्नातक की पढ़ाई करूंगी उसके बाद यूजीसी व नेट इम्तिहान दूंगी और प्रोफ़ेसर बनकर अपने जैसी लड़कियों को आगे बढ़ाऊंगी। घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है। कोविड काल में और भी मुश्किल हालात थे। मां मास्क की सिलाई करती थीं। वालिद उनको हस्पतालों के बाहर बेचते थे। इसी से घर चलता था। अब भी हालात बहुत ज़्यादह नहीं बदले हैं। हम चार भाई-बहन हैं, जिसमें मैं सबसे बड़ी हूं"
मुबारकबाद इक़रा रिज़वान।

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