Discover postsExplore captivating content and diverse perspectives on our Discover page. Uncover fresh ideas and engage in meaningful conversations
मेघनाथ तो महाशक्तिशाली था। उपर से मायावी भी।
लक्ष्मण जी से भयानक युद्घ हो रहा था।
मेघनाथ चहुओर से अस्त्र चला रहा था। उसे दिव्यास्त्रों का ज्ञान था।
सौमित्र विव्हल हो गये। उन्हें लगा अब विनाशकारी ब्रह्मास्त्र का प्रयोग करना होगा।
वह युद्धभूमि से मर्यादापुरुषोत्तम भगवान के पास गये।
बोले भइया मुझे ब्रह्मास्त्र चलाने की आज्ञा दीजिये।
भगवान राम आश्चर्यचकित हो गये। वह लक्ष्मण के सिर पर हाथ रखकर बोले।
इस जगत में कौन है। जो तपस्वी लक्ष्मण को पराजित कर सकता है।
लेकिन वत्स! एक युद्ध मे विजय पाने के लिये तुम ब्रह्मास्त्र का प्रयोग कर रहे हो। इससे कितने निर्दोष प्राणी मारे जायेंगें। यह तो अंतिम अस्त्र है।
युद्धभूमि में भी करुणा का सम्बल नही छोड़ना चाहिये।
हे वत्स, तुम ब्रह्मास्त्र का प्रयोग मत करो। न्याय कहता है, अपराधी बच भी जो तो भी निर्दोष के साथ अन्याय नही होना चाहिये।
यदि तुम युद्ध से थक गये हो तो मैं जाता हूँ।
लक्ष्मण जी ने भगवान से क्षमा मांगी। युद्धभूमि में चले गये। इसी के बाद ही लक्ष्मण जी को शक्ति लगी थी।
गीता में वासुदेव भगवान कृष्ण कहते है।
"धनुर्धारियों में मैं राम हूँ "
श्रीराम कि धनुष शक्ति का प्रतीक है। वह धनुष कभी भी निर्दोष, असहाय पर नही चली। रामराज्य के प्रति हमारी आस्था आज भी इसलिये है। वह न्याय का राज्य था।
नही तो धनुर्धारी तो एक से बढ़कर एक ही हुये।
भगवान राम के धनुष निकला बाण सैदव धर्म और न्याय के लिये चला। उनके हाथ में धनुष भी कमल पुष्प के समान लगती है।